पीओके निवासी भी मानते हैं खुद को भारत का हिस्सा

लेखक-अरविंद जयतिलक (वरिष्ठ स्तंभकार)

भले ही पाकिस्तान और उसके हुक्मरान पीओके (Pakistan-occupied Kashmir) को आजाद कश्मीर का तमगा दें लेकिन सच यही है कि यहां के लोगों के हालात गुलामों से भी बदतर हो चुका है। यहां के लोग पाकिस्तानी सेना (Pak army) के अत्याचार और दमन से इस कदर पीड़ित हैं कि वे अतिशीध्र भारत (India) में विलय को तैयार हैं।

पीओके के लोगों का कहना है कि वे वास्तविक रुप से वे भारत के ही हिस्सा हैं लेकिन पाकिस्तान ने जबरन उनपर कब्जा कर रखा है। पीओके के नागरिक पाकिस्तानी सेना के अत्याचार से ऊब चुके हैं और अब बगावत के लिए तैयार हैं। उनका हौसला इसलिए भी बुलंद है कि गुलाम कश्मीर को वापस लेने के लिए भारत मन बना लिया है।

याद होगा अभी 2022 में भारतीय सेना के प्रमुख रह चुके जनरल मनोज मुकुंद नरवाने ने कहा था कि अगर संसद आदेश देगी तो पीओके पर हमारा कब्जा होगा। यहां ध्यान रखना होगा कि देश के गृहमंत्री अमित शाह द्वारा भी संसद में कहा जा चुका है कि पीओके भारत का हिस्सा है और वह इसे लेकर रहेंगे। उधर, पीओके के नागरिक पाकिस्तानी सेना के बढ़ते अत्याचार और दमन के खिलाफ ‘करो या मरो’ के लिए कमर कस लिए हैं।

स्थानीय नागरिकों द्वारा पाकिस्तानी सेना के खिलाफ लगातार पाकिस्तानी फौजियों कश्मीर छोड़ों का आंदोलन चलाया जा रहा है। अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भी पीओके के राजनीतिक कार्यकर्ता जेनेवा में पाकिस्तानी सरकार के खिलाफ धरना-प्रदर्शन कर रहे हैं। उनकी मानें तो पाकिस्तान की सेना पीओके में मानवाधिकार का उलंघन कर रही है और प्राकृतिक संसाधनों को लूट रही है।

पीओके में बढ़ते अत्याचार और मानव अधिकारों को लेकर हो रहे प्रदर्शन से अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर पाकिस्तान की फजीहत बढ़ रही है। इससे बचने के लिए कभी उसके प्रधानमंत्री मुजफ्फराबाद का दौरा कर रहे हैं तो कभी भारत के खिलाफ अनर्गल प्रलाप कर दुनिया का ध्यान बंटा रहे हैं। लेकिन सच्चाई यहीं है कि उसके हाथ से अब पीओके सरक रहा है।

गौर करें तो पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर यानी पीओके यह मूल कश्मीर का वह भाग है जिस पर पाकिस्तान ने 1947 (indo pak war) में हमला कर जबरदस्ती अधिकार कर लिया था। जबकि असल में यह क्षेत्र भारत का है।

26 अक्टुबर, 1947 को कश्मीर के राजा हरि सिंह (kashmir king hari singh) ने पाकिस्तानी कबायली आक्रमणकारियों से बचने के लिए भारत सरकार से सैनिक सहायता की मांग की और कश्मीर को भारत में सम्मिलित करने की प्रार्थना की। भारत सरकार ने उनके प्रस्ताव को स्वीकार लिया और 6 फरवरी, 1954 को कश्मीर की संविधान सभा ने एक प्रस्ताव के जरिए जम्मू-कश्मीर राज्य का विलय भारत में होने की पुष्टि की।

भारत सरकार ने भारतीय संविधान में संशोधन कर 14 मई, 1954 को अनुच्छेद 370 के अंतर्गत जम्मू-कश्मीर को विशेष राज्य का दर्जा दिया और 26 जनवरी, 1957 को जम्मू-कश्मीर का संविधान लागू हो गया। पीओके की सीमाएं पाकिस्तानी पंजाब एवं उत्तर पश्चिमी सीमा प्रांत से पश्चिम में, उत्तर-पश्चिम में अफगानिस्तान के वाखान गलियारे से, चीन (China) के जिनजियांग उइगर स्वायत क्षेत्र से उत्तर और भारतीय कश्मीर से पूर्व में लगती है।

इस क्षेत्र के पूर्व कश्मीर राज्य के कुछ भाग ट्रांसकराकोरम ट्रैक्ट को पाकिस्तान द्वारा चीन को दे दिया गया है तथा शेष क्षेत्र को दो भागों (उत्तरी क्षेत्र एवं आजाद क्षेत्र) में विलय कर दिया गया। पाकिस्तान के कब्जे के बाद भारत ने दावा किया कि महाराजा हरि सिंह से हुई संधि के परिणामस्वरुप पूरे कश्मीर राज्य पर (पाक अधिकृत कश्मीर एवं आजाद कश्मीर) भारत का अधिकार है। लेकिन पाकिस्तान इसे मानने को तैयार नहीं है।

पाकिस्तान सेना की मदद से यहां के सामाजिक स्वरुप को योजनाबद्ध तरीके से बदला जा रहा है। दुनिया को यह पता है कि यहां पाक सेना और उसकी खुफिया एजेंसी आइएसआइ अपने खतरनाक मंसूबों को अंजाम देने के लिए आतंकियों को प्रशिक्षित कर रही है। यहां 1947 से ही भारत के खिलाफ आतंकवाद का प्रशिक्षण दिया जा रहा है। इसके लिए पाकिस्तान की भारत विरोधी आतंकी नीति ही जिम्मेदार है।

जम्मू-कश्मीर से अनुच्छेद 370 के हटने के बाद अब वह इस मसले पर भारत के खिलाफ दुष्प्रचार कर अपने चीन सरीखे मित्रों के जरिए भारत के खिलाफ मोर्चा खोलता रहता है। लेकिन उसे हर बार मुंह की खानी पड़ रही है। क्योंकि आज दुनिया का हर देश भारत के साथ कंधा जोड़ने को तैयार है।

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