Lok sabha chunav 2024 : कुछ इस तरह संपादक से सांसद बने अटल बिहारी वाजपेयी
Lok sabha chunav 2024: देश में दूसरा आम चुनाव 1957 में हुआ। 24 फरवरी से 9 जून तक यानी करीब साढे तीन महीने तक मतदान की प्रक्रिया चली। तत्कालीन प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में कांग्रेस ने पहले लोकसभा चुनाव की तरह विशाल जीत हासिल कर सरकार बनाई। लेकिन ये चुनाव एक मायने में बहुत महत्वपूर्ण साबित हुआ। और वो था अटल बिहारी वाजपेयी का पहली बार सांसद चुना जाना। वहीं दूसरे लोकसभा चुनाव में पहली बार बिहार से बूथ कैप्चरिंग की खबरें भी आयीं।
बलरामपुर से लड़े चुनाव
21 अक्तूबर, 1951 को भारतीय जनसंघ का दिल्ली में पहला अधिवेशन आयोजित किया गया। इसमें सन् 1952 में होने वाले आम चुनाव के बारे में गहन चिंतन किया गया। इसका चुनाव चिह्न ‘दीपक’ था। इन चुनावों में भारतीय जनसंघ को विशेष सफलता तो नहीं मिली, लेकिन इस राजनीतिक दल की साख अवश्य बनने लगी। इस साख का परिणाम यह हुआ कि सन् 1957 के आम चुनाव में जब अटलजी लखनऊ, मथुरा और बलरामपुर से चुनाव मैदान से उतरे तो उन्हें बलरामपुर से विजय मिल गई।
दूसरे आम चुनाव में ही अटल बिहारी वाजपेयी पहली बार जीत दर्ज कर संसद पहुंचे। प्रधानमंत्री नेहरू उनकी भाषण देने की कला से बहुत प्रभावित हुए और कहा कि यह युवा एक दिन देश का प्रधानमंत्री बनेगा। पंडित नेहरू की यह वात सच साबित हुई और वर्ष 1996 में अटल बिहारी वाजपेयी देश के प्रधानमत्री बने।
इस चुनाव में भारतीय जनसंघ के कुल मिलाकर चार सांसद चुने गए थे। ये चारों सांसद पहले कभी किसी विधानसभा के भी सदस्य नहीं रहे थे। अतः ये चारों संसदीय नियमों एवं परिपाटी से अनुभवहीन ही थे, लेकिन इनमें कुछ कर गुजरने की ललक बहुत अधिक थी। अब जबकि लोकसभा चुनाव 2024 (Lok sabha chunav 2024) में कुछ ही दिन बचे हैं तो ऐसे में पूराने दिनों की यादें ताजा हो गई हैं।
हार भी झेली
अटल बिहारी वाजपेयी वर्ष 1962 यानी तीसरा लोकसभा इसी संसदीय क्षेत्र से हारे भी थे। लेकिन चौथे लोकसभा चुनाव यानी वर्ष 1967 में एक बार फिर जीते। हालांकि अब बलरामपुर गोंडा जिले से अलग होकर नया जिला हो गया है। अटल जी की सीट भी उसी जिले में चली गई। राम जन्म भूमि आंदोलन के दौरान भी अटल जी यहां खूब सक्रिय रहे।
दूसरे लोकसभा चुनाव में हुई बूथ कैप्चरिंग
देश में दूसरे आम चुनाव में पहली बार बूथ कैप्चरिंग की घटना हुई। बिहार के बेगूसराय जिले में रचियारी गाव के कछारी टोला बूथ को कब्जा किया गया। इसके बाद चुनावों में बूथ कैप्चरिंग की घटनाएं बढ़ने लगी। खास तौर पर बिहार में राजनीतिक दल बूथ कैप्चरिंग के लिए माफिया तक का सहारा लेने लगे।
यह भी पढ़ें:-
राजनीतिक दलों के चुनाव चिन्हों का इतिहास
पहले लोकसभा चुनाव से जुड़ी दिलचस्प जानकारियां