1962 Indian general election, लोकसभा चुनाव 1962
तीसरे लोकसभा चुनाव में कई ऐसी घटनाएं घटीं, जिनका भारतीय राजनीति पर दूरगामी असर पड़ा। इन घटनाओं ने भारतीय जनमानस की सोच को भी प्रभावित किया। वित्त मंत्री कृष्णामाचारी को त्यागपत्र तक देना पड़ा था।
फीकी पड़ी नेहरू की चमक
1962 Indian general election में नेहरू का करिश्मा उतार पर था। तीसरे लोकसभा चुनाव में भी कांग्रेस ने 361 सीटों के साथ जीत हासिल की, लेकिन पिछले दो चुनावों की तुलना में उसका प्रदर्शन कमजोर रहा। चुनाव से पहले पंडित नेहरू के ही दामाद सांसद फिरोज गांधी ने मूंदड़ा कांड उजागर किया था, जिसके चलते वित्त मंत्री कृष्णामाचारी को त्यागपत्र देना पड़ा था।
कुल सीटें—494
बहुमत के लिए—248
प्रत्याशियों ने लड़ा था चुनाव–1,985
दल थे चुनावी मैदान में–27
चुनाव की तारीख
19 फरवरी, 1962 से 25 फरवरी तक 1962 Indian general election संपन्न हुए।
दूसरे दलों का प्रदर्शन
1962 Indian general election में भारतीय जनसंघ को 494 में से 14 सीटों पर जीत मिली। वहीं कम्युनिस्ट पार्टी ने कुल 29 सीटें जीती। प्रजा सोशलिस्ट पार्टी ने भी 12 सीटों पर जीत दर्ज की। पहली बार हिस्सा ले रही सी. राजगोपालाचारी की स्वतंत्र पार्टी ने करीब आठ प्रतिशत वोट के साथ 18 सीटों पर जीत दर्ज की थी जोकि पहले चुनाव के लिहाज से उसके लिए बेहतर प्रदर्शन था।
मजबूती के साथ उभरी डीएमके
इस चुनाव में तमिलनाडु में डीएमके एक मजबूत पार्टी बनकर उभरी। राज्य में कांग्रेस ने 31 सीटें जीतीं, वहीं सात सीटें जीतकर डीएमके दूसरी सबसे बड़ी पार्टी बनी।
मतदान का प्रतिशत
इस चुनाव में सबसे ज्यादा मतदान केरल (70.55 फीसद) मे और सबसे कम मतदान ओडिशा (23.56 फीसद) में रिकार्ड किया गया था। 1962 के आम चुनाव में 55.4 प्रतिशत मतदाताओं ने अपने मताधिकार का प्रयोग किया।
चुनाव की अमिट स्याही पहली बार मैसूर में बनी स्याही का इस्तेमाल फर्जी वोटिंग रोकने के लिए इसी चुनाव में हुआ था।
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