Delhi clubs history साल 1913 वो साल था जब राजधानी दिल्ली में क्लबों की शुरुआत हो रही थी। अंग्रेजों ने अपने निजी बैठकों के लिए सिविल लाइंस के किंग्स वे मैदान में एक क्लब बनाया जहां सेना के अधिकारी फुर्सत में बैठा करते थे और अपने पसंदीदा खेल खेला करते थे। साल 1913 में इंपीरियल जिमखाना क्लब (imperial gymkhana club) के नाम से पहला क्लब स्थापित किया गया। अंग्रेजी हुकमरानों ने अपनी संस्कृति के अनुरूप क्लब को सजाया संवारा, खेल के लिए मैदान तैयार करवाए। साल 1920 में जब ब्रिटिश प्रशासन ने नई दिल्ली बसाने की योजना बनाई तब क्लबों के निर्माण के बारे में भी सोचा गया। कनॉट प्लेस बनाने वाले आर्किटेक्ट रोबर्ट टी रसेल ने दिल्ली जिमखाना क्लब (Delhi GymKhana Club) का डिजाइन तैयार किया।
सफदरजंग रोड पर 22 एकड़ जमीन पर 1930 में बन कर तैयार हुआ इंपीरियल जिम खाना क्लब। शुरुआती दौर में इस क्लब में 200 सदस्य हुआ करते थे। इसके निर्माण में शाही परिवारों ने काफी योगदान दिया इसलिए उन्हें भी इस क्लब की सदस्यता दी जाती थी। शाही परिवारों में रतलाम के महाराजा सज्जन सिंह बहादुर, बीकानेर के महाराजा सज्जन सिंह बहादुर के साथ भोपाल के नवाब, ग्वालियर के महाराजा, जोधपुर के महाराजा, कशमीर के महाराजा को सदस्यता दी गई। क्लबों की देख रेख के लिए पैसे का इंतजाम शाही परिवारों से हुआ करता था। कर्मचारियों को छोड़कर आम लोग इस क्लब में प्रवेश नहीं कर सकते थे। सफेद दीवारों व भव्य खंभों और ऊंची सीलिंग वाले इस खूबसूरत भवन में लेडी विलिंगडन के सहयोग से स्वीमिंग पूल भी बनाया गया। क्लब की दीवारों पर लगी तस्वीरों से उस दौर के बारे में काफी जानकारियां मिलती है। क्लब की शामें किस कदर गीत संगीत से लबरेज हुआ करती थी, जाम छलकते थे और फिक्र को पीछे छोड़ सभी डांस फ्लोर पर नाचते गाते थे। www.theyoungistaan.com
महिलाएं भी क्लबों में आया करती थीं।
15 अगस्त 1947 में देश आजाद हुआ, उसके बाद इस पुराने क्लब का नाम भी बदल गया। इंपीरियल को हटाकर इसे दिल्ली जिमखाना क्लब कर दिया गया। क्लब ने सौ साल के सफर को पूरा कर लिया है और मौजूदा समय में इस क्लब की सदस्यता 5600 हो गई है जिसमें से 1800 सदस्य 80 वर्ष के ऊपर हैं। करीब तीन हजार के ऊपर सदस्य 70 वर्ष के ऊपर है। इलीट क्लबों में शुमार इसकी सदस्यता के लिए लोगों को 35 साल का इंतजार करना पड़ता है। यहां के मैनेजर हंसराज बताते हैं कि आवेदन पत्र में इस बात का साफ साफ जिक्र भी किया है लेकिन फिर भी लोग सदस्यता लेने के लिए फार्म भर रहे हैं। तीनों सेना के आला अधिकारी सहित कई ब्यूरोक्रेट इसके सदस्य हैं। सदस्यों में शीला दीक्षित, शत्रुग्घन सिंहा भी शामिल हैं। वे बताते हैं कि यहां कैरेमल कस्टर्ड और जिंजर पुडिंग यहां के रेस्तरां में सबसे ज्यादा पसंद किए जाते हैं।
नेशनल स्पोर्टस क्लब के तेंदुलकर, अमिताभ बच्चन भी हैं सदस्य .
अंग्रेजों के जाने के बाद भी राजधानी में कई क्लब बने जिसमें से नेशनल स्पोर्ट्स क्लब (national sports club) एक है। पुराने किले के सामने बने स्पोटर््स क्लब महाराज पटियाला की मदद से बना। नेशनल स्पोटर््स क्लब के दिल्ली और मुंबई में ब्रांच हैं। इस क्लब के करीब 20 हजार से ज्यादा सदस्य हैं। साल 1949 में बने इस क्लब के पूर्व सचिव गोविंद रोहतगी बताते हैं कि इस क्लब में नामी गिरामी लोग सदस्य हैं। इसकी सदस्यता की फीस 13 लाख रुपये हैं। सरकारी अधिकारियों के लिए ढाई लाख रुपये है। सदस्यता के लिए मौजूदा दो सदस्यों की संस्तुति भी आवश्यक है। सारी शर्ते पूरी करने के बाद भी सदस्यता के लिए काफी लंबा इंतजार करना पड़ता है। वे बताते हैं मुंबई का क्लब ज्यादा बड़ा और भव्य है जहां मुकेश अंबानी (mukesh ambani), अमिताभ बच्चन (amitabh bachchan), जैसी कई हस्तियां सदस्य हैं। वे बताते हैं इस क्लब की खास बात यहां के दो रेस्त्रां हैं। इनमें से एक लाइव किचन भी है। मिट्टी के ओवन में बने पिजा, ग्रिल्ड चिकन, ग्रिल्ड फिश यहां का खास जायका है।
स्वतंत्रता संग्राम के लिए बनाई जाती थी रणनीति
मुगलों द्वारा बसाई गई पुरानी दिल्ली में जब अंग्रेजी हुकूमत का राज हुआ तो यहां भी कई क्लब वजूद में आए। दिल्ली वालों पर नजर रखने और उन्हें अपने साथ मिलाने के मकसद से सिविल लाइंस समेत पुरानी दिल्ली में करीब आधा दर्जन पुराने क्लब की शुरुआत की गई। अंग्रेजी हुकूमत के आला अधिकारी सबसे पहले सिविल लाइंस इलाके में बसने लगे थे, उन्हें शाहजहां की छोटी बेटी रोशनआरा का बाग इतना पसंद था कि उन्होंने अपने मनोरंजन के लिए क्लब भी इसी के बगल में बनवाया। साल 1922 में यूरोपियन नाम से बने इस क्लब में क्रिकेट, पोलो, जैसे खेल खेले जाते थे। 22 एकड़ में फैले इस क्लब ने क्रिकेट जगत से कई नामी गिरामी खिलाड़ी भी दिए। माना जाता है कि भारतीय क्रिकेट संघ का जन्म भी यही से हुआ। मुगल ऐतिहासिक स्मारकों के बीच ब्रिटिश आर्किटेक्चर की भव्यता के साथ आज भी इस शानदार भवन में कई कार्यक्रम होते हैं।
सिविल लाइंस के बाद पुरानी दिल्ली में भी कई क्लब बने हालांकि अब इन क्लबों का इस्तेमाल स्थानीय लोगों की आवश्यकता के अनुसार किया जा रहा है। पुरानी दिल्ली में प्रमुख तौर पर पांच क्लब हैं। इनमें नेशनल क्लब, यूनियन क्लब, राधा मोहन क्लब, यंग मेन टेनिस क्लब, बेंच एंड बार क्लब शामिल हैं। इनमें से ज्यादातर क्लबों में शादी समारोह का आयोजन होने लगा है। नेशनल क्लब में आज भी टेनिस और बैडमिंटन खेला जाता है। इस क्लब के अध्यक्ष सुभाष गोयल बताते हैं कि यह क्लब बाकी सभी क्लबों से अलग है। इसमें आज भी शराब नहीं परोसी जाती। इसे लोग सामाजिक कार्यो के लिए इस्तेमाल किया जाता है। चांदनी चौक जैसे पुराने शहर में क्लब की मौजूदगी बेहद महत्वपूर्ण है। वे बताते हैं कि आजादी के समय में इन क्लबों ने अहम भूमिका निभाई। अंग्रेजों द्वारा बनाए गए इन क्लबों में क्रांतिकारी बैठकें किया करते थे। रणनीति तैयार करते थे। बिड्डन नाम से शुरू हुए इस क्लब में आज भी राजनैतिक बैठकें होती हैं। चांदनी चौक के व्यापारी लोग इन प्रमुख क्लबों के सदस्य हैं।
दिल्ली जिमखाना क्लब
दिल्ली जिमखाना क्लब में 26 टेनिस कोर्ट हैं। यहां स्कवेश कोर्ट भी है। इंडोर गेम के लिए भी बढ़िया सुविधा है। लेकिन यह सुविधा सिर्फ सदस्यों के लिए है। आने वाले दिनों में जिमखाना क्लब सीएसआर गतिविधियों की शुरुआत करेगा और जरूरतमंद खिलाड़ियों की ट्रेनिंग की व्यवस्था यहां कराएगा। कई बार खबरें आती हैं कि राष्ट्रीय स्तर के खिलाड़ियों को प्रैक्टिस के लिए अच्छी जगह नहीं मिल पाती। इस काम में यहां के वरिष्ठ सदस्य भी उनकी मदद कर सकते है। वे बताते हैं कि यह स्थान ऐतिहासिक तौर पर भी काफी महत्वपूर्ण रहा है। राउंड टेबल बैठक के लिए उस समय के वायसराय लार्ड इरविन ने महात्मा गांधी से पहली मुलाकात इसी क्लब में की थी। भारत पाकिस्तान के विभाजन के समय पाकिस्तान की सेना के कमांडरों को यही पर विदाई दी गई थी। ऐतिहासिक दृष्टि से महत्वपूर्ण जानकारियों को भी संजोया जा रहा है। साल 1927 के बाद की जानकारियों को सहेजा जा चुका है। बाकी साल 1913 से लेकर साल 1926 तक की जानकारियां भी जुटाई जा रही हैं।