लडाई से क्यों पीछे हटे विद्रोही, मिर्जा मुगल को क्यों लिखना पडा खत

1857 की क्रांति: विद्रोहियों या यूं कहें क्रांतिकारियों पर पूरे देश को गर्व है। विलियम डेलरिंपल अपनी किताब में कई ऐसे किस्से लिखते हैं जिन पर सहसा विश्वास नहीं होता। ऐसा ही एक किस्सा वो लिखते हैं कि मिर्जा मुगल ने 23 जून को कमांडर-इन-चीफ की हैसियत से सब सिपाहियों से अपील करते हुए भेजा। लिखा कि जो काम उन्होंने शुरू किया था, उसको खत्म करें। यह आदेशपत्र ‘उन सब अफसरों और पलटनों के सिपाहियों को’ भेजा गया था, जो अब तक ‘खाइयों में नहीं गए हैं’।

उसमें लिखा था कि- “बावजूद इसके कि यह जंग मजहब और विश्वास के नाम से शुरू हुई थी, हममें से कई लोग लड़ाई पर नहीं गए हैं और अपना वक्त बागों या दुकानों में गुजारते हैं। और कुछ लोग अपने कमरों में छिपे अपनी जान की सुरक्षा कर रहे हैं। बादशाह सलामत ने तुमको अपने नमक की कसम दिलाई थी कि सब दस्ते हमले करने जाएंगे। लेकिन अब तुम लोगों में ऐसा करने की कोई ख़्वाहिश नहीं रही है।

कितने अफ़सोस की बात है कि जब मुकाबला दीन और मजहब के बारे में है और जब बादशाह ने तुम सबको अपनी सुरक्षा में लिया है, तब भी तुम जंग पर जाने से इंकार करते हो। याद रखो कि जो भी पलटन कल की लड़ाई पर नहीं जाएगी उसका भत्ता बंद कर दिया जाएगा। लेकिन वह पलटन और घुड़सवार सिपाही जो आज बहादुरी और हिम्मत दिखाएंगे या पहले दिखाई है, उनको दरवार से इनाम, तमगे और सम्मान मिलेगा और आलीजाह बादशाह सलामत उनके बहुत शुक्रगुज़ार होंगे।”

इस आदेशपत्र से नीचे एक और नोट लिखा हैः

“दूसरी पलटन के सब अफसरों के नामः तुमको आदेश दिया गया था कि तुम तेलीवाड़ा जाकर हमला करो मगर अब पता चला है कि तुम वहां नहीं पहुंचे और उसके करीब के बागों में आराम कर रहे हो। यह बिल्कुल अस्वीकार्य है। तुम फौरन वहां जाओ।

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