पहली बार जेएनयू में योगी मॉडल पर केंद्रित कार्यक्रम हुआ आयोजित
जवाहर लाल नेहरू विश्वविद्यालय (जेएनयू) परिसर में बुधवार शाम यूपी @ ट्रिलियन अभियान: उत्तर प्रदेश सुदृढ़ अर्थव्यवस्था की ओर” पुस्तक का विमोचन हुआ। फौरी तौर पर तो यह महज एक पुस्तक विमोचन का कार्यक्रम भर लगता है लेकिन राजनीतिक विश्लेषकों की नजर में यह किसी ऐतिहासिक घटनाक्रम से कम नहीं है। इस आयोजन के दूरगामी सियासी निहितार्थ होंगे। लंबे समय तक वामपंथी विचारों के भरण पोषण के लिए उर्वरा भूमि रही जेएनयू में योगी के सुशासन पर हुई चर्चा कई मायनों में महत्वपूर्ण है। इसमें कोई दो राय नहीं की जेएनयू ने देश को कई अर्थशास्त्री, इतिहासकार, शिक्षाविद दिए। एनआइआरएफ रैंकिंग में भी जेएनयू लगातार सर्वश्रेष्ठ तीन विश्वविद्यालयों में शामिल रहता है। लेकिन यह बहुत दुर्भाग्यपूर्ण है कि जेएनयू अकादमिक से इतर राष्ट्र विरोधी गतिविधियों की वजह से अधिक चर्चित हुआ।
जेएनयू परिसर में कभी महिषासुर की पूजा की गई तो कभी दंतेवाड़ा में सीआरपीएफ जवानों के बलिदान पर जश्न मनाया गया। हद तो तब हो गई जब 2016 में यहां भारत तेरे टुकड़े होंगे के नारे लगाए गए। जेएनयू आज तक इस प्रकरण से उबर नहीं पाया है। रामनवमी पर हवन-पूजन में भी वामपंथी विचारधारा समर्थकों ने अडंगा लगाया। यहां के वामपंथी छात्रों ने सीएए-एनआरसी के खिलाफ भी जमकर विरोध प्रदर्शन किया था।
ज्यादा समय नहीं गुजरा है। इसी वर्ष बीबीसी ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी पर एक विवादित डॉक्यूमेंट्री जारी की। इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ डॉक्यूमेंट्री पर भारत सरकार ने प्रतिबंध लगा दिया था, बावजूद इसके वामपंथी छात्र समूह जेएनयूएसयू ने जेएनयू परिसर में इसकी स्क्रीनिंग की। यह वही जेएनयू परिसर है जहां कभी प्रधानमंत्री मोदी के दस सिरों वाला पुतला जलाया गया था।
जेएनयू में राष्ट्रवादी राजनेताओं के विरोध प्रदर्शनों का लंबा इतिहास रहा है। याद करिए जब लंबे प्रयासों के बाद जेएनयू में रेलवे रिजर्वेशन काउंटर शुरू किया गया। उद्घाटन के लिए तत्कालीन केंद्रीय मानव संसाधन विकास मंत्री मुरली मनोहर जोशी को आना था। लेकिन वामपंथी छात्र संगठनों के विरोध की वजह से वो परिसर में आ नहीं पाए। जबकि इस कार्यक्रम के चंद दिनों पहले ही अलगाववादी नेता यासीन मलिक की परिसर में सभा आयोजित हुई थी। इससे सहज अंदाजा लगाया जा सकता है कि जेएनयू परिसर में किस तरह राष्ट्रविरोधी विचारधारा को बढ़ावा दिया जाता रहा है।
ऐसा नहीं है कि वामपंथी छात्रों के निशाने पर केवल पीएम मोदी रहे हैं, यूपी के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ को भी निशाना बनाया गया है। यूपी में कानून व्यवस्था की स्थिति हाल के वर्षों में बेहतर हुई है। पिछले वर्ष प्रयागराज में हिंसक प्रदर्शन हुए। पुलिस ने इन प्रदर्शनों के मास्टरमाइंड जावेद को गिरफ्तार किया। आरोपी के घर पर बुलडोजर चलाया गया। जिस पर जेएनयू छात्र संघ भडक उठा। वामपंथी छात्रों ने आरोप लगाया कि यूपी की योगी सरकार बुलडोजर के सहारे विरोध की आवाजों को दबाना चाहती है। सरकार अपनी इस नीति के जरिए मुसलमानों को निशाना बना रही है। वामपंथियों का यह अनर्गल प्रलाप भी पूर्व के अतार्तिक बयानों की पुनरावृत्ति थी। आंकड़े बताते हैं कि शहरी अल्पसंख्यकों को प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत आवास आवंटित करने में यूपी अव्वल है। जेएनयू में यदि योगी के सुशासन पर चर्चा हो रही है।
योगी मॉडल को स्वीकारा जा रहा है तो यह केवल इत्तेफाक नहीं हैं। इसके पीछे योगी की कड़ी मेहनत और दूरदर्शी नीतियों को जाता है। योगी आदित्यनाथ ने 2017 में उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री का पदभार ग्रहण किया। मुख्यमंत्री का ताज कांटों भरा था। क्योंकि राज्य में कानून व्यवस्था, भ्रष्टाचार से लोग त्रस्त थे। 2013 में मुजफ्फरनगर दंगा भला कौन भुला पाएगा। जिसमें 43 लोगों की मौत हुई थी। अकेले 2013 में यूपी ने 823 दंगों का दंश झेला। 133 निर्दोष लोगों ने दंगों में जान गंवाई जबकि 2269 लोग घायल हुए थे। जिस पुलिस से अपराधी इस समय खौफ खाते हैं, वो उस समय कितनी असहाय थी इसकी एक बानगी सपा सरकार द्वारा 2016 में विधानसभा में पेश एक रिपोर्ट से होती है। कानून व्यवस्था पर आधारित इस रिपोर्ट में बताया गया कि 2012 से 2016 के बीच यूपी पुलिस पर हमले के 1044 मामले सामने आए।
मायावती के पांच साल के कार्यकाल के दौरान पुलिस पर हमले के 547 मामले सामने आए थे। इनमें 572 पुलिसकर्मी घायल हुए थे और 2 पुलिसकर्मियों की मौत हो गई थी। योगी ने मुख्यमंत्री बनते ही सबसे पहली घोषणा पुलिस सुधार से संबंधित की थी। सरकार ने पुलिस सुधार कार्यक्रमों से पुलिस बल में वृदधि की और कानून व्यवस्था पर सख्त रुख अख्तियार किया। जिसका परिणाम यह हुआ है कि 2021 में यूपी में केवल एक दंगे का मामला दर्ज हुआ। यूपी पुलिस ने 2017 से अब तक कई दुर्दांत अपराधियों को एनकाउंटर में मार गिराया। बाहुबली मुख्तार अंसारी, विजय मिश्रा समेत 90 प्रतिशत माफिया इस समय जेल में बंद है। 44 साल में जो कभी नहीं हो पाया वो योगी राज में यूपी में 3 दिन में हो गया। चर्चित माफिया मुख्तार अंसारी को दो मामलों में सजा हुई। कानून व्यवस्था की स्थिति सुधरने की वजह से यूपी पर निवेशकों का भरोसा बढा है।
इसी साल लखनऊ में आयोजित ग्लोबल इन्वेस्टर्स समिट में 33 लाख करोड से अधिक के निवेश के प्रस्ताव मिले हैं। यूपी सरकार कृषि, धार्मिक पर्यटन, विनिर्माण और आईटी पर फोकस कर रही है। इसके अलावा, एनर्जी, हेल्थ, शहरी विकास, शिक्षा, फूड प्रोसेसिंग सेक्टर में भी सुधार किए गए जा रहे हैं। प्रदेश में एक्सप्रेस वे का जाल बिछाया जा रहा है। ग्रामीण सड़कें दुरूस्त की गई है। आज यूपी का कोई भी जिला पहचान का मोहताज नहीं हैं। प्रत्येक जिले की पहचान उसके एक विशिष्ट उत्पाद से है। एक जिला, एक उत्पाद योजना ने यूपी के जिलों को वैश्विक पहचान दिलाई है। आज यूपी के स्कूलों का कायाकल्प किया जा रहा है ताकि सरकारी स्कूलों के बच्चे अंग्रेजी में बात करें। बच्चों को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा मिले। योगी के नेतृत्व में यूपी के चौतरफा विकास से यह तो स्पष्ट है कि यूपी वन ट्रिलियन इकोनॉमी जरूर बनेगा। पुस्तक लोकार्पण कार्यक्रम में तो केंद्रीय राज्य मंत्री वीके सिंह ने यहां तक कहा कि यूपी इससे आगे का लक्ष्य भी प्राप्त करेगा। यूपी में कानून व्यवस्था की बेहतर स्थिति पर टिप्पणी करते हुए इंदिरा गांधी राष्ट्रीय कला केंद्र के अध्यक्ष प्रो राम बहादुर राय कहते हैं कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और योगी के नेतृत्व में हमें वर्तमान के गर्भ से भविष्य का जन्म दिखाई पड रहा है।