आम बोलचाल की भाषा में ओशो ने समझाया असत्य और अतिशयोक्ति के बीच का अंतर

दी यंगिस्तान, नई दिल्ली।

Osho Rajneesh: ओशो के विचार आज भी ना केवल प्रासंगिक हैं बल्कि करोड़ों अनुयायियों का मार्गदर्शन करते हैं। ओशो ने कहा था कि अतिशयोक्ति से बचना जरूरी है। अतिशयोक्ति असत्य का ही एक रूप है–छिपा हुआ, दिखाई नहीं पड़ता। और अतिशयोक्ति को जिसने भी जीवन में पकड़ लिया, उसकी कोई भी समस्या हल होनी असंभव हो जाएगी; क्योंकि समस्या इतनी बड़ी होती ही नहीं जितनी बड़ी अतिशयोक्ति के कारण दिखाई पड़ती है। जहां सुई से काम हो जाए वहां तलवार की तो कोई जरूरत होती नहीं। लेकिन अगर अतिशयोक्ति के कारण तुम्हें ऐसे दिखाई पड़े कि तलवार की जरूरत है, तो जो काम सुई से हो सकता था वह तो तलवार से न होगा। सुई तो जोड़ती, तलवार और तोड़ देगी; सुई से तो सीना हो जाता, तलवार से तो और कपड़े फट जाएंगे।

धर्म के मार्ग पर भी अतिशयोक्ति एक बहुत बड़ा उपद्रव है, और मन का आग्रह है अतिशयोक्ति का। मन सभी चीजों को बड़ा करके देखता है। न तो तुम्हारा दुख इतना बड़ा है जितना बड़ा करके तुम देखते हो; न तुम्हारी समस्याएं इतनी बड़ी हैं जितनी बड़ी करके तुम देखते हो।

मन सभी चीजों को मैग्निफाई करता है, क्योंकि अहंकार बड़ी चीजों में रस लेता है। दुख की बात होगी तो तुम दुख के हिमालय की चर्चा करोगे। जरा सी अशांति हो जाएगी कि आंधी और तूफानों को ले आओगे। इस बचकानी आदत से बचो। क्योंकि तब प्रारंभ से ही यात्रा गलत हो गई; समाधान का उपाय न होगा।

मैं एक घर में मेहमान था। मेजबान का छोटा सा बच्चा भागा हुआ बाहर से भीतर आया, और उसने पिता से आकर कहा कि मेरे पीछे सैकड़ों शेर लग गए–बब्बर शेर! बाप ने कहा: ठीक से बता। शेर यहां सड़क पर कहां मिल जाएंगे? बब्बर शेर तुझे कहां मिल गए?

लड़का थोड़ा चौंका। उसने कहा: शेर तो नहीं थे, कुत्ते ही थे।

बाप ने कहा: और जरा ठीक से बता। सैकड़ों कुत्ते अचानक कहां से आ जाएंगे?

उसने कहा: सैकड़ों तो नहीं थे, एक ही था।

बाप ने पूछा: वह तेरे पीछे लगा था? तुझ पर हमला किया था?

उसने कहा: वह हमला क्या करेगा? पड़ोसी का लंगड़ा कुत्ता! मगर वह पीछे-पीछे आ रहा था।

बाप का नाराज होना स्वाभाविक था। उसने कहा: दस करोड़ दफे तुझसे कह चुका हूं कि अतिशयोक्ति मत किया कर।

लड़का तो चला गया। मैंने बाप से पूछा: इस लड़के की उम्र कितनी है? उसने कहा कि होगी कोई तीन साल की।

तो मैंने कहा: अगर इसके जन्म से लेकर तुम रोज एक लाख बार कह रहे हो तब कहीं तीन साल में दस करोड़…।

अतिशयोक्ति तुम इसकी रुकवाना चाहते हो; अतिशयोक्ति तुम भी कर रहे हो, और इससे ज्यादा कर रहे हो। शायद इसकी अतिशयोक्ति में तो थोड़ा सच है–थोड़ा सच यह है कि यह डर गया है; कुत्ता ही सही, लेकिन इसको डर शेर का लग गया होगा। यह घबड़ा गया है; घबड़ाहट में हजारों-सैकड़ों कर डाले इसने; कुत्ते का शेर हो गया। लेकिन इसकी अतिशयोक्ति में भी थोड़ा सच है; तुम्हारे दस करोड़ में तो इतना भी सच नहीं है। पर अपनी अतिशयोक्ति दिखाई नहीं पड़ती। दूसरे की अतिशयोक्ति सरलता से दिखाई पड़ जाती है।

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