चार दोस्त एक साथ बैठें हों, पुराने फिल्मों की जिक्र छिड़ा हो तो मिथुन चक्रवर्ती का नाम आना लाजमी है। अगर मिथुन की बात होगी तो उनके एक्शन की भी जरूर चर्चा होगी। कैसे मिथुन रुमाल से ही दुश्मनों को मार गिराते थे। लेकिन क्या आपको पता है कि दुश्मनों को रुमाल से परास्त करनेे की इस कला का नाम क्या है? दिल्ली में एक दोे नहीं कई सौ सालों से इसका प्रयाेग किया जा रहा है। तो आइए आपको इसके बारे में विस्तार से बताते हैं।

बिनौट पुरानी दिल्ली की एक बहुत लोकप्रिय कला थी। इसका नियमित अभ्यास करने वाले उससे कारगर नतीजे हासिल कर लेते थे। इसमें जो हथियार इस्तेमाल किया जाता था वह एक रूमाल था जिसके कोने में एक सिक्का बंधा हुआ होता था। उसको तेजी से घुमाकर प्रतिद्वंदी की किसी हड्डी के जोड़ पर ऐसा प्रहार किया जाता था कि उसका हथियार हाथ से छूटकर दूर जा गिरता था और वह दर्द के मारे बिलबिला उठता था।

कभी-कभी तो यह चोट इतनी सख्त होती थी कि इससे मौत तक हो जाती। इमदाद साबरी ने 1881 ई. में हुई एक घटना का उल्लेख किया है। एक भीमकाय कैदी जिस पर कत्ल के अपराध का मुकदमा चल रहा था, पुलिस की हिरासत से हथकड़ियां तोड़कर भाग निकला और जाते हुए अपने रक्षक सिपाही से उसकी तलवार भी छीनकर ले गया। वह तलवार घुमाता हुआ अदालत के अहाते से निकलकर बाहर सड़क पर आ गया और जो कोई उसकी तरफ़ बढ़ने की कोशिश करता तो वह उसे मौत के घाट उतारने की धमकी देता। वह लोगों को खुद भी ललकारता कि किसी में हिम्मत है, तो आगे बढ़े। उस विकट स्थिति को देखकर अधिकारियों ने निर्णय किया कि अगर कैदी तलवार न फेंके तो उसे गोली मार दी जाए। उस मौके पर एक मीर साहब जो बड़े कमजोर से और छोटे कद के थे, सामने आए और उन्होंने कैदी को पकड़ने की जिम्मेदारी ले ली।

कैदी उनको देखकर हंसा और तिरस्कार से बोला कि मियां क्यों अपनी जान पर खेलते हो? चिड़िया की जान लिए फिरते हो, जाओ आराम से बैठो। मीर साहब के हाथ में एक रूमाल था। उन्होंने अपनी जेब में से तांबे का एक सिक्का निकाला और उसे रूमाल के कोने में बांध लिया। फिर कैदी की ओर करीब पहुंचकर बोले कि तेरी खैरियत इसी में है कि तलवार जमीन पर फेंक दे। कैदी की आंखों में तो पहले से ही खून उतरा हुआ था, यह सुनकर लाल-पीला हो गया और तलवार से मीर साहब पर ज़ोर से वार किया। मीर छलावे की तरह कूदकर एक तरफ हो गए और फिर आगे आकर उन्होंने कैदी की कलाई पर ऐसा वार किया कि तलवार उसके हाथ से छूटकर दूर जा गिरी और वह बेहोश होकर नीचे गिर पड़ा। इस तरह क़ैदी जिन्दा पकड़ा गया।

इस कारनामे से प्रभावित होकर दिल्ली के डिप्टी कमिश्नर ने भी मीर साहब को एक पेशकश की। बल्कि यह एक तरह की चुनौती ही थी। उसके अनुसार डिप्टी कमिश्नर पिस्तौल तानकर मीर साहब के सामने खड़े हो जाएंगे और मीर साहब को दो मिनट का समय देंगे जिसके अंदर उन्हें उनके हाथ से पिस्तौल गिरानी होगी। लेकिन अगर मीर साहब पिस्तौल को गिराने में नाकाम रहे तो डिप्टी कमिश्नर उन्हें गोली मार देंगे। शायद यह गोली मारने वाली बात तो मीर साहब की हिम्मत को पस्त करने के लिए कही गई होगी मगर मीर साहब ने यह चुनौती स्वीकार कर ली। सिर्फ चंद ही सेकंड में उन्होंने अपनी बिनौट के प्रहार से डिप्टी कमिश्नर की पिस्तौल उनके हाथ से दूर जा गिराई और साहब बहादुर दर्द से बड़ी देर तक कराहते रहे।

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