इस आर्टिकल में आपको मुगल काल के कुछ प्रसिद्ध खुशनवीसों के बारे में विस्तार से बताएंगे।

मीर मुहम्मद सालेह कशफी

दिल्ली का निवासी था। अकबर और जहांगीर के दरबार से संबद्ध था। सब लोग उसकी ख़ुशनवीसी के प्रशंसक थे। ख़त-ए-सवाद में ख़ास तौर पर दक्षता प्राप्त थी। शाहजहां ने उसे प्रोत्साहित किया था और उसकी बदहाली के दिनों में आर्थिक सहायता की थी। उसकी गिनती अपने दौर के प्रतिष्ठित खुशनवीसों में की जाती थी।

चंद्रभान ब्राह्मण

शाहजहां के दरबार में मीर मुंशी के पद पर नियुक्त था। फारसी का प्रसिद्ध शायर था और उसी भाषा में शेर कहता था। नस्तालीक़ और शिकस्ता ख़तों में उसे महारत हासिल थी। शाहजहां का प्रधानमंत्री सादुल्लाह खां भी उसकी बड़ी कद्र करता था। दारा शुकोह उसका बड़ा प्रशंसक था। दारा शुकोह के देहांत के बाद बनारस चला गया और वहीं उसकी मृत्यु हुई।

हिदायतुल्लाह खां देहलवी

उसने खत्ताती के फन में बड़ा कमाल हासिल किया था। औरंगज़ेब ने उसकी असाधारण दक्षता से प्रभावित होकर उसे शहजादों का शिक्षक नियुक्त किया। नस्ख और नस्तालीक़ ख़तों में उसका कोई सानी नहीं था। ‘जर्री रक्कम’ का ख़िताब पाया। उसने औरंगज़ेब के लिए दीवान-ए-हाफ़िज़ की प्रतियाँ भी लिखीं।

मिर्जा मुहम्मद बाक़र देहलवी

औरंगज़ेब का दरबारी खुशनवीस था। औरंगज़ेब उसका बड़ा प्रशंसक था। कई शहजादों का शिक्षक भी था। नस्ख और नस्तालीक़ में बड़ी महारत पाई।

शेख़ बकाउल्लाह बक़ा

बहुत उम्दा खुशनवीस, उर्दू और फ़ारसी का आला दर्जे का शायर था। नस्तालीक ख़त में बड़ी महारत थी और उसमें एक अजीब नवीनता पैदा कर देता था।

हाफ़िज़ मुहम्मद अली

शाही ख़त्तात था और नस्ख और नस्तालीक में माहिर था। शाह आलम के लड़के मिर्जा जवांबख्त बहादुर का उस्ताद था।

मुहम्मद हफीज खां

मुहम्मद शाह के समय का बड़ा मशहूर खुशनवीस गुजरा है। कई ख़तों में कुशल था। कुरान मजीद की कई प्रतियाँ लिखकर बादशाह को पेश की। उसके असंख्य शिष्य थे, जिनमें मुहम्मद तक़ी, मुंशी लछमन सिंह, मुंशी महबूब राय, मुंशी कुसल सिंह, लक्ष्मीनारायण पंडित और मौलवी गुलाम मुहम्मद देहलवी जैसे मशहूर खुशनवीस भी शामिल थे।

राय प्रेमनाथ

दिल्ली का पुराना खत्री रईस था। नवाब मुरीद ख़ाँ का शार्गिद बना । ख़त-ए-शिकस्ता में महारत हासिल थी। फ़ारसी और उर्दू का शायर भी था और ‘आराम’ तख़ल्लुस रखता था।

काजी इस्मतुल्लाह ख़ाँ

शाहआलम द्वितीय के काल का ख़त्तात था। ख़त-ए-नस्ख में जो महारत उसे हासिल थी शायद ही किसी को मिली हो। इस ख़त में कई आकर्षक आविष्कार किए। उसके ख़ानदान के दूसरे लोग भी मशहूर खुशनवीस थे।

शाह वारिसुद्दीन वारिस

वह दरवेश जैसी ख़ूबियों का इन्सान था और वंश परंपरा शेख फ़रीदुद्दीन गंजशका से मिलती थी। खारी बावली में मकान था। आलमगीर द्वितीय उसका शिष्य था। ‘जमरुद क़लम’ का ख़िताब पाया था। कोई ख़त ऐसा नहीं था जिसमें उसे महारत न हो 1

मौलवी गुलाम मुहम्मद राक्रिम देहलवी

अरबी और फ़ारसी का विद्वान था और फ़ारसी का अच्छा शायर भी ख़त्ताती की कला में असाधारण दक्षता रखता था। सातों ही ख़तों में कमाल हासिल था और ‘हफ्त क़लम’ की उपाधि पाई। उसने ख़ुशनवीसों का इतिहास भी लिखा है।

मुंशी लक्ष्मण सिंह गय्यूर

जाति का अग्रवाल था मगर फ़ारसी और अरबी में मुल्लाओं के भी कान काटता था। फ़ारसी का उच्चकोटि का गद्यकार था। खुशनवीसी की ओर स्वाभाविक प्रवृत्ति थी और उसमें उसने कमाल हासिल किया था। नस्ख, नस्तालीक़ और शिकस्ता पर पूरा अधिकार प्राप्त था। मुसलमानों से घुलमिलकर रहता था। कहा जाता है एक बार कुछ किताबें बेचने के लिए लखनऊ गया तो किसी की सिफ़ारिश से अंग्रेज़ों ने तीन सौ रुपए महावार का वज़ीफ़ा देना मंजूर कर लिया मगर उसने यह कहकर इन्कार कर दिया कि मैंने हमेशा मुसलमानों का नमक खाया है, अंग्रेजों से मदद लेना हराम समझता हूँ।

मिर्जा सोहराब बेग

दिल्ली का पुराना बाशिन्दा और एक मुग़ल था। ख़त-ए-नस्ख का बड़ा माहिर था। ‘ग़ौहर रकम’ पाया था। दिल्ली में बहुत लोग उसके शागिर्द थे।

मुंशी दीपचंद

जाति का खत्री था और दिल्ली में बहुत समय से रहता था। फ़ारसी का विद्वान था। नस्तालीक और शिकस्ता खतों में महारत थी।

मीर सैयद मुहम्मद गाफिल

खत-ए-नस्तालीक का माहिर था। दिल्ली कॉलेज में विद्यार्थियों को व्रत-ए-नस्तालिक सिखाने पर नियुक्त था शायर और इतिहासवेत्ता भी था।

मीर जमीलुद्दीन हिग्र

नस्तालीक नवीसी में बड़ी महारत थी शायरी का शौक भी था और ‘जीक’ की शागिर्दी की थी। 1857 ई. की आज़ादी की लड़ाई में दिल्ली की पत्रिका ‘सादिक़-उल-अख़बार’ का संपादक था। अंग्रेज़ों ने उस पर बग़ावत के जुर्म में मुक़दमा चलाया और उसे तीन साल की क़ैद बामुशक्कत की सजा मिली।

सैयद मुहम्मद अमीर रिज़वी पंजाकश

वह कई कलाओं में प्रवीण था मगर पंजाकश के नाम से अधिक प्रसिद्ध था। उच्च कोटि का खत्तात था। उसकी पांडुलिपि गुलिस्तान-ए-सादी, जो महाराजा अलवर ने लिखवाई थी, बहुत ही सुंदर है बहुत शागिर्द थे जिनमें मौलवी हयात अली और पंडित शंकरनाथ ने खुशनवीसी में खासी ख्याति प्राप्त की। खत्ताती की कला लोगों में इतनी लोकप्रिय हो गई थी कि लोग अपने घरों की दीवारों को उम्दा लिखाई की बसलियों से सजाते थे उन वसलियों में शेर, रुबाइयों और मजहबी उक्तियां बहुत ही सुंदर लिखावट में लिखी होती थीं। सैयद मुहम्मद अमीर रिजवी पंजाकश के मकान पर खुशनुमा ‘आक़िबत बखैर’ (शुभ परिणाम) लिखा रहता था। अपने मकान की कड़ियों पर भी “या फुलाह’ और ‘बिस्मिल्लाह’ लिखता था। कृत-ए-सुल्स में जर्मनी में सबसे पहले उसकी हमाइल (छोटा कुरआन) छपी दिल का धनी था और कोई भी जरूरतमंद आता तो उसे कुछ लिखकर दे देता, जो बाजार में फौरन बिक जाता। बहादुरशाह जफ़र उसकी बड़ी कद्र करता था। उसे खुशनवीसी का अंतिम सम्राट माना जाता था। ईरान के पुस्तकालय में उसकी बहुत-सी लिखाइयां सुरक्षित हैं, जिनकी क़ीमत करोड़ों रुपए की होगी। 1857 ई. की आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेने के जुर्म में 94 वर्ष की आयु में फ़िरंगियों की गोली का निशाना बना।

बद्रुद्दीन मुहरकन

हर प्रकार का ख़त बड़ी खूबसूरती से लिखता था। उसे ‘मुरस्सा रक्रम’ का ख़िताब मिला था। मुहर खोदने में उसका कोई मुकाबिला नहीं था। बहादुरशाह जफ़र और अंग्रेज शासक दोनों उसके प्रशंसक थे। गर्वनर ने खुश होकर एक खिलअत भी दी थी। ख़त-ए-नस्तालीक़ लिखने में उसका कोई सानी नहीं था।

मुहम्मद जान

खुशखती में बेजोड़ था। ख़त-ए-नस्तालीक़ और शिकस्ता का माहिर था। अपने समय के सबसे अधिक प्रसिद्ध खुशनवीसों में उसकी गणना होती थी।

मौलवी हयात अली

शिकस्ता और नस्तालीक़ में महारत थी बल्कि इनमें नई शैलियों का आविष्कार भी किया।

पंडित शंकरनाथ ‘ मुअद्दब’

एक शैलीकार खुशनवीस था। शायरी का शौक़ था और ‘मुअद्दब’ तख़ल्लुस रखता था। ख़त-ए-शिकस्ता और नस्तालीक़ दोनों का शैलीकार ख़त्तात था।

अब यह कला अपने उस रूप में लुप्त ही समझी जाएगी। अब सिर्फ़ कातिबों के रूप में दिल्ली में खुशनवीस मिलते हैं लेकिन उनकी तादाद भी घटती जा रही है। फिर वह पहले जैसा स्तर, आकर्षक लिखाई, वह गोलाई और ख़ुशनुमाई अब कहाँ देखने को मिलती है? कातिबों के लिए यह उनकी रोजी का जरिया है, मगर गुजर-बसर इसमें आराम से कहाँ होती है? इसलिए ख़त्ताती की कला, जो बीते हुए दौर का एक सांस्कृतिक प्रतीक थी, उस दौर के साथ ही चली गई। खुदा करें कि समय की निर्दयता और उसके दो-चार थपेड़े कातिबों के रूप में शेष गिने-चुने खुशनवीसों को भी इस कला के त्याग के लिए विवश कर दें, जिसे अब कला नहीं केवल शिल्प कहना अधिक उपयुक्त होगा।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here