-मुगल काल के आखिरी दिनों में दिल्ली में बंगाल से आकर बसने लगे थे लोग

-1911 के दिल्ली दरबार में दिल्ली को राजधानी बनाने की घोषणा के बाद बड़ी संख्या में आए बंगाली

दिल्ली में दुर्गा पूजा का भव्य स्वरूप सीआर पार्क में ही दिखता है। दुर्गा पूजा शुरू होने पर शाम ढलते ही मां की आरती से सीआर पार्क गुंजायमान हो जाता है। हवाएं मानों भक्ति में झूमती है। कहीं से जायके की खुशबू आती है तो कहीं लोगों का हुजूम आस्था के सागर में गोते लगा रहा होता है। यही खूबियां चितरंजन पार्क को मिनी बंगाल का दर्जा देती हैं।

मुगल काल में बसे

इतिहासकारों की मानें तो मुगल काल के आखिरी दिनों में यानी 19वीं सदी के आखिर में बंगाली समुदाय के लोग दिल्ली में आकर बसे थे। ये लोग इलाहाबाद, बनारस, आगरा होते हुए दिल्ली आए थे। शुरूआती दिनों में इन्होंने अपना ठिकाना मोरी गेट, कश्मीरी गेट, बल्लीमारन, चांदनी चौक समेत पुरानी दिल्ली में बसे। सन 1911 में दिल्ली दरबार लगा। जिसमें कलकत्ता से दिल्ली राजधानी स्थानांतरित करने की घोषणा की गई। यही वह समय था जब सबसे ज्यादा बंगाली समुदाय दिल्ली आया। चूंकि पहले राजधानी कलकत्ता में थी तो वहां बंगाली समुदाय सरकारी नौकरी में सबसे ज्यादा था। इसलिए यहां वह बड़ी संख्या में आए। पहले पहल तो उन्हें सरकारी क्वार्टर मिले लेकिन धीरे धीरे आबादी बढ़ने के साथ वो सिविल लाइंस, कश्मीरी गेट, तिमारपुर, बुराड़ी में बस गए। वर्तमान में जहां आइएसबीटी है वहां पहले दुर्गा पूजा होती थी। यहां पहले स्टीफंस कालेज का प्लेग्राउंड था। इस दुर्गा पूजा में रविंद्र नाथ टैगोर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, कलाकार हेमंत कुमार समेत कई बड़ी शख्सियत शामिल हो चुकी है।

यूं बसा चितरंजन पार्क

इतिहासकार कहते हैं कि पुरानी दिल्ली में आबादी बढ़ने के बाद बंगाली समाज के लोग इधर उधर ठिकाना बनाने लगे। लेकिन सबसे ज्यादा स्थानांतरण दक्षिणी दिल्ली की तरफ हुआ। दरअसल, यहां 1960 में चितरंजन पार्क बसाया गया। स्वाधीनता के बाद पूर्व बंगाल का बहुत हिस्सा पाकिस्तान जाने के बाद लोगों को दक्षिणी दिल्ली में बसाया गया। जिसे पहले यूपीडीपी नाम से जाना जाता था। सन 1980 में इसका नाम प्रसिद्ध बंगाली स्वतंत्रता संग्राम सेनानी एवं समाज सेवक चितरंजन दास के नाम पर चितरंजन पार्क रखा गया।

पूजा का नहीं बदला स्वरूप

दिल्ली दुर्गा पूजा चैरिटेबल एवं कल्चरल समिति के डेकोरेशन सेक्रेटरी अरुण रॉय कहते हैं कि ईसाई धर्मावलंबी स्व. परमानंद विश्र्वास ने सन 1910 में चांदनी चौक में चार बंगाली युवकों के साथ मिलकर दुर्गा पूजा उत्सव की शुरुआत की थी। कलश स्थापना कर दुर्गा पूजा की जो परंपरा शुरू हुई, वह 107 सालों से धार्मिक सद्भावना की मिसाल बनी हुई है। यहां मां की प्रतिमा का डिजाइन सौ साल बाद भी नहीं बदला है। इतना ही नहीं दुर्गा पूजा में अब भी पूजा करने के लिए बनारस से पुजारी आते हैं। दुर्गा पूजा चांदनी चौक से कश्मीरी गेट एवं फिर सिविल लाइंस स्थानांतरित हो गई। करीब पचास सालों से दुर्गा पूजा सिविल लाइंस स्थित बंगाली सीनियर सेकेंडरी स्कूल परिसर में ही हो रही है।

सीआर पार्क यानी मिनी बंगाल

सीआर पार्क की इन दिनों रौनक बढ़ गई है। बंगाली व्यंजनों व मिठाईयों की खुशबू से हवाएं महक रही है। पोटल दोरमा, आलू भाजा कुरकुरे, तालशास संदेश, मधुमिता व गोपाल भोग का स्वाद लोगों की जुबान पर है। सीआर पार्क की एक नंबर व दो नंबर मार्केट में बांग्ला भाषामें लिखे दुकानों के नाम व बंगाली में बातचीत करते दुकानदारों को देखकर दिल्ली के बजाय कोलकाता का अहसास होता है। सीआर पार्क को ऐसे ही नहीं मिनी बंगाल कहा जाता है। इन बाजारों में बंगाली व्यंजन का पूरा पैकेज उपलब्ध है। बंगाली व्यंजनों के शौकीन लोग दूर-दूर से यहां पर आते हैं। दुकानदारों की मानें तो दुर्गा पूजा के दौरान इन बाजारों की रौनक देखते ही बनती है। दरअसल, उस दौरान यहां रहने वाले लोगों के दोस्त व रिश्तेदार भी बड़ी तादाद में यहां त्योहार मनाने आते हैं जिस कारण इन बाजारों में भीड़ और बढ़ जाती है।

क्या-क्या मिलता है

– इलिश शोरशे- सरसों की ग्रेवी में बनी मछली।

– मटन करी आलू- काली ग्रेवी में मटन के साथ आलू की डिश।

– रोहू कालिया- गाढ़ी ग्रेवी में रोहू मछली।

– तीलपिया फ्राई- बिना ग्रेवी के तली हुई मछली।

– मटन कोसा- प्याज व टमाटर की गाढ़ी ग्रेवी के साथ मटन।

– चिकन कोसा व चिकन कोरमा-टमाटर व प्याज से बनी विशेष कालिया ग्रेवी में।

– मोचाल घांटो-केले के फूल की बनी सब्जी

– ढोकार डालना- ढोकार यानी चने की दाल का पकौड़ा विशेष प्रकार की ग्रेवी में डालकर तैयार डिश।

– सुकतो- पांच प्रकाश की सब्जियों को मिलाकर दूध व घी के साथ तैयार किया जाता है। इनमें कच्चा केला, करेला, डांढा, मूली, गाजर व सीताफल प्रमुख हैं।

– पोटल दोरमा- पोटल (परवल) को अंदर से खाली कर उसमें पनीर, गाजर, खोया, बीन्स आदि भरकर फ्राई करके उसे विशेष प्रकार की ग्रेवी में डाला जाता है।

– आलू भाजा कुरकुरे- यह साइड डिश है। इन सभी डिशेज को चावल व रोटी के साथ सर्व किया जाता है।

– स्पेशल राधा-बल्लवी (पूड़ी-सब्जी), बंगाली वेज थाली में आलू-बैंगन की सब्जी, दाल व चावल आदि मिलता है।

– नॉनवेज स्नैक्स में फिश फ्राइ, फिश कटलेट, चिकेन कटलेट, मटन कटलेट, एग डेविल चॉप, वेज चॉप, मोचा चॉप आदि मिलते हैं।

– वहीं, वेज स्नेक्स में आलू, नारियल व पांच मेवे मिलाकर बना सिगारा (समोसा), आलू, गाजर, बीन्स, नारियल व मूली से बना वेज चॉप मिलता है। जबकि मिठाइयों में बूढ़ा-बूढ़ी, लवंगा लतिका, गाय हुलूत, खजूर-गुड़ के संदेश, चीनी का संदेश, बूंदी का लड्डू यानी डोरबेस, काचा गोला यानी पनीर का लडडू,रसगुल्ला, राजभोग, नारियल की बर्फी, बंगाली बूंदी, तालशास संदेश (गुड़ का), खीर का दम आदि मिलता है।

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