जलवायु परिवर्तन से जुड़े प्रभाव: बढ़ता समुद्र तापमान, ग्लेशियरों का पिघलना और आपदाओं की बढ़ती आशंका
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
1901-2018 के दौरान भारत में सतह के वायु तापमान में 0.7°C की वृद्धि दर्ज की गई है। इसके साथ ही, उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में समुद्र की सतह का तापमान 1951-2015 के बीच 1°C तक बढ़ा है। इन आंकड़ों ने जलवायु परिवर्तन के प्रभावों पर ध्यान केंद्रित किया है।
पृथ्वी विज्ञान मंत्रालय की रिपोर्ट और आईपीसीसी (इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज) की आकलन रिपोर्ट 6 (AR6) इस बात को रेखांकित करती हैं कि बढ़ते तापमान ने प्राकृतिक और मानव निर्मित प्रणालियों में व्यापक बदलाव किए हैं। इनमें सूखा, लू, बाढ़, विषम मौसम, और समुद्र के स्तर में वृद्धि जैसी समस्याएं शामिल हैं। यह स्थिति संवेदनशील आबादी और जैव विविधता पर प्रतिकूल प्रभाव डाल रही है।
जलवायु परिवर्तन के प्रभाव
तापमान और वायुमंडलीय नमी में वृद्धि
1901 से 2018 के दौरान भारत में सतह के वायु तापमान में 0.7°C की वृद्धि हुई है। इसके साथ वायुमंडलीय नमी में भी उल्लेखनीय वृद्धि दर्ज की गई है। यह परिवर्तन मौसम में अस्थिरता और प्राकृतिक आपदाओं की घटनाओं में वृद्धि का कारण बना है।
समुद्र की सतह का तापमान
1951-2015 के दौरान उष्णकटिबंधीय हिंद महासागर में समुद्र की सतह का तापमान 1°C बढ़ा है। इसका असर समुद्री पारिस्थितिकी तंत्र पर गहराई से पड़ा है। समुद्र का बढ़ता तापमान समुद्र स्तर में वृद्धि, कोरल रीफ के क्षरण और समुद्री जैव विविधता में कमी का कारण बन रहा है।
ग्लेशियरों का पिघलना
ग्लेशियर, जलवायु परिवर्तन के सबसे संवेदनशील संकेतक हैं। भारत के हिमालयी क्षेत्र में ग्लेशियर तेजी से पिघल रहे हैं। हिंदू कुश हिमालय क्षेत्र में ग्लेशियरों की औसत वापसी दर 14.9 ± 15.1 मीटर/वर्ष है।
चंद्रा बेसिन के ग्लेशियरों ने पिछले दो दशकों में लगभग 6% द्रव्यमान खो दिया है। भागा बेसिन में यह दर 2008-2021 के दौरान 6 से 9 मीटर जल समकक्ष (MWE) रही है। गढ़वाल हिमालय के डोकरियानी ग्लेशियर और चोराबाड़ी ग्लेशियर में क्रमशः 15-20 मीटर/वर्ष और 9-11 मीटर/वर्ष की दर से वापसी दर्ज की गई है।
जलवायु परिवर्तन और आपदाएं
बढ़ते तापमान और ग्लेशियरों के पिघलने से जलवायु आपदाओं की आशंका बढ़ गई है। इनमें हिमनद झील के फटने से बाढ़ (GLOF), हिमस्खलन, और मलबे के प्रवाह जैसी घटनाएं शामिल हैं।
भारत सरकार की पहल
राष्ट्रीय जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (NAPCC)
भारत सरकार ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कई योजनाओं और पहलों को लागू किया है।
NAPCC के तहत आठ प्रमुख मिशन चलाए जा रहे हैं, जिनमें शामिल हैं:
- सौर ऊर्जा मिशन: नवीकरणीय ऊर्जा के उपयोग को बढ़ावा।
- राष्ट्रीय जल मिशन: जल संरक्षण।
- सतत कृषि मिशन: पर्यावरण-अनुकूल कृषि पद्धतियों को बढ़ावा।
- हरित भारत मिशन: वनों और जैव विविधता का संरक्षण।
राज्य जलवायु परिवर्तन कार्य योजना (SAPCC)
राज्य स्तर पर SAPCC को लागू किया गया है। इन योजनाओं में जलवायु अनुकूलन और शमन प्रयासों पर विशेष ध्यान दिया गया है।
अंतर्राष्ट्रीय सहयोग
भारत ने अंतर्राष्ट्रीय मंच पर जलवायु परिवर्तन से निपटने में सक्रिय भूमिका निभाई है।
- अंतर्राष्ट्रीय सौर गठबंधन (ISA): सौर ऊर्जा के उपयोग को प्रोत्साहित करना।
- आपदा-प्रतिरोधी बुनियादी ढांचे के लिए गठबंधन (CDRI): आपदाओं से निपटने के लिए मजबूत ढांचा तैयार करना।
आईपीसीसी की चेतावनी
IPCC की AR6 रिपोर्ट के अनुसार, यदि ग्लोबल वॉर्मिंग को 1.5°C की सीमा में रखना है, तो 2050 तक शुद्ध शून्य उत्सर्जन (Net Zero Emissions) का लक्ष्य प्राप्त करना अनिवार्य है। रिपोर्ट में कहा गया है कि तापमान में वृद्धि के कारण पहले ही जलवायु संबंधी आपदाएं बढ़ रही हैं।
ग्लेशियरों के पिघलने का प्रभाव
पानी की उपलब्धता
ग्लेशियरों का पिघलना शुरू में जल प्रवाह को बढ़ा सकता है, लेकिन लंबे समय में जल संसाधनों की कमी का कारण बनता है। इससे कृषि, पीने के पानी, और जल विद्युत परियोजनाओं पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।
पर्यावरण और जैव विविधता पर प्रभाव
ग्लेशियर पिघलने से नदियों और पारिस्थितिकी तंत्र पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। यह जैव विविधता के नुकसान और पर्यावरणीय असंतुलन को बढ़ावा देता है।
आपदाओं का खतरा
ग्लेशियरों का तेज पिघलना हिमस्खलन और GLOF जैसी घटनाओं को बढ़ाता है। यह निचले क्षेत्रों में बाढ़ का खतरा उत्पन्न करता है।
समाधान
जलवायु परिवर्तन भारत और विश्व के लिए एक बड़ी चुनौती है। सतह के तापमान और समुद्र के तापमान में वृद्धि, ग्लेशियरों का पिघलना और प्राकृतिक आपदाओं की बढ़ती घटनाओं ने इस मुद्दे की गंभीरता को रेखांकित किया है।
भारत सरकार ने जलवायु परिवर्तन से निपटने के लिए कई ठोस कदम उठाए हैं, लेकिन इस समस्या का स्थायी समाधान वैश्विक स्तर पर समन्वय और सहयोग से ही संभव है। व्यक्तिगत और सामुदायिक स्तर पर भी जल संरक्षण, हरित ऊर्जा का उपयोग, और पर्यावरण के प्रति जागरूकता बढ़ाना आवश्यक है।