30 के दशक की बॉलीवुड की ‘फर्स्ट ब्यूटी क्वीन’ नसीम बानो ने पारिवारिक परंपराओं का विरोध कर फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखा

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

भारतीय फिल्म इंडस्ट्री के शुरुआती दौर की मशहूर अदाकारा नसीम बानो की कहानी एक प्रेरणा है, जो अपनी फिल्मों के प्रति जुनून और जिद से भरी हुई है। 30 के दशक में फिल्म इंडस्ट्री में कदम रखने वाली नसीम बानो का परिवार उच्च समाज से ताल्लुक रखता था, और तब फिल्मों में काम करना सामान्य रूप से स्वीकार्य नहीं था। नसीम बानो एक पढ़ी-लिखी लड़की थीं और उनका परिवार चाहتا था कि वह डॉक्टर बनें, लेकिन उनके मन में फिल्म इंडस्ट्री में काम करने का सपना पल रहा था।

नसीम बानो का फिल्म इंडस्ट्री में आने का सफर एक संयोग था। एक बार स्कूल की छुट्टियों में वह अपनी माँ के साथ बंबई आईं, जहाँ उन्होंने रिश्तेदार के घर रहते हुए बंबई के फिल्म स्टूडियोज के बारे में सुना था। वह एक दिन अपने रिश्तेदार के साथ फिल्म स्टूडियो गईं, जहाँ फिल्म ‘सिल्वर किंग’ की शूटिंग चल रही थी। इस शूटिंग को देख कर नसीम बानो के मन में फिल्म इंडस्ट्री में आने का ख्वाब गहरा हो गया। वह यह देखना चाहती थीं कि क्या वह भी इस दुनिया का हिस्सा बन सकती हैं।

सिनेमा से उनका लगाव इतना गहरा था कि जल्द ही उन्होंने फिल्म इंडस्ट्री में काम करने के लिए स्टूडियो के चक्कर काटने शुरू कर दिए। हालांकि, उनकी माँ को यह विचार मंजूर नहीं था। वह चाहती थीं कि उनकी बेटी डॉक्टर बने, लेकिन नसीम का इरादा पक्का था। इसी बीच, प्रसिद्ध निर्देशक सोहराब मोदी ने उन्हें अपनी फिल्म ‘खून का खून’ में अभिनय का प्रस्ताव दिया। यह प्रस्ताव नसीम के लिए सुनहरे अवसर जैसा था, और उन्होंने अपनी माँ से अनुमति लेने के लिए जिद्द की। वह इतना मजबूत हो गईं कि उन्होंने खाना-पीना छोड़ दिया और घर में रोने-धोने का माहौल बना दिया।

आखिरकार, नसीम की जिद के आगे उनकी माँ को झुकना पड़ा, और उन्हें फिल्मों में काम करने की अनुमति मिल गई। नसीम बानो ने ‘खून का खून’ फिल्म से शुरुआत की और रातों-रात एक स्टार बन गईं। इस फिल्म के बाद, उन्होंने एक के बाद एक हिट फिल्मों में काम किया, जैसे ‘प्रेसिडेंट’, ‘डिवोर्स’, ‘खान बहादुर मीठा’, और ‘बसंती’। उनकी सबसे यादगार भूमिका मिनर्वा मूवीटोन की फिल्म ‘पुकार’ में थी, जिसमें नसीम ने नूरजहां और चंद्रमोहन ने जहांगीर के किरदार निभाए थे। यह फिल्म ऐतिहासिक थी, और उनके गाए गाने आज भी सुनने को मिलते हैं।

नसीम बानो ने फिल्म इंडस्ट्री में अपने करियर को और मजबूत किया। उन्होंने फिल्म निर्माता मियां एहसान सुलेमान कुद्दूसी से शादी की और ‘ताजमहल पिक्चर्स’ नामक प्रोडक्शन हाउस की स्थापना की। इस बैनर के तहत उन्होंने कई सफल फिल्में बनाई, जैसे ‘उजाला’, ‘मुलाकात’, ‘बेगम चांदनी रात’, और ‘अजीब लड़की’।

नसीम बानो ने अपनी फिल्मों में अपनी अदाकारी और गायन के माध्यम से दर्शकों के दिलों में खास जगह बनाई। हालांकि, एक समय आया जब नसीम ने फिल्म इंडस्ट्री से अलविदा ले लिया। उन्होंने अपने परिवार के साथ एक सामान्य जीवन बिताने का निर्णय लिया और 85 साल की उम्र में 2002 में इस दुनिया को अलविदा कह दिया। नसीम बानो की कहानी न केवल फिल्मों में संघर्ष करने वाली एक अभिनेत्री की कहानी है, बल्कि यह एक ऐसी महिला की भी कहानी है, जिसने अपने परिवार के खिलाफ जाकर अपने सपनों को साकार किया। उनका नाम हमेशा बॉलीवुड की ऐतिहासिक और प्रेरणादायक हस्तियों में लिया जाएगा।

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