शाहजहां के समय की एक घटना मशहूर है। यह घटना दरअसल दिल्ली के एक लेखक से जुड़ी हुई है। कहा जाता है कि एक लेखक जिसे चिकित्साकर्म में दिलचस्पी थी, एक बार शिकार के लिए जंगल में गया। वह थककर अपने खेमे के बाहर बैठा हुआ था कि उसने देखा एक ओर से एक बिच्छू आ रहा था और उसने एक गिरगिट को, जो सामने आ रहा था, काट लिया। बिच्छू का डंक लगते ही गिरगिट तड़प गया और उस पर बेहोशी-सी छाने लगी थी।
मगर उसने खुद को सँभाला और अपने आपको घसीटते हुए एक झाड़ी में ले गया और उसने कुछ पत्ते खा लिए। जब पत्तों को खाने के बाद वह ठीक हो गया तो वह वापस आया और उसने बिच्छू पर हमला कर दिया। मगर बिच्छू ने फिर काट लिया और गिरगिट दर्द से तपड़ता हुआ उसी झाड़ी में पहुँचा और उसके पत्ते फिर चबाने लगा। ठीक होकर वह फिर लौटा और एक बार फिर बिच्छू पर टूट पड़ा। इस तरह वह चार बार बिच्छू से उलझा और अपनी आखिरी कोशिश में उसने बिच्छू को मार डाला। छानबीन करने पर लेखक को पता लगा कि जिस बूटी के पत्तों को गिरगिट ने चबाया था उसे चिरचिरा या चिरचिटा कहते हैं और उसमें ज़हर मारने की खासियत थी। ज़्यादा तफ्तीश करने के बाद वह यह साबित करने में कामयाब हो गया कि बिच्छू के काटे के कारगर इलाज के लिए उस झाड़ी के पत्ते और जड़ें अक्सीर थीं।