दिल्ली को गांधी ने क्यों कहा मृत शहर
बापू का चश्मा, उनकी पेन, चरखा, सूत, बाल्टी, चप्पल समेत ना जाने कितनी ऐसी यादें है जिन्हें दिल्ली ने अब तक अपने दिल में संजोकर रखा है। यहां की गलियों में गांधी आज भी जीवंत है। वाल्मीकि मंदिर और किंग्सवे कैंप स्थित हरिजन सेवक संघ में गांधी प्रवास के दौरान उपयोग में लायी गई चीजें आज भी गांधी प्रेमियों के दर्शन के लिए प्रदर्शित की गई है। दिल्ली का गांधी से जुड़ाव का ही नतीजा है कि यहां महात्मा गांधी मार्ग से लेकर गांधी नगर मार्केट तक हैं। शिक्षण संस्थान हो या फिर सरकारी विभागों के आफिस कमोबेश हर जगह गांधी की मूर्ति, फोटो दिख जाती है। इस आर्टिकल में वाल्मीकि मंदिर और हरिजन सेवक संघ में सहेंजी गई गांधी की स्मृतियों एवं उनसे जुड़ी कहानियां आपको बताएंगे।
वाल्मीकि मंदिर
मंदिर मार्ग स्थित वाल्मीकि कालोनी को पहले भंगी कालोनी कहकर बुलाया जाता है। यहां गांधी 1 अप्रैल 1946 से 1 जून 1947 तक रहे। ऐसा कहा जाता है कि हर वर्ष अप्रैल महीने में गांधी यहां जरूर आते थे। आज भी उनकी याद एक कमरे को जीवित रखे हुए हैं। इस कमरे में गांधी की पंडित जवाहर लाल नेहरू, सीमांत गांधी , लार्ड माउंटबेटन समेत कई अन्य लोगों के साथ तस्वीरें लगी है। गांधी जिस टेबल पर पत्र लिखते थे, वो आज भी यहां मौजूद है। गांधी का तख्त भी है। यहीं रहते हुए गांधी लार्ड माउंटबेटन, क्रीप्स कमीशन, सर पैट्रिक लारेंस से मिले और यहीं कई आजादी के आंदोलनों की रूपरेखा तैयार की गई। स्थानीय निवासियों ने बताया कि ऐसा कहा जाता है कि गांधी जब भी दिल्ली आते थे, यहीं रहते थे। वो भंगी कालोनी में जाते एवं साफ सफाई समेत अन्य सुविधाओं का मुआयना करते थे। पास ही स्थित स्कूल में कभी कभार गांधी बच्चों को पढ़ाते भी थे।
गांधी-इरविन समझौते का आधार
वाल्मीकि मंदिर गांधी-इरविन समझौते का आधार भी है। यहां इससे जुड़े कई अहम विचार विमर्श गांधी ने किए थे। दरअसल, मार्च और अप्रैल 1930 के बीच, महात्मा गांधी ने समुद्री जल से नमक का उत्पादन करने के लिए, समुद्र के तटीय गांव दांडी से नमक सत्याग्रह या नमक मार्च की शुरुआत की थी। यह सविनय अवज्ञा आंदोलन का पहला कदम था। इसके कारण अंग्रेजों को सत्याग्रहियों के साथ-साथ महात्मा गांधी को भी गिरफ्तार करना पड़ा था। काफी हंगामा इस पर मचा। जिसके बाद लॉर्ड इरविन इस परेशानी से निजात पाने के लिए, महात्मा गांधी से बातचीत करने के लिए राजी हो गया था और इसलिए वर्ष 1931 में महात्मा गांधी को जेल से रिहा कर दिया गया था। इस प्रकार, दोनों लोग महात्मा गांधी और इरविन ने अपनी-अपनी बात प्रस्तुत की और वर्ष 1931 में सहमति जताते हुए गांधी-इरविन समझौते पर हस्ताक्षर किए।
संघी कार्यकर्ताओं को किया संबोधित
नरेंद्र सहगल अपनी पुस्तक भारतवर्ष की सर्वाग स्वतंत्रता में लिखते हैं कि वाल्मीकि बस्ती में गांधी जी रहते थे। उस समय सरसंघ चालक माधवराव सदाशिव राव गोलवलकर थे। सितंबर 1947 को गांधी जी ने विभाजन के तुरंत बाद गुरुजी से मिलने की इच्छा जताई। गुरूजी तुरंत उनसे बिड़ला भवन में मिले। बातचीत के दौरान गांधी जी ने संघ के किसी कार्यक्रम में जाकर स्वयंसेवकों को संबोधित करने की इच्छा जताई। 16 सितंबर 1947 को बिड़ला भवन की निकटवर्ती भंगी कालोनी में एक मैदान में कार्यक्रम रखा गया। करीब 500 से ज्यादा संघ के स्वयं सेवकों को महात्मा गांधी ने संबोधित किया।
दिल्ली को गांधी ने क्यों कहा मृत शहर
नवजीवन पब्लिकेशन, अहमदाबाद द्वारा प्रकाशित किताब दिल्ली डायरी में सितंबर 1947 की एक रैली का जिक्र है। जिसमें लिखा गया है कि भीड़ काफी थी। भीड़ देखकर यह अंदाजा नहीं लगाया जा सकता था कि शहर में कफ्र्यू लगा है। संबोधित करते हुए महात्मा गांधी ने कहा कि जब वो शाहदरा रेलवे स्टेशन पहुंचे तो सरदार पटेल, राजकुमारी समेत कई अन्य ने रिसीव किया। लेकिन उन्होंने पटेल के चेहरे से मुस्कान गायब पायी और पटेल का वो चिरपरिचित अंदाज में जोक कहना भी गायब था। यहीं नहीं रेलवे स्टेशन पर जो भीड़ थी वो भी शांत थी। गांधी ने कहा कि हैरानी हुई कि आखिर प्रसन्न रहने वाले दिल्ली अचानक मृत शहर में कैसे तब्दील हो गई।
भेदभाव मिटाने की पहल हरिजन सेवक संघ
किंग्सवे कैंप स्थित हरिजन सेवक संघ की स्थापना खुद गांधी जी ने की थ्थी। अध्यक्ष शंकर कुमार ने बताया कि वर्ष 1932 में तत्कालीन ब्रिटिश प्रधानमंत्री द्वारा किए गए साम्प्रदायिक निर्णय, जिसमें तथाकथित अछूतों के लिए पृथक निर्वाचन की पद्धति को स्वीकार किए जाने के विरोध में इस संगठन (हरिजन सेवक संघ) की स्थापना गांधी के द्वारा की गई। यहां गांधी का प्रार्थना स्थल, धर्म स्तंभ, कस्तुरबा संग्रहालय, बापा आश्रम विद्यालय, महादेव देसाई पुस्तकालय और संग्रहालय, महात्मा गांधी योगा केंद्र सहित औषधालय, स्मार्ट अकेडमी फोर हैल्थ केयर, बाहरी राच्यों से आने शिक्षा ग्रहण करने के लिए आई युवतियों के लिए होस्टल व नेचुरोपैथी शामिल है। प्रार्थना मंदिर में किसी भी भगवान की मूर्ति नहीं लगाई गई। इसे इसलिए बनाया गया था कि यहां सभी धर्म के लोग बिना जाति आधार के एक साथ बैठकर देशीय समस्या पर बात कर सके। स्वयं गांधी भी यहां पर सभी के साथ बैठकर समस्या पर बात करते थे। 1930 से 40 के बीच महात्मा गांधी और कस्तुरबा गांधी यहां आया करते थे।