देश के सामाजिक-राजनीतिक परिदृश्य पर छोड़ी अमिट छाप
दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।
Leela Roy biography in hindi: विप्लवी लीला राय बहुमुखी व्यक्तित्व की धनी थीं जिन्होंने विभिन्न क्षेत्रों में अपने बहुमूल्य योगदान से देश के सामाजिक- राजनीतिक परिदृश्य पर अपनी अमिट छाप छोड़ी है। असाधारण रूप से साहसी महिला, संक्रिय राजनैतिक और सामाजिक कार्यकर्ता, लीला राय राजनीति, शिक्षा और पत्रकारिता सहित जिस भी क्षेत्र से जुड़ीं, उसी में उन्होंने अपनी योग्यता को सिद्ध किया। अपने दयालु स्वभाव के कारण उन्होंने इन सभी गुणों को आत्मसात् किया, जो वस्तुतः, दिल और दिमाग का शानदार मिलन था और इससे उनकी ख्याति पर चार चांद लगे। वह वस्तुतः निष्ठा और विनम्रता की प्रतिमूर्ति थीं।
Leela Roy Early Life, जन्म स्थान
2 अक्तूबर, 1900 को गोलपाड़ा, असम में जन्मों लीला राय सिलहट, बंगाल के निवासी गिरीश चन्द्र नाग और कुंजलता नाग की पुत्री थीं। बचपन से ही उनके जीवन पर उनके आदर्शवादी अभिभावकों का गहरा प्रभाव पड़ा। विदेशी शासन के अधीन अपने देश की सामाजिक समस्याओं और लोगों के कष्टों के प्रति वह सचेत थीं। वह देश में सामाजिक सुधारों और स्वतंत्रता आन्दोलन में अपनी भूमिका निभाने के लिए आतुर थीं।
Leela Roy education
लीला की प्रारम्भिक शिक्षा घर पर ही निजी तौर पर हुई और बाद में उन्हें असम में एक प्राथमिक विद्यालय तथा तत्पश्चात् ईडेन हाई स्कूल भेजा गया। 1921 में उन्होंने बेथून कालेज, कलकत्ता से स्नातक किया और अंग्रेजी में पद्मावती स्वर्ण पदक प्राप्त किया।
कालेज के दिनों में, अनेक अवसरों पर उनकी विद्रोही प्रवृत्ति सामने आयो। विश्वविद्यालय प्रशासन से छात्राओं को अध्ययन करने की अनुमति देने के मुद्दे पर संघर्ष में विजयोपरांत, उन्होंने 1923 में ढाका विश्वविद्यालय से अंग्रेजी में स्नातकोत्तर किया।
एक प्रतिष्ठित पिता की गुणी, शिक्षित और सुन्दर पुत्री के रूप में, उनके सामने जीवन के अनेक विकल्प थे परन्तु उन्होंने अपने लिए संघर्षपूर्ण और अनिश्चित मार्ग चुना। परिवार और समाज में महिलाओं की निम्नतर स्थिति से उन्हें दुखः होता था। उनके अनुसार देश में महिला शिक्षा की सुविधाओं में कमी इसका मूल कारण था।
Leela Roy Social work
Leela Roy ने निष्ठापूर्वक महिला शिक्षा के मुद्दे को उठाया और ढाका में लड़कियों के लिए हाई स्कूल की स्थापना की। यह एक महान उपलब्धि थी क्योंकि उस समय ढाका में लड़कियों का केवल एक सरकारी स्कूल चलाया जाता था। इसके साथ ही उन्होंने “दीपाली छात्र संघ” के नाम से एक महिला संगठन की स्थापना को। इसकी गतिविधियों के अंतर्गत कुछ प्राथमिक और हाई स्कूलों की स्थापना और दस्तकारी प्रशिक्षण केन्द्रों की स्थापना करना शामिल था जिससे लड़कियां आर्थिक रूप से कुछ हद तक आत्मनिर्भर हो सकती थीं। इसके अलावा, आत्मरक्षा के लिए लड़कियों को सामरिक कला (मार्शल आर्ट) भी सिखाया जाता था।
Leela Roy Political activity
महिला शिक्षा तथा “दीपाली छात्र संघ” की विभिन्न गतिविधियों और भारत की स्वतंत्रता के लिए राजनैतिक गतिविधियों में व्यस्त रहते हुए भी 1930 में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ टैगोर के आशीर्वाद से लीला राय ने एक नयी पत्रिका “जय” का प्रकाशन आरंभ किया जो पूर्णतः महिला द्वारा संपादित और संचालित थी तथा इसमें केवल लेखिकाओं के लेख होते थे।
इसी वर्ष उन्होंने ढाका में नमक आन्दोलन में सक्रिय रूप से भाग लिया और इस प्रयोजनार्थ, ढाका महिला सत्याग्रह संघ का गठन किया। इन कार्यों में रेनू सेन, बीना राय और शकुन्तला चौधरी सहित अनेक कार्यकर्ताओं ने इनकी सहायता को थो। जब 1930 में संघ के नेता अनिल राय को गिरफ्तार किया गया तब लोला को पार्टी का कार्यभार संभालना पड़ा। 1931 में, उन्होंने अपने महयोगियों के साथ गिरफ्तारी दी।
Role in India’s Independence Movement
1937 में, जेल से रिहा होने के पश्चात् वह कांग्रेस में शामिल हुईं और उनके नेतृत्व में बंगाल प्रान्तीय कांग्रेस महिला संगठन का गठन किया गया। इनकी क्षमता और योग्यता से प्रभावित होकर सुभाष चन्द्र बोस ने इन्हें राष्ट्रीय आयोजना समिति की महिला उप- समिति का सदस्य बना दिया।
जब उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक का गठन किया तो वह इसकी केन्द्रीय कार्यकारी निकाय की सदस्या बनीं। वर्ष 1940 में उन्हें साप्ताहिक पत्रिका फॉरवर्ड ब्लॉक का सम्पादक नियुक्त किया गया।
Contribution to Constitution Making
राष्ट्रीय हित के लिए भारत छोड़ने से पूर्व सुभाष चन्द्र बोस ने उत्तर भारत में अपनी पार्टी का सम्पूर्ण प्रभार अनिल राय और लीला राय को सौंप दिया। वह अपने सहयोगियों के साथ पुनः गिरफ्तार की गईं और 1946 तक उन्हें नजरबंद रखा गया। रिहा होने के पश्चात् उन्होंने फॉरवर्ड ब्लॉक और जय का सम्पादन शुरू कर दिया। इसी वर्ष वह बंगाल से भारतीय संविधान सभा के लिए चुनी गयीं।
वर्ष 1946 में, उन्होंने बचाव और राहत कार्य के लिए राष्ट्रीय सेवा संस्थान की स्थापना की। जब कलकत्ता और नोआखाली में दंगे हुए तो वह पीड़ितों की सहायता करने दौड़ पड़ीं। लोगों की जानें बचाने के उनके प्रयासों की गांधी जी ने भी सराहना की।
Later Contributions
विभाजन के पश्चात्, इन्होंने पश्चिम बंगाल में ” जातीय महिला संगति” नामक महिला संगठन का गठन किया। जब 1949 में फॉरवर्ड ब्लॉक का विभाजन हुआ तब वह पश्चिम बंगाल फॉरवर्ड ब्लॉक (सुभाष) की महासचिव बनीं। 1951 और 1952 में, वह क्रमशः स्थानिक आन्दोलन और खाद्य आन्दोलन के संबंध में गिरफ्तार की गई। जब 1954 में सुभाष फॉरवर्ड ब्लॉक का प्रजा समाजवादी पार्टी के साथ विलय हुआ तब लोला राय राष्ट्रीय कार्यकारी सदस्य बन गयीं और 1960 में वह इस पार्टी को चेयरमैन बनीं। दो वर्षों के पश्चात्, यद्यपि इन्होंने सक्रिय राजनीति छोड़ दो लेकिन वह अपने पुराने कामरेडों का मार्गदर्शन करती रहीं। लोला राय का निधन 11 जून, 1970 में हुआ।
हमारे स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में लीला राय को ओजस्वी व्यक्तित्व वाले असाधारण नेता के रूप में लम्बे समय तक याद रखा जाएगा। सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में उन्होंने महिला शिक्षा में अपूर्व योगदान दिया। उन्होंने अपना उदाहरण प्रस्तुत करके तथा अपने ज्ञान द्वारा स्वतंत्रता आन्दोलन में महत्वपूर्ण योगदान दिया। एक महान महिला और असाधारण इन्सान के रूप में उन्होंने अपने देश और जनता को सर्वस्व न्यौछावर कर दिया।