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दी यंगिस्तान एक्सक्लूसिव: दिल्ली यूनिवर्सिटी से नाइट ईटिंग डिसऑर्डर पर बड़ा खुलासा!

क्या आप देर रात जागकर पढ़ते हैं, और तभी आपको कुछ खाने की तेज इच्छा होती है? या सुबह उठते ही आपको भूख नहीं लगती? अगर हाँ, तो आप अकेले नहीं हैं। Delhi University दिल्ली यूनिवर्सिटी (DU) के छात्रों पर किए गए एक रिसर्च में नाइट ईटिंग डिसऑर्डर (NES) को लेकर नए खुलासे हुए हैं! यह ताज़ा रिपोर्ट बताती है कि NES भारतीय कॉलेज छात्रों की जीवन की गुणवत्ता को गंभीर रूप से प्रभावित कर रहा है, खासकर उनकी नींद और मानसिक स्वास्थ्य स्कोर (MCS) को।

यह डिसऑर्डर सिर्फ एक ‘बुरी आदत’ नहीं है, बल्कि यह एक गंभीर स्वास्थ्य समस्या है जो रात के खाने, सुबह नाश्ते में देरी (Delayed Morning Meal – DMM) और सुबह भूख न लगने (मॉर्निंग एनोरेक्सिया – MA) से जुड़ी है। रिसर्च के मुताबिक, सर्वे में शामिल 524 छात्रों में से लगभग 33% छात्र NES से जूझ रहे थे, और इनमें से 48% लड़कियां थीं। NES भारतीय कॉलेज छात्रों में, खासकर लड़कियों में, अपेक्षा से कहीं अधिक आम है।

यह अध्ययन बताता है कि कैसे अनियमित दिनचर्या और खान-पान का पैटर्न छात्रों के संपूर्ण स्वास्थ्य को बिगाड़ रहा है। यह सिर्फ एक व्यक्तिगत समस्या नहीं, बल्कि एक राष्ट्रीय चिंता का विषय है, क्योंकि भारत दुनिया की सबसे बड़ी युवा आबादी वाला देश है। इस ईटिंग डिसऑर्डर की पहचान और समय पर उपचार, देश के भविष्य के लिए बेहद जरूरी है।

महिलाओं में NES का अधिक खतरा और मॉर्निंग एनोरेक्सिया का गहरा असर

DU के छात्रों पर किए गए इस क्रॉस-सेक्शनल अध्ययन से एक अहम जानकारी सामने आई है: नाइट ईटिंग डिसऑर्डर (NES) से जुड़े लक्षणों का खतरा लड़कियों में लड़कों की तुलना में अधिक पाया गया है।

ईवनिंग हाइपरफेगिया (EH), यानी शाम के खाने के बाद अधिक खाना, 24.2% लड़कियों और 19.5% लड़कों में सबसे आम लक्षण था।

मॉर्निंग एनोरेक्सिया (MA) की दर दोनों जेंडर में लगभग समान थी (लड़कियों में 14.8%, लड़कों में 12.5%)

नाइट अवेकनिंग (NA) यानी रात में जागना, लड़कियों में दोगुने से अधिक (10.5%) था, जबकि लड़कों में यह 4.4% था।

डेटा एनालिसिस में यह भी पता चला कि MA और NA वे मुख्य लक्षण हैं जिनका छात्रों के जीवन की गुणवत्ता पर सबसे अधिक नकारात्मक असर पड़ रहा है। जिन छात्रों में MA और NA के लक्षण थे, उनका मानसिक स्वास्थ्य स्कोर (MCS) काफी कम दर्ज किया गया।

शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य पर NES का असर

अध्ययन ने स्पष्ट रूप से शारीरिक स्वास्थ्य (PCS स्कोर) और मानसिक स्वास्थ्य (MCS स्कोर) पर NES के विभिन्न लक्षणों के प्रभाव को मापा।

मॉर्निंग एनोरेक्सिया (MA): यह मानसिक स्वास्थ्य (Mean MCS: 37.76) और शारीरिक स्वास्थ्य (Mean PCS: 43.48) दोनों को सबसे ज्यादा प्रभावित करने वाला पाया गया है।

नाइट अवेकनिंग (NA): इसका मानसिक स्वास्थ्य पर गहरा असर देखा गया, जिसका Mean MCS स्कोर सबसे कम (36.01) था।

ईवनिंग हाइपरफेगिया (EH): यह शारीरिक स्वास्थ्य स्कोर (PCS स्कोर) का एक महत्वपूर्ण और नकारात्मक भविष्यवक्ता (predictor) पाया गया। यह लक्षण शारीरिक स्वास्थ्य को खराब करने से जुड़ा है।

यह दर्शाता है कि नींद की गुणवत्ता और सुबह की खाने की आदतें, जीवन की गुणवत्ता के प्रमुख कारक हैं।

BMI और उम्र के साथ बदलता है संबंध

शोध में शरीर के द्रव्यमान सूचकांक (BMI) और NES के लक्षणों के बीच जटिल संबंध भी देखने को मिले:

ज्यादातर छात्र (71%) सामान्य BMI रेंज (18.5–24.9) में थे।

कम वजन वाले (अंडरवेट) छात्रों ($BMI<18.5$) में ईवनिंग हाइपरफेगिया (EH) काफी आम (36.8%) था।

सामान्य BMI वाले प्रतिभागियों ने उच्च BMI (मोटापे से ग्रस्त) वाले लोगों की तुलना में बेहतर जीवन की गुणवत्ता की सूचना दी।

20 वर्ष से अधिक आयु के छात्रों का SF-36 स्कोर 20 वर्ष से कम आयु के छात्रों की तुलना में अधिक था।

कॉलेज छात्रों के स्वास्थ्य की दृष्टि से, यह जरूरी है कि ईटिंग डिसऑर्डर के लक्षणों को सिर्फ मोटापे से न जोड़ा जाए, बल्कि सभी BMI श्रेणियों के छात्रों की जांच की जाए।

समाधान की ओर पहला कदम

यह अध्ययन भारतीय कॉलेज छात्रों के बीच नाइट ईटिंग डिसऑर्डर (NES) की व्यापकता और जीवन की गुणवत्ता पर इसके महत्वपूर्ण नकारात्मक प्रभाव की पुष्टि करता है। विशेष रूप से, मॉर्निंग एनोरेक्सिया और रात में जागना (NA) जैसे लक्षण मानसिक और शारीरिक स्वास्थ्य दोनों को कमजोर करते हैं। चूंकि भारत में NES पर शोध सीमित है, इसलिए जागरूकता बढ़ाना और इसे केवल एक ‘मामूली जीवनशैली’ का मुद्दा मानने के बजाय एक नैदानिक ईटिंग डिसऑर्डर के रूप में मान्यता देना आवश्यक है।

यूनिवर्सिटी कैंपस में मानसिक स्वास्थ्य स्क्रीनिंग, पोषण परामर्श और नींद की स्वच्छता पर केंद्रित हस्तक्षेप कार्यक्रमों का विकास छात्रों के स्वास्थ्य और बेहतर जीवन की गुणवत्ता सुनिश्चित करने के लिए महत्वपूर्ण है। नाइट ईटिंग डिसऑर्डर की पहचान और प्रबंधन में देरी से भविष्य में गंभीर स्वास्थ्य समस्याएं हो सकती हैं।

Q&A

Q-नाइट ईटिंग डिसऑर्डर (NES) क्या है?

A-NES खाने से जुड़ा एक विकार है जिसमें व्यक्ति शाम के खाने के बाद अत्यधिक भोजन करता है, सुबह नाश्ता करने की इच्छा नहीं होती (मॉर्निंग एनोरेक्सिया), ,ऐसे लोग कई बार रात को नींद में उठकर खाते है।

Q-दिल्ली यूनिवर्सिटी के छात्रों में NES की दर क्या पाई गई?

A-अध्ययन के अनुसार, सर्वे में शामिल छात्रों में नाइट ईटिंग डिसऑर्डर सिंड्रोम (NES) की व्यापकता 33% थी, जिसमें से 48% छात्राएँ थीं। 33

Q-NES का छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य पर सबसे ज्यादा असर कैसे पड़ता है?

A-मॉर्निंग एनोरेक्सिया (सुबह भूख न लगना) और रात में जागना (नाइट अवेकनिंग) वे दो मुख्य लक्षण हैं जो छात्रों के मानसिक स्वास्थ्य कंपोनेंट स्कोर (MCS) को सबसे अधिक कम करते हैं, जिसका अर्थ है खराब मानसिक स्वास्थ्य।

Q-क्या यह डिसऑर्डर सिर्फ मोटे लोगों में पाया जाता है?

A-नहीं, अध्ययन से पता चला कि यह डिसऑर्डर सामान्य BMI वाले छात्रों में भी मौजूद है। हालांकि, सबसे आम लक्षण ईवनिंग हाइपरफेगिया कम वजन वाले (अंडरवेट) छात्रों में भी काफी प्रचलित था।

Q-NES से बचाव के लिए कॉलेज छात्रों को क्या करना चाहिए?

A-छात्रों को अपनी नींद (Sleep Hygiene) सुधारनी चाहिए, सुबह अनुशासित तरीके से नाश्ता करने की आदत डालनी चाहिए, और यदि लक्षण दिखें तो तुरंत मानसिक स्वास्थ्य विशेषज्ञ या पोषण परामर्शदाता से संपर्क करना चाहिए।

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