पिछले एक दशक में बांग्लादेश में हिंदूओं की आबादी में हुई कम
लेखक- अरविंद जयतिलक(वरिष्ठ स्तंभकार)
bangladesh hindus: बांग्लादेश में प्रधानमंत्री शेख हसीना के इस्तीफा के बाद उपजी अराजकता के बीच अल्पसंख्यक हिंदुओं पर अत्याचार बढ़ गया है। हिंदू घरों, व्यवसायिक प्रतिष्ठानों और मंदिरों को लूटा जा रहा रहा है। आग के हवाले किया जा रहा है। हिंदू इलाकों में डर और भय का माहौल है। हिंदु महिलाएं बेहद असुरक्षित और असहाय हैं। हिंदू महिलाओं के साथ बलात्कार की घटनाएं बेचैन कर रही हैं। इस्कॉन मंदिर पर हमला करके उसे जला दिया गया है।
हालात इस कदर बिगड़ चुका है कि हिंदुओं को अपनी जान बचाने के लिए भागना पड़ रहा है। कई हिंदू नेताओं और व्यापारियों की हत्या हो गई है। कई हिंदुओं को जिंदा जलाने की खबरें हैं। सेना और पुलिस तमाशबीन हैं। माना जा रहा है कि बांग्लादेश में जो अंतरिम सरकार का गठन होगा उसमें बीएनपी और जमाते इस्लामी सरीखे दलों का बोलबाला होगा।
ऐसे में हिंदुओं पर अत्याचार में इजाफा होना तय है। ऐसा इसलिए भी कि बांग्लादेश में हूजी, जमातुल मुजाहिदीन बंगलादेश, द जाग्रत मुस्लिम जनता बंगलादेश (जेएमजेबी), पूर्व बांगला कम्युनिस्ट पार्टी (पीबीसीबी) व इस्लामी छात्र शिविर यानी आइसीएस जैसे बहुतेरे आतंकी और कट्टरपंथी संगठन हैं जिनका मकसद बांग्लादेश से हिंदू अल्पसंख्यकों को सफाया करना है।
विचार करें तो बांग्लादेश में देश के हिंदू समुदाय को आजादी नहीं है। नतीजा अल्पसंख्यक समुदाय पर अत्याचार जारी है। इसका दुष्परिणाम यह है कि बांग्लादेश में हिंदु अल्पसंख्यकों की आबादी तेजी से घट रही है। अभी गत वर्ष ही अमेरिकी मानवाधिकार कार्यकर्ता रिचर्ड बेंकिन ने खुलासा किया था कि पड़ोसी देश बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी तेजी से घट रही है।
उनके मुताबिक शेख हसीना और खालिदा जिया के अंतर्गत बांग्लादेशी सरकारें उनलोगों के खिलाफ सख्त कार्रवाई नहीं कि है जो हिंदुओं के खिलाफ काम कर रहे हैं। बेंकिन के आंकड़ों पर गौर करें तो बांग्लादेश की कुल आबादी 15 करोड़ है जिसमें से 90 प्रतिशत मुसलमान हैं।
हिंदू आबादी घटकर 9.5 प्रतिशत रह गयी है। जबकि 1974 में हिंदुओं की संख्या कुल आबादी में जहां एक तिहाई थी, वहीं 2016 में यह घटकर कुल आबादी का 15 वां हिस्सा रह गयी है।
बेंकिन के आंकड़ों के इतर इतिहास में जाएं तो 1947 में भारत विभाजन के समय पूर्वी पाकिस्तान यानी आज के बांग्लादेश में हिंदुओं की आबादी 30 फीसद थी जो आज घटकर 8.6 फीसद रह गयी है। बांग्लादेश जब पूर्वी पाकिस्तान हुआ करता था तो उस समय की पहली जनगणना में मुस्लिम आबादी 3 करोड़ 22 लाख और हिंदू आबादी 92 लाख 40 हजार थी।
साढ़े छः दशक बाद आज मुस्लिम आबादी 16 करोड़ के पार पहुंच चुकी है जबकि हिंदू आबादी महज 1 करोड़ 20 लाख पर सिकुड़ी हुई है। सवाल उठना लाजिमी है कि अगर बांग्लादेश में अल्पसंख्यक हिंदु सुरक्षित हैं तो मुसलमानों की आबादी की तुलना में उनकी आबादी में आनुपातिक वृद्धि क्यों नहीं हुई है?
गौर करें तो इसके दो मुख्य कारण हैं। एक सुनियोजित रणनीति के तहत अल्पसंख्यक हिंदुओं का कत्ल और दूसरा उनका धर्मांतरण। आतंकी व कट्टरपंथी संगठनों के अलावा बेगम खालिदा जिया के नेतृत्व वाले राजनीतिक संगठन बीएनपी के समर्थक भी उन्हें लगातार निशाना बनाते रहते हैं।
यह तथ्य है कि जब भी बेगम खालिदा जिया की नेतृत्ववाली बीएनपी सत्ता में आयी है हिंदू अल्पसंख्यकों पर अत्याचार बढ़ा है। खालिदा सरकार इस्लामिक कट्टरपंथियों को हिंदुओं के खिलाफ भड़काती है।
यह तथ्य है कि 2001 में जब बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की अगुवाई वाली गठबंधन सरकार सत्ता में आयी तो योजना बनाकर हिंदुओं का नरसंहार किया गया। बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी की सत्ता से विदायी के बाद जब अवामी लीग की सरकार सत्ता में आयी तो उसने हिंदू अल्पसंख्यकों को न्याय का भरोसा दिया। उसने खालिदा सरकार के दौरान नरसंहार की जांच के लिए तीन सदस्यीय न्यायिक आयोग का गठन किया।
आयोग ने 25 हजार से अधिक लोगों को हिंदुओं पर हमले का जिम्मेदार ठहराया और उन पर मुकदमा चलाने का निर्देश दिया। शर्मनाक तथ्य यह कि हमलावरों में खालिदा सरकार के 25 पूर्व मंत्री भी शामिल हैं। लेकिन अरसा गुजर जाने के बाद भी गुनाहगारों के खिलाफ कार्रवाई नहीं हुई है।
बेहतर होगा कि भारत सरकार बांग्लादेशी अल्पसंख्यक हिंदुओं की सुरक्षा के लिए बांग्लादेश पर दबाव बनाए। वैश्विक समुदाय को भी बांग्लादेश में अल्पसंख्यकों पर हो रहे अत्याचार को रोकने के लिए कदम उठाना चाहिए। अन्यथा बांगलादेश में भी हिंदू अल्पसंख्यकों की स्थिति पाकिस्तान बदतर हिंदू अल्पसंख्यकों जैसी होनी तय है।
(नोट-यह लेखक के निजी विचार हैं)