हिंदी सिनेमा की पहली ‘मां‘ जिसने तोड़े सारे बंधन, लक्स मॉडल से लेकर स्वतंत्रता सेनानी तक का अद्भुत सफर
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
Leela Chitnis: लीला चिटनिस, एक ऐसा नाम जो हिंदी सिनेमा के इतिहास में सुनहरे अक्षरों में दर्ज है। 9 सितंबर 1909 को कर्नाटक में जन्मीं इस अद्भुत महिला ने न सिर्फ अपने अभिनय से लाखों दिलों पर राज किया, बल्कि समाज की रूढ़ियों और अंग्रेजों के खिलाफ भी डटकर मुकाबला किया।
आजादी के आंदोलन में Leela Chitnis की भागीदारी
लीला Leela Chitnis का जन्म एक बेहद प्रगतिशील और शिक्षित परिवार में हुआ था। उनके पिता अंग्रेजी के प्रोफेसर थे, जिन्होंने समाज में फैली जाति-प्रथा का पुरजोर विरोध किया और ब्रह्म समाज की सदस्यता ली। यह उस दौर की बात है जब लड़कियों की शिक्षा को ज़्यादा महत्व नहीं दिया जाता था, लेकिन लीला ने न केवल अपनी स्कूली शिक्षा पूरी की, बल्कि कॉलेज से ग्रेजुएशन भी किया। उनकी शिक्षा ने उन्हें आत्मनिर्भर बनाया और यही वजह रही कि बाद में उन्होंने अपनी शर्तों पर जिंदगी जी।
महज 16 साल की उम्र में उनकी शादी डॉ. गजानन यशवंत चिटनिस से हुई, जो उनसे उम्र में काफी बड़े थे। शादी के बाद वे अपने पति के साथ ब्रिटेन चली गईं। यहीं से उन्होंने और उनके पति ने भारत की आज़ादी की लड़ाई में हिस्सा लेना शुरू किया। एक बार उन्होंने ब्रिटिश सरकार की नज़रों से बच रहे मानबेंद्र रॉय को अपने घर में पनाह दी थी। जब पुलिस को इस बात का पता चला तो उन्होंने लीला के पति को हिरासत में ले लिया। हालांकि बाद में सबूत न मिलने पर उन्हें छोड़ दिया गया, लेकिन इस घटना ने उनके साहस और देशभक्ति को उजागर किया।
तलाक और आत्मनिर्भरता का संघर्ष
भारत लौटने के बाद, लीला और उनके पति के रिश्ते में कड़वाहट आ गई और उन्होंने अलग होने का फैसला किया। उस दौर में तलाक लेना एक बहुत ही क्रांतिकारी और मुश्किल कदम था, खासकर तब जब समाज महिलाओं को इतनी आज़ादी नहीं देता था। तलाक के बाद लीला पर अपने चार बेटों की परवरिश की पूरी ज़िम्मेदारी आ गई।
बेटों को पालने के लिए उन्होंने पहले एक स्कूल में टीचर की नौकरी की, लेकिन आमदनी कम होने के कारण उन्होंने अभिनय की दुनिया में कदम रखने का फैसला किया। उन्होंने मराठी थिएटर ग्रुप ‘नाट्य मन्वांतर’ जॉइन किया। यह वो समय था जब महिलाएं सार्वजनिक रूप से काम नहीं करती थीं, खासकर फिल्मों और नाटकों में। लेकिन लीला ने इन सामाजिक बंदिशों की परवाह नहीं की।
बॉलीवुड में धमाकेदार एंट्री और अशोक कुमार के साथ जोड़ी
थिएटर में काम करने के बाद लीला Leela Chitnis ने फिल्मों में छोटे-मोटे रोल करने शुरू किए। उनकी पहली फिल्म ‘श्री सत्यनारायण’ 1935 में रिलीज़ हुई थी। लेकिन उन्हें असली पहचान 1937 में आई फिल्म ‘जेंटलमैन डाकू’ से मिली। इस फिल्म में उन्होंने एक लड़की का बोल्ड किरदार निभाया था जो आदमी के कपड़े पहनकर दुनिया के सामने आती है। इस किरदार ने उन्हें रातों-रात चर्चा में ला दिया।
1939 में रिलीज़ हुई फिल्म ‘कंगन‘ ने उनके करियर को एक नई दिशा दी। यह फिल्म भारत की पहली सिल्वर जुबली फिल्म बनी और इसमें उनके अपोजिट महान अभिनेता अशोक कुमार थे। इस फिल्म की सफलता के बाद लीला बॉम्बे टॉकीज़ की स्थायी अभिनेत्री बन गईं और उन्होंने उस समय की मशहूर अभिनेत्री देविका रानी की जगह ले ली। अशोक कुमार के साथ उनकी जोड़ी इतनी सफल रही कि दोनों ने कई सुपरहिट फिल्में दीं, जिनमें ‘आज़ाद‘, ‘बंधन‘ और ‘झूला‘ जैसी फिल्में शामिल हैं।
‘मां‘ के किरदार को अमरता
जैसे-जैसे लीला की उम्र बढ़ी, उन्होंने नायिका के किरदारों से खुद को दूर कर लिया और 1948 में उन्होंने दिलीप कुमार की फिल्म ‘शहीद’ में पहली बार मां का किरदार निभाया। उनका यह किरदार इतना प्रभावशाली था कि उसके बाद वह बॉलीवुड की सबसे पसंदीदा ‘मां’ बन गईं।
उन्होंने राज कपूर की फिल्म ‘आवारा’ और देव आनंद की फिल्म ‘गाइड’ में भी मां का किरदार निभाया। इन किरदारों में उनकी सहजता और भावनात्मक गहराई ने उन्हें एक अलग ही पहचान दी। उन्होंने पर्दे पर एक ऐसी मां को जीवंत किया जो अपने बच्चों के लिए संघर्ष करती है, उन्हें प्यार करती है और हर मुश्किल में उनके साथ खड़ी रहती है।
पहली भारतीय ‘लक्स‘ मॉडल
लीला चिटनिस Leela Chitnis सिर्फ एक अभिनेत्री ही नहीं थीं, बल्कि उन्होंने विज्ञापनों की दुनिया में भी इतिहास रचा। वह लक्स साबुन के विज्ञापन में आने वाली पहली भारतीय मॉडल थीं। उनसे पहले लक्स के विज्ञापनों में सिर्फ विदेशी मॉडल्स ही नज़र आती थीं। लक्स के विज्ञापनों पर उनकी तस्वीरें छपती थीं और लिखा होता था, “हमें बताओ लीला चिटनिस, तुम्हारी खूबसूरती का राज क्या है?” यह दिखाता है कि वह उस दौर में कितनी लोकप्रिय थीं।
लीला चिटनिस ने निर्देशन और फिल्म निर्माण में भी हाथ आजमाया। उन्होंने फिल्म ‘आज की बात‘ लिखी, प्रोड्यूस की और डायरेक्ट भी की। इस फिल्म में उन्होंने उस समय के नवोदित कलाकार अजीत खान को मौका दिया, जो बाद में बॉलीवुड के सबसे बेहतरीन विलेन बने।
उनकी आखिरी फिल्म 1987 में आई ‘दिल तुझको दिया‘ थी, जिसमें उन्होंने एक दादी का किरदार निभाया था। इस फिल्म के बाद उन्होंने हमेशा के लिए फिल्मों को अलविदा कह दिया और अपने बड़े बेटे के साथ अमेरिका चली गईं। 14 जुलाई 2003 को 93 वर्ष की आयु में उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कहा। लीला चिटनिस का जीवन संघर्ष, साहस और सफलता की एक अद्भुत कहानी है। उन्होंने हर उस बंधन को तोड़ा जो समाज ने महिलाओं के लिए बनाए थे। उनका नाम हमेशा हिंदी सिनेमा की ‘मां’ और एक साहसी महिला के रूप में याद किया जाएगा।
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