दिल्ली और गांधी

आते जाते लोगों का कारवां। कोई हंसते हुए तो कोई चेहरे पर गंभीर भाव के साथ गुजर रहा है। इन सबके बीच शांत मुद्रा में खड़े गांधी जी। कहीं एकला चलो का संदेश देते तो कहीं विश्व बंधुत्व, शांति, सदभाव का पाठ पढ़ाते। श्रद्धा ऐसी कि बरबस ही हर आते जाते व्यक्ति का सर सजदा हो जाता है। महात्मा गांधी का दिल्ली से खास लगाव था। यही वजह है कि दिल्ली में एक दो नहीं कई ऐसी जगहें हैं जहां बापू से जुड़ी यादों को सहेजा गया है। कहीं उनसे जुड़े दस्तावेजों, फोटो, पेंटिंग के जरिए तो कहीं मूर्ति के रूप में। अपनी जिंदगी के आखिरी 144 दिन गांधी ने दिल्ली में ही गुजारे थे। इस आर्टिकल में हम दिल्ली-एनसीआर में गांधी की मूर्तियों एवं उनसे जुड़े किस्से बताएंगे।

यूं शुरू हुआ मूर्ति लगाने का सिलसिला

दिल्ली में चौक-चौराहों पर प्रतिमा, मूर्ति लगाने की परंपरा ब्रिटिश शासन की देन है। उन्होंने मौजूदा संसद के आसपास अपने कई गवर्नर जनरलों की मूर्तियां लगाई। कश्मीरी गेट क्षेत्र में भी ठीक कश्मीरी गेट के बाहर 1857 के ब्रिटिश फौजी जनरल निकल्सन का बुत निकल्सन पार्क में लगाया गया। सफेद संगमरमर की इस मूर्ति का अनावरण 6 अप्रैल 1906 को लार्ड मिंटो ने किया था। इसी तरह मोरी गेट के बाहर कचहरी के पास वाले चौराहों पर लाल पत्थरों के चबूतरों पर टेलर के परिवार वालों ने उसका बुत लगाया था। निकल्सन और टेलर दोनों ही 1857 के विद्रोह को दबाने वालों में प्रमुख थे। अब ये दोनों बुत हटाए जा चुके हैं। नई दिल्ली में लार्ड कर्जन, लार्ड इरविन आदि के बुत संसद के आसपास थे। तो जार्ज पंचम की एक विशाल मूर्ति इंडिया गेट पर लाल पत्थर की छतरी के नीचे संगमरमर की लगाई गई थी। यह चालीस के दशक के आरंभ में ही लगी थी। यह प्रतिमा कुछ वर्ष पूर्व कनाडा भेजी जा चुकी है। इसकी जगह राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की ध्यान अवस्था वाली मूर्ति स्थापित है।

70 साल बाद राजघाट पर मूर्ति

इंदिरा गांधी ने दिल्ली के बारे में एक बार कहा था कि दिल्ली के चारो ओर बहुत सी निशानियां है, जो सदियों पुराने इतिहास की झलक देती है। इन्हीं मे से एक जगह राजघाट भी है। जो सिर्फ ना केवल गांधी की यादों को संजोए है बल्कि उनके विचारों के अनुसरण की प्रेरणा यहां मिलती है। यहां गांधी की समाधि तो है लेकिन विगत 70 सालों से मूर्ति नहीं थी। गत वर्ष एक मूर्ति लगाई गई है। उप राष्ट्रपति एम वैंकेया नायडू ने कांसे से बनी 1.80 मीटर ऊंची प्रतिमा का अनावरण किया था। राजघाट पदाधिकारियों के मुताबिक प्रतिदिन राजघाट आने वाले लगभग दस हजार सैलानियों के लिये बापू की प्रतिमा आकर्षण का केन्द्र है। देश विदेश से आने वाले सैलानी, राजनियक और राष्ट्राध्यक्ष काले ग्रेनाइट पत्थर से निर्मित समाधि पर बापू को श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। अब वे प्रतिमा का दर्शन भी करते हैं। मशहूर शिल्पकार राम सुतार द्वारा निर्मित गांधी जी की प्रतिमा को राजघाट के पार्किंग क्षेत्र में ग्रेनाइट की दो फुट ऊंची आधारशिला पर स्थापित किया गया है। आधारशिला पर हिंदी और अंग्रेजी में लिखा है- खुद में वह बदलाव लाओ,जो तुम देखना चाहते हो। पार्किंग परिसर में ही पर्यटकों के लिये निर्मित व्याख्यान केन्द्र में महात्मा गांधी के जीवन से जुड़ी प्रमुख घटनाओं और उनके कार्यो की जानकारी डिजिटल एलईडी स्क्रीन के माध्यम से दी जाती है।

सूत में शांति है-

टाउन हाल के पीछे कंपनी बाग में राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की साढ़े सात फुट लंबी एक कांस्य की मूर्ति लगी है। जो 21 फुट ऊंचे संगमरमर के स्तंभ पर स्थापित है। इसमें एक हाथ में गांधी जी लाठी लिए हुए चलते दिखाई दे रहे हैं और याद करा रहे हैं कवि रविन्द्र की पंक्ति-एकला चलो रे और उपनिषद की पंक्ति चरैवेति-चरैवेति। गांधी जी की इस प्रतिमा का अनावरण राष्ट्रपति डॉ राजेंद्र प्रसाद ने 11 अक्टूबर 1954 को किया था। बापू की इस मूर्ति के स्तंभ पर चरखा बना हुआ है, जिसके नीचे लिखा है। चरखा अहिंसा का प्रतीक है। सूत में मेरा राम नाचता है। मैं सूत में स्वराज पाता हूं। सूत में शांति है-बापू। प्रतिमा के पिछले हिस्से पर पुरानी दिल्ली रेलवे स्टेशन की ओर लिखा है कि राष्ट्र को समर्पित। टाउन हाल की ओर प्रतिमा का मुख है। सामने की तरफ राष्ट्रपिता का नाम और जन्म एवं मृत्यु तिथि। साथ ही नीचे पपंडित जवाहर लाल नेहरू का यह प्रसिद्ध वाक्य लिखा है कि वह जहां बैठे वह स्थान एक मंदिर बन गया और जहां वह चले वह जगह पोली हो गई।

ग्यारह मूर्ति

यह ऐतिहासिक मूर्ति सरदार पटेल मार्ग पर स्थित है। यह भारत की विविधता में एकता और गांधी के नेतृत्व में भारत की विकास यात्रा को दर्शाती है। प्रसिद्ध शिल्पकार देवी प्रसाद राय चौधरी ने इस ऐतिहासिक मूर्ति को बनाया है। ललित कला अकादमी की स्थापना का श्रेय भी राय चौधरी को ही जाता है। यह मूर्ति आजादी के आंदोलन एवं उसमें लोगों की सहभागिता की कहानी बयां करती है। इसमें गांधी जी सबसे आगे चल रहे हैं। जबकि उनके पीछे 10 लोग चल रहे हैं। ये दस लोग, भारत के अलग-अलग जाति, धर्म, सम्प्रदाय का प्रतिनिधित्व करते हैं।

गांधी की निगरानी में संसद

संसद भवन परिसर की निगरानी करती महात्मा गांधी की यह प्रतिमा सन 1993 में गांधी जयंती के दिन लगाई गई थी। राम वी सुतार ने इसे बनाया है। 16 फीट की इस मूर्ति में गांधी ध्यानमुद्रा में बैठे हैं। जानकारों की मानें तो पहले यह मूर्ति इंडिया गेट के लॉन में लगाई जानी थी लेकिन बाद में किन्हीं कारणों से वहां नहीं लग पायी। जिसके बाद मूर्ति संसद भवन में लगाई गई।

गांधी स्मृति

बिरला भवन में 30 जनवरी 1948 को प्रार्थना सभा में जाते महात्मा गांधी की गोली मारकर हत्या की गई थी। अब यह भवन गांधी स्मृति स्थल के नाम से जाना जाता है। गांधी स्मृति में प्रवेश करते ही गांधी की प्रतिमा दिखती है। इस प्रतिमा में गांधी अपने दोनों हाथों से एक छोटे बच्चे और बच्ची को पकड़े हैं। फाइबर ग्लास की बनी इस मूर्ति को भी राम वी सुतार ने बनाया है। यह भवन 15 अगस्त 1973 से आम लोगों के लिए बतौर संग्रहालय खोला गया है। प्रतिदिन करीब तीन हजार से ज्यादा लोग यहां आते हैं।

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