पहाड़गंज-निजामुद्दीन के लोगों ने बादशाह से क्यों मांगी सुरक्षा

बगावत से दिल्ली का माहौल बहुत बिगड गया। अगर उस वक्त बादशाह दरबार में आए हुए पर्चों और अर्जियों को देखा जाए, तो पता चलता है कि कैसी लूट-खसोट हुई थी। यह अर्जियां ज्यादातर दिल्ली के आम लोगों की तरफ से थीं, जिनके पास अपने बचाव के लिए न हवेलियां थीं और न ही दरवाज़े । खासकर शहर के बाहरी इलाकों में रहने वाले गरीब लोग बिल्कुल असुरक्षित थे, जैसे किशनगढ़ और निजामुद्दीन। जहां के लोग न सिर्फ बागियों से ख़तरे में थे बल्कि उनका आसपास बसे हुए स्थानीय लोगों से भी कोई बचाव नहीं था। बिल्कुल शुरू बहादुर शाह जफर के सामने सुरक्षा की इल्तेजा करने जो लोग आए, वह पहाड़गंज से थे। उन्होंने ज़फ़र को बड़े अदब से उस जमाने के दस्तूर के मुताबिक उनके सारे अल्काब के साथ संबोधित किया, ‘जिल्ले सुब्हानी, खलीफतुज्जमां, साया-ए-खुदावंदी’ वगैरा वगैरा, लेकिन उनकी दर्खास्त से यह सचाई जाहिर होती है कि उनकी हुकूमत उस जमाने में कितनी बेबस थी।

“हम गरीब, जयसिंहपुर और शाहगंज के रहने वाले, जिसे पहाड़गंज के नाम से भी जाना जाता है, आपकी नूरानी खिदमत में यह अर्ज करने हाजिर हुए हैं कि शुरू जमाने से हमारी बस्ती आपकी मिल्कियत रही है। लेकिन अब अजमेरी दरवाजे से तिलंगे घुसकर हमारी दुकानों पर हमले करते हैं और दुकानदारों पर जुल्म करके सारा सामान उठाकर ले जाते हैं, और वह भी बगैर दाम दिए। और इतना ही नहीं बल्कि सिपाही भी बेरोक-टोक हम गरीबों और लाचारों के घर में घुस जाते हैं और जो कुछ उनको मिलता है लूट ले जाते हैं, यहां तक कि हमारी बान की चारपाइयां, पकाने के बर्तन और चूल्हा जलाने की लकड़ियां तक और जब भी हम आपके ताबेदार सेवक और हमारे मुअज्जिज शहरी उनसे इल्तेजा करते हैं कि हम पर यह आफत नहीं ढाएं, तो वह अपनी बंदूकें और तलवारें दिखाकर धमकाते हैं।

सिपाहियों की इस लूटमार से हम बर्दाश्त की इंतहा तक पहुंच चुके हैं और आपकी खिदमत में यह दर्खास्त करने आए हैं कि बादशाह सलामत अपनी इनायत की नज़र हमारी तरफ फेर दें और हम पर रहम करें और तिलंगों को शाही फरमान भेज दें कि वह अब हमको और नहीं सताएं। ताकि हम आलीजाह हुजूर के करम से अपनी ज़िंदगी अमन और चैन से गुजार सकें। ख़ुदा आपका इकबाल बुलंद करे और फतह और नामवरी का सूरज हमेशा आपके सर पर दरख्शां रहे।

शहर के व्यापारियों का एक और जत्था भी शिकायत करने किले में आया। उनका कहना था कि फौज ने उनका सारा सामान जब्त कर लिया है और एक कौड़ी भी नहीं दी। और फिर उन सबको धमकाया और मारा । बादशाह की उन लोगों की सुरक्षा करने की अक्षमता इससे जाहिर होती है कि छत्ता चौक बाजार, जो किले के अंदर ही था, के दुकानदारों की सुरक्षा करने के लिए भी ख़ासतौर से आदेश जारी करना पड़ा। ‘अगर कोई तिलंगा इस आदेश की नाफरमानी करे, तो उसकी फौरन रिपोर्ट की जाए। 160 बलवाइयों ने अजमेरी दरवाजे के बाहर बादशाह का अपना बर्फखाना भी लूट लिया और बगैर किसी मकसद के किले की सारी बर्फ नष्ट कर दी।” शाही हरकारों को भी शिकायत थी कि तिलंगे उन पर हमले करते हैं और उनके घरों में घुसकर उनका सामान लूट लेते हैं।

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