शाहदरा मेट्रो स्टेशन (Shahdara Metro station) से छोटा बाजार का रास्ता दिल्ली (Delhi) की कलरफुल लाइफ की तरह ही रंगीन है। रास्ते में आभूषण, कपड़े, खिलौनों की दुकानें जी भर के दिल्ली को निहारने का मौका देती हैं। कहीं बच्चों की ठिठोली तो कहीं बड़े-बुजुर्गों की गपशप दिल को छू जाती है। रास्ते की रंग-बिरंगी दुकानों से शापिंग के बाद कुछ चटपटा खाने का मन तो करता ही है। ऐसे में कदम खुद ब खुद सन 1954 से स्वाद के शौकीनों का ठौर बनी हीरालाल लक्ष्मीचंद कचौड़ी भंडार (Heeralal lakshmi chand kachori wala shahdara) की तरफ बढ़ चलते हैं। रास्ते में आते जाते किसी से दुकान का पता पूछो तो हंसते हुए भीड़ जहां दिखे समझो कचौड़ी की दुकान है कहकर आगे बढ़ जाता है। दरअसल, यहां बेसन की पिटठी भरी गोलगप्पे के साइज वाली कचौड़ी (Delhi street Food) बहुत ही यूनिक है। ऐसी कचौड़ी शायद पूरी दिल्ली में कहीं और नहीं मिलती है। तभी तो कचौड़ी का स्वाद चखने के लिए दिल्ली ही नहीं देश के कोने कोने से ना केवल लोग आते हैं बल्कि कई तो पैक कराकर ले जाने की इच्छा जताते हैं।

चौथी पीढ़ी सम्हाल रही

दुकान संभाल रहे भरत कहते हैं कि यहां हीरालाल जी उनके दादा थे। उन्होंने दो दुकान यहां खोली थी। वो मूलरूप ये यूपी के बुलंदशहर के रहने वाले थे। सन 1910-11 में वो दिल्ली आए थे। यहां आने के बाद सबसे पहले उन्होंने पराठे की एक दुकान खोली थी। जिसके बाद जायके का सफर चल निकला और 1912 में उन्होंने छोटा बाजार में मिठाई की दुकान खोली थी। उस समय चंद गिनीचुनी मिठाई ही बिकती थी। सन 1954 में उन्होंने कचौड़ी की दुकान खोली जो बाद में उनके बेटे लख्मीचंद संभालने लगे। अब दुकान चौथी पीढ़ी संभाल रही है।

गोल गप्पे वाली कचौड़ी

दुकान का रास्ता पूछते यदि किसी शख्स से बातचीत होती है तो वो दुकान के नाम से नहीं बल्कि गोल गप्पे वाली कचौड़ी नाम से पता पूछता है। भरत कहते हैं कि कचौड़ी गोल गप्पे के आकार की होती है। लेकिन सिर्फ आकार ही इसकी खासियत नहीं है। इसमें बहुत कुछ है जो जायका पसंद लोगों को भाता है। मसलन, इसके अंदर बेसन की पिटठी भरी जाती है जो शायद कहीं और नहीं मिलती है। बेसन की पिटठी से स्वाद बेमिसाल हो जाता है। कचौड़ी को छानते समय भी बहुत ध्यान दिया जाता है। क्यों कि यदि आंच जरा भी ज्यादा या कम हुआ तो बेसन की पिटठी में तेल मिक्स होने का खतरा होता है। ऐसे में स्वाद बिगड़ सकता है। इसे छोले के साथ सर्व किया जाता है। छोला बहुत ही धीमी आंच पर बनाया जाता है, जिससे उसमें आलू और मटर अचछे से मिल जाते हैं। आमचूर की चटनी के साथ कचौड़ी परोसी जाती है। बकौल भरत, हम खस्ता कचौड़ी नहीं बेचते। ये बेसन पिटठी कचौड़ी है। मठरी जरुरी सब्जी के साथ हम परोसते हैं।

ग्राहकों को क्यों पसंद

कचौड़ी खाते अंबरीश कहते हैं कि वो रोहिणी में रहते हैं। यहां उनकी रिश्तेदारी है। जब भी रिश्तेदार के यहां आते हैं तो पानी तो वहां पी लेते हैं लेकिन खाना नहीं खाते। क्यों कि बिना कचौड़ी खाए छोटा बाजार से जाना अच्छा नहीं लगता है। जितेंद्र भी लक्ष्मी नगर से यहां कचौड़ी खाने आए हैं। यहां का बालू शाही भी बहुत अच्छा लगता है। इस पर भरत कहते हैं कि दरअसल, हीरालाल की सबसे पुरानी मिठाई की दुकान भी यहां कचौड़ी के सामने ही है। यही पहली दुकान है। यहां आज भी देशी घी में बने बालू शाही, इमरती, बंगाली मिठाई, छप्पन भोग खाने दूर दूर से लोग आते हैं।

दुकान- हीरालाल लख्मीचंद कचौड़ी भंडार

स्थल- छोटा बाजार, शाहदरा

समय- सुबह नौ बजे से रात दस बजे तक।

मूल्य-10 रुपये में दो कचौड़ी।

नजदीकी मेट्रो- शाहदरा।

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