(1528 ई. से 1535 ई.)
जमाली का नाम शेख फजल उल्लाह था। इन्हें जलाल खां और जलाली भी कहते थे। यह एक बड़े सैलानी, साहित्यकार और कवि हुए हैं, जिन्हें बादशाह ने बड़ा सम्मानित पद दिया था। यह दिल्ली के चार बादशाहों के प्रिय रहे। सिकंदर लोदी के काल में इनकी ख्याति सर्वोच्च थी और जब हुमायूं के जमाने में इनकी मृत्यु हुई, तब भी इनका बड़ा सम्मान था। धर्म सभाओं में इनकी शास्त्रार्थ शक्ति और वाक्पटुता के सब कायल थे और विद्वानों को भी इनकी बात माननी पड़ती थी। 1528 ई. में इन्होंने कुतुब साहब के पुराने गांव में एक मस्जिद और एक कमरा बनवाया। गांव के खंडहर तो अब तक पड़े दिखाई देते हैं।
जमाली हुमायूँ के साथ गुजरात गए थे, जहां 1535 ई. में इनकी मृत्यु हो गई। इनके शव को दिल्ली लाया गया और उसी कमरे में, जहां यह रहा करते थे, दफन किया गया।
जमाली की मस्जिद का नमूना मोठ की मस्जिद से हू-ब-हू मिलता हैं; केवल इतना अंतर है कि इनकी मस्जिद का एक गुंबद है, मोठ की मस्जिद के तीन हैं। जमाली की मस्जिद का गुंबद लोदी खानदान के उत्तर काल के नमूने का है। इमारत 130 फुट लंबी और 37 फुट चौड़ी है। फर्श से छत तक ऊंचाई 32 फुट है और छत से गुंबद की चोटी तक 10 फुट है। दीवारों और महराबों पर जगह-जगह खुदाई का काम किया हुआ है।