भारत-चीन युद्ध से पहले का घटनाक्रम भी कम महत्त्वपूर्ण नहीं था। कुलदीप नैयर ने अपनी किताब एक जिंदगी काफी नहीं में इस पर विस्तार से लिखा है। उन्होने तत्कालीन सेना प्रमुख जनरल पी. एन. थापर और तत्कालीन रक्षा मंत्री कृष्ण मेनन के साथ अपनी बातचीत के आधार पर घटनाक्रमों को टटोलने की कोशिश की है। उन्होने लिखा कि देश भर में हो रही आलोचनाओं से तंग आकर नेहरू ने थापर को चीनी सैनिकों को भारतीय इलाके से बाहर खदेड़ने का आदेश दिया। सेना प्रमुख ने हिचकिचाहट का प्रदर्शन किया। क्योंकि उन्हें लगता था कि ऐसा करना मधुमक्खियों के छत्ते में हाथ डालना होगा।

कृष्ण मेनन की अध्यक्षता में एक मीटिंग रखी गई। वे कोई कार्रवाई करने पर आमादा थे। थापर ने उन्हें समझाया कि भारतीय सेना के पास इतनी ताकत नहीं थी। एक भारतीय जवान की तुलना में छह चीनी सैनिक थे। मेनन ने बड़े विश्वास से कहा कि वे जेनेवा में चीनी उपप्रधानमंत्री चेन यी से मिले थे और उन्होंने भरोसा दिखाया था कि चीन सीमा के मामले को लेकर भारत पर कभी हमला नहीं करेगा। जब मैंने मेनन से खासतौर से पूछा कि क्या जनरल थापर द्वारा मुझे दी गई जानकारी सही थी तो उन्होंने कहा, “वह पोपली बुढ़िया। उन्हें पता ही नहीं था कि लड़ाई कैसे लड़ी जाती है।”

थापर ने कुलदीप नैयर को बताया था कि 1960 में जब वे सेना प्रमुख बने थे तो उन्होंने सरकार को एक नोट भेजा था। इस नोट में उन्होंने लिखा था कि सेना का साजोसामान इतनी खस्ता हालत में था और इतनी कम तादाद में था कि चीन या पाकिस्तान भारत को आसानी से हरा सकता था। उनका यह बयान नेहरू के उस बयान से बिलकुल भी मेल नहीं खाता था जो उन्होंने लोकसभा में दिया था और जिसे मैंने प्रेस गैलरी से सुना था। नेहरू ने कहा था, “मैं सदन को बताना चाहूँगा कि आजादी के बाद कभी भी हमारी सुरक्षा इससे बेहतर हालत में और इतनी बेहतरीन तैयारी में नहीं रही है।”

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