पुराने समय में खूबसूरत हौंदोवाले हाथी होते थे बादशाह, बेगम की सवारी

हाथी

खूबसूरत हौदोंवाले हाथी बादशाहों, राजाओं, शहजादों और नवाबों की सवारी थे। शहजादियाँ भी हाथी पर सवार होती थीं। मुग़ल शहजादी रोशनआरा बेगम पेगू हाथी पर जिस पर सुनहरा हौदा था, आती-जाती थी। बेहतरीन हाथी पन्ना से आते थे। इतिहासकार बर्नियर के कथनानुसार शाहजहाँ के काल में पेगू से पहली बार कुछ सफ़ेद हाथी हिन्दुस्तान लाए गए थे। अकबर के समय में शाही फ़ीलखाने में 101 हाथी ऐसे थे जो सिर्फ़ शाही सवारी के लिए ही इस्तेमाल में आते थे। उन्हें ‘ख़ास हाथी’ कहा जाता था।

जब बादशाह किसी विशेष हाथी पर सवारी करता था तो उसके महावत को उसकी एक माह की तन्ख्वाह के बराबर बख़्शीश देने का रिवाज था ‘आईन-ए-अकबरी’ में हाथी के लिए जिस साज-सामान का जिक्र है उसमें ‘घरना’ यानी लोहे की एक बड़ी जंजीर (सोने और चाँदी की भी होती थी) ‘लोह लंगर’ एक तरह की जंजीर जिससे हाथी को बेकाबू होने से रोका जाता था, गदेला, चौरसी और तैया आदि का जिक्र आता है। हाथी को शाही सवारी के लिए बहुत ही खूबसूरत ढंग से सजाया जाता था। ‘मेघ डंबर’, वह छतरीनुमा आड़ जिससे महावत पर भी छाया होती थी, शहंशाह अकबर की ईजाद थी। सजावटी चीजों में ‘रन पयाल’, ‘गेती’ और ‘पाएरंजन’ का इस्तेमाल भी मुग़लों के समय में ही शुरू हुआ।

घोड़े

घोड़े तेज़ रफ़्तारी, ताक़त और प्रभावशाली सूरत शक्ल के कारण दूसरे जानवरों की तुलना में सवारी के लिए ज्यादा इस्तेमाल किए जाते थे। ये गाड़ियाँ भी खींचते थे। यह आम लोगों और विशिष्टजनों की बहुत लोकप्रिय सवारी थी घोड़ों की नस्ल पर खास ध्यान दिया जाता था। उस जमाने में थोड़े अरब, तुर्की, तुर्किस्तान, बदख्श और तिब्बत से आते थे। कश्मीर के घोड़े भी पसंद किए जाते थे। हिन्दुस्तान के जिन इलाकों के घोड़े अच्छे समझे जाते थे उनमें पंजाब, आगरा और कुछ-बिहार के घोड़े अपने शारीरिक बल के कारण अधिक प्रसिद्ध थे। ऊँचे-नीचे रास्तों पर, जो पेंचदार भी होते थे, बड़े विश्वास के साथ क़दम रखने में कश्मीर के घोड़ों का जवाब नहीं था। घोड़े की सवारी में सामान में काठी या गद्दी, एक पालपोश जो गर्दन पर पड़ती थी, जीन पाँच अटकाने के लोहे के कच्छे, एक ऊनी तोलिया, एक भगसरान जो मक्खियाँउड़ाने का एक पंखा-सा था, जिसे घोड़े की दुम में बाँध दिया जाता था और एक तख़्ता होता था।”

पालकियां

दिल्ली के अमीर और रईस आदमी पालकियों में यात्रा करना पसंद करते थे जो बड़ी आरामदेह होती थीं। बहुत से यूरोपीय इतिहासकारों ने पालकियों का जिक्र बड़े चित्ताकर्षक ढंग से किया है और उनका विवरण दिया है। यह इस प्रकार का बड़ा संदूक होती थी जिसके आगे और पीछे दो-दो बाँस निकले रहते थे, जिन्हें कंधों पर उठाकर चार या छह आदमी चलते थे। इन्हें पालकीवरदार कहा जाता था और आम तौर पर ये एक ही कुटुंब के व्यक्ति होते थे। पालकियाँ सादा भी होती थीं और सजी-सजाई भी बड़ी पालकियों में आमने-सामने दो या चार व्यक्तियों के बैठने की व्यवस्था होती थी और पालकी के दोनों ओर अंदर आने या बाहर निकलने का रास्ता होता था।

अमीरों की निजी पालकियाँ बड़ी सजी-सजाई होती थीं जिनमें मखमल की गद्दियाँ, कश्मीरी पशमीने या ग़लीचे पर बिछी होती थीं। एक या दो जालीदार खिड़कियाँ भी होती थीं। अगर पालकी में कोई महिला या महिलाएँ बैठी हैं तो परदे गिरा दिए जाते थे। जब कोई महिला सवार होती तो पालकीबरदार मुँह फेर लेते और यही अमल उनके उतरने पर भी दोहराते। अगर पालकी किराए की भी होती तो भी पालकीबरदार जाने-पहचाने और भरोसे के आदमी होते और परदानशीन महिलाएँ अकेली पालकी में बैठकर चली जार्ती और वापस आ जातीं। हिन्दू औरतें मुसलमान औरतों की तरह परदा करतीं और पालकी में सफ़र करतीं। छोटी-सी सादा पालकी को, जिसमें ज्यादा-से-ज्यादा दो औरतें और आमतौर पर एक ही औरत बैठती, डोली भी कहा जाता था। उसमें सिर्फ एक ही बाँस आगे-पीछे निकला होता था और उसके उठाने के लिए सिर्फ़ दो पालकीबरदार काफ़ी होते थे।

अगर बरसात का मौसम होता तो पालकियों पर मोमी कपड़ा डाल दिया जाता था। शहर के अंदर एक गली से दूसरी गली और एक मुहल्ले से दूसरे मुहल्ले में जाने के लिए पालकियाँ मर्दों और औरतों के लिए बड़ी ही आरामदेह सवारी थीं। अगर यात्रा काफ़ी लंबी होती तो फ़ालतू कहार भी साथ जाते और थके हुए कहारों से कंधा बदल लेते। दुलहन को डोली में रूखसत करने का रिवाज उन दिनों शहर में भी था और दुलहन की डोली पर एक लाल रेशमी कपड़ा डाल दिया जाता और डोली वाले कहारों का उजरत के अलावा नेग और मिठाई भी मिलती। अगरचे डोली का अब दिल्ली और दूसरे शहरों में भी लगभग लोप हो चुका है लेकिन विदाई का दूसरा नाम डोली हमेशा के लिए पड़ गया। डोली और डोलों के अलावा नेमे और म्याने भी इस्तेमाल होते थे।

दिल्ली,दिल्लीकाइतिहास,अकबर,शेरशाहसूरी,परिवहन, delhi, delhi history, history of delhi,नूरजहां,जहांगीर, ब्रितानिया हुकूमत, बैलगाडी, बग्गी, पुराने समय में परिवहन, हाथी, घोड़ा,पालकी की सवारी,

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here