अरब की सराय के गांव के पश्चिमी द्वार के निकट और हुमायूँ के मकबरे के नजदीक एक ऊंची चारदीवारी का अहाता है, जिसमें ईसा खां की बनाई हुई मस्जिद और मकबरा है। ईसा खां शेरशाह के दरबार का एक प्रभावशाली अमीर था और जब शेरशाह की मृत्यु के बाद उसके लड़कों में झगड़ा हुआ तो इसने सलीम शाह का साथ दिया और दिल्ली का तख्त दिलाने में उसकी बड़ी मदद की।

मस्जिद और मकबरा 1547 ई. में सलीम शाह के जमाने में बनाए गए थे। मस्जिद खार के पत्थर और चूने की बनी हुई है। यह करीब 186 फुट लंबी और 34 फुट चौड़ी है। फर्श से छत तक बीच वाला दरवाजा 29 फुट ऊंचा है और बीच का गुंबद 32 फुट ऊंचा है। मस्जिद के तीन महराबदार दरवाजे हैं। छत के बीच में एक बदनुमा गुंबद है। एक पैवोलियन जो आठ सुतूनों पर खड़ा है, बीच वाले गुंबद के दोनों ओर बना हुआ है। मस्जिद में तीन दरवाजे हैं।

ईसा खां का मकबरा इस मस्जिद के नजदीक ही बना हुआ है। यह अठपहलू है, जिसका व्यास 34 फुट है। इसमें तीन नोकदार महराबें लगी हैं। मकबरे के कोनों पर दोहरे खंभे लगे हुए हैं। कब्र संगमरमर और लाल पत्थर की है, जो 9 फुट लंबी, 4 फुट चौड़ी और 4 फुट ऊंची है। मकबरे में पांच कर्बे और हैं, जिनमें दो संगमरमर की हैं। यह मकबरा 1547 ई. में बना और इसकी बनावट सैयद तथा लोदी बादशाहों की इमारतों जैसी है।

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