कहा जाता है कि शेरशाह ने दीनपनाह के किले को मजबूत किया और इसका नाम शेरगढ़ रखा। लेकिन तारीखे खांजहां में कहा गया है कि हुमायूं के मकबरे की चारदीवारी सलीम शाह ने बनवाई, जो शेरशाह का लड़का था। उसने सलीमगढ़ की इमारतें पूरी करवाकर फिर से बनवाई या उनकी मरम्मत करवाई।

शेरगढ़ उस शहर का किला था. जिसे शेरशाह ने इंद्रप्रस्थ के वीराने के एक हिस्से पर बनवाया था और अर्से तक वह शेरशाह की दिल्ली कहलाती रही। यह मुसलमानों की दसवीं दिल्ली थी। तारीखे शेरशाही में लिखा है कि दिल्ली शहर की पहली राजधानी यमुना से कुछ फासले पर थी जिसे शेरशाह ने तुड़वाकर फिर से यमुना के किनारे पर बनवाया और उस शहर में दो किले बनाने का हुक्म दिया–छोटा किला गवर्नर के रहने को और दूसरा तमाम शहर की रक्षा के लिए चारदीवारी के रूप में गवर्नर के किले में उसने एक मस्जिद बनवाई, लेकिन शहर की चारदीवारी पूरी होने से पूर्व ही शेरशाह मर गया।

इससे यह साफ जाहिर है कि सलीम शाह ने इस चारदीवारी को पूरा करवाया। शेरशाह की दिल्ली की हदबंदी बताते हुए कहा है। कि इसका दक्षिणी दरवाजा बारहपुला और हुमायूँ के मकबरे के निकट कहीं होगा। शहर की पूर्वी दीवार यमुना नदी के ऊंचे किनारे से घिरी हुई होगी, जो उस जमाने में फिरोज शाह के कोटले से दक्षिण को हुमायूँ के मकबरे की ओर वहा करती थी। पश्चिम में शहरपनाह का अंदाजा उस नाले से किया जा सकता है, जो अजमेरी दरवाजे के दक्षिण की ओर यमुना के बिलमुकाबिल करीब एक मील से ऊपर के अंतर पर बहकर जाता था।

इस प्रकार तमाम शहर का घेरा नौ मील से ऊपर था, शाहजहांबाद से दुगुना। तारीखे दाऊदी में लिखा है कि 1540 ई. में शेरशाह आगरा से दिल्ली गया और उसने सीरी में अलाउद्दीन के किले को मिसमार करवा दिया तथा यमुना के किनारे फीरोजाबाद व किलोखड़ी के बीच में इंदरपत से दो- तीन कोस की दूरी पर किला बनवाया। इस किले का नाम उसने शेरगढ़ रखा, लेकिन उसकी हुकूमत के मुख्तसर होने से वह अपने जीवन काल में इसे पूरा न करवा सका। किलोखड़ी बारहपुले के पुल से आगे तक फैली हुई थी।

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