कुश्के लाल अथवा किला मर्गजन अथवा दारुल अमन लाल महल (कुश्क लाल) को गयासुद्दीन बलबन ने 1255 ई. में बनवाया। इस महल के इतिहास की जानकारी बहुत कम है। जलालुद्दीन फोरोज शाह खिलजी कसे सफेद में अपनी ताजपोशी के पश्चात इस महल को देखने आया, और सुलतान बलबन की ताजीम के लिए, जो अल्तमश के बाद गुलाम खानदान के बादशाहों में सबसे मशहूर हुआ है, महल के सामने घोड़े पर से उतरा। कुश्के लाल में बलवन के दरबार में 15 शाही खानदान के शरणार्थी उसकी खिदमत में खड़े रहते थे और उसकी सरपरस्ती में सर्वश्रेष्ठ वैज्ञानिक तथा आलिम फूले फले।

इस महल से संबंधित दो और महत्वपूर्ण घटनाएं हैं, अर्थात बलवन और अलाउद्दीन खिलजी का दफन किया जाना। बरनी ने लिखा है कि सुल्तान बलवन की लाश कुश्के लाल से रात के वक्त निकाली गई और दारुल अमन में दफन की गई। वही लेखक बताता है कि शवात की छटी तारीख को सुबह के वक्त अलाउद्दीन की लाश सीरी के कुश्के लाल से निकाली गई और जामा मस्जिद के सामने एक मकबरे में दफनाई गई। ख्याल यह किया जाता है कि कुश्के लाल रायपिथौरा के किले में स्थित था।

बरनी ने यह भी लिखा है कि बलबन के पोते कैकबाद ने किलोखड़ी में एक नया किला बनाया और उसने शहर में रहना बंद कर दिया तथा कुश्के लाल भी छोड़ दिया। शहर से मतलब पुरानी (रायपिथौरा की) दिल्ली से है। जब बलवन रायपिथौरा के किले को आबाद कर चुका तो यह गैरमुमकिन नहीं है कि उसने अपनी रिहाइश किले की चारदीवारी के बाहर बना ली हो। सीरी में लाल महल का कोई जिक्र नहीं आता, जबकि पुरानी दिल्ली के लाल किले का जिक्र बार-बार आता है। अगर हम फरिश्ते की बात को स्वीकार करें कि अलाउद्दीन खिलजी सीरी बनाने से पूर्व लाल महल में रहा करता था, जहां उसकी लाश दफनाने के लिए ले जाई गई, तब वह बलबन का ही महल होना चाहिए जो संभवत: रायपिथौरा के किले में ही था, जिसे पुरानी दिल्ली कहते थे।

संभवतः इसको बलवन जब वह तख्तनशीन हुआ तो, 1266 ई. में तामीर कराया। इसका नाम दारुल अमन (रक्षा स्थल) भी पड़ा क्योंकि इब्नबतूता ने लिखा है कि जब कोई कर्जख्वार इस किले में दाखिल हो जाता था तो उसका कर्जा माफ कर दिया जाता था। इसी प्रकार हर व्यक्ति के साथ यहां इंसाफ होता था। हर एक कातिल को अपने विरोधी से छुटकारा मिल जाया करता था और हर भयभीत को रक्षा का आश्वासन इब्नबतूता जब तेरहवीं सदी में दिल्ली आया तो यह स्थान मौजूद था। उसने लिखा है- ‘बलबन ने एक इमारत बनाई, जिसका नाम रक्षा स्थल था। सुलतान को वहां दफन किया गया और मैंने खुद उसका मकबरा देखा है।’ बाबर भी इस महल और मकबरे को देखने आया था। उसने किले का जिक्र नहीं किया है। कहते हैं बलबन ने गयासपुर नाम का शहर भी बसाया था, लेकिन इस बात की तसदीक नहीं होती।

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