-गलतफहमी के चलते एक साथ, एक नाम के दो लोेगों को देेना पड़ गया पद्मश्री

-‘मिस लेजरस’ नाम की दो महिलाओं को देना पड़ा पद्मश्री पुरस्कार

-कैसे दिए जाते हैं पद्मश्री पुरस्कार

पुरस्कारों का विचार नेहरू की देन था, लेकिन इसे गृह मंत्रालय ने लागू किया था। ये पुरस्कार थे- पद्मश्री, पद्म भूषण, पद्म विभूषण और भारत रत्न। हालांकि संविधान में व्यक्तियों को कोई उपाधि देने की मनाही थी, लेकिन सरकार ने दोनों में फर्क करते हुए यह तर्क दिया कि ये पुरस्कार थे न कि ‘राय बहादुर’ या ‘खान साहिब’ जैसी उपाधियां, जो ब्रिटिश सरकार अपने कट्टर समर्थकों को उनकी सेवाओं के लिए प्रदान करती थी। कुलदीप नैयर अपनी पुस्तक एक जिंदगी काफी नहीं में लिखते हैं कि गृह मंत्राल में अधिकारी के रूप में छह वर्षों के अपने कार्यकाल के दौरान पुुरस्कार वितरण की प्रक्रिया को नजदीक से देेख सकेे। मंत्रालय के पास ऐसे लोगों और संस्थाओं के नामों की मूल आती थी जो कांग्रेस पार्टी के नजदीक होते थे।

गृह मंत्रालय के एक उप-सचिव और कुलदीप नैयर इन नामों की वर्णक्रम से सूची तैयार करते थे और उनके परिचय का सार-संक्षेप बनाते थे। यह बिलकुल बलकी जैसा काम था, जिसे मनमाने तरीके से किया जा सकता था न तो कोई नियम थे और न आचार संहिताएं, जिनक पालन करना जरूरी हो। अगर हमें कोई नाम अटपटा लगता तो हम दोनों उसे हटा देते। यह सूची गृह सचिव को भेज दी जाती, जो इसमें कुछ और नाम जोड़कर इसे गृहमंत्री के पास भेज देता।

प्रशस्ति-पत्र तैयार करना मेरा काम था में अपने सामने एक शब्दकोश और राजेंट की श्रीसोरस रखकर बैठे जाता ताकि एक ही विशेषण को बार-बार इस्तेमाल न करूं। मुश्किल की पड़ी तब आई जब खुद गृहमंत्री गोविंद बल्लभ पन्त को ‘भारत रत्न’ दिया गया। मैंने बड़ी मेहनत से उनका प्रशस्ति-पत्र तैयार किया, लेकिन वह उन्हें पसन्द नहीं आया। इसके बाद गृह सचिव ने खुद इसे लिखा, लेकिन पन्त को वह भी पसन्द नहीं आया। फिर गृह मंत्रालय का पूरा स्टाफ उनका प्रशस्ति-पत्र लिखने बैठे गया, लेकिन पन्त के दिल को यह भी नहीं ऊँचा हम सब बहुत मायूस महसूस कर रहे थे। आखिर मैंने उनसे कहा कि ‘भारत रत्न’ शब्दों से ऊपर था। उनकी तारीफ में जितने भी शब्द कहे जाएँ, कम पहेंगे। इसलिए ‘भारत रत्न’ पानेवाले के लिए प्रशस्ति-पत्र की जरूरत ही नहीं थी। उस वर्ष की सम्मान-पुस्तिका

में भारत रत्न पानेवाले पन्त का प्रशस्ति-पृष्ठ खाली ही रहा। प्रधानमंत्री और गृहमंत्री अन्तिम सूची का फैसला करते थे। राष्ट्रपति इस पर अपनी मोहर लगा देता था और कभी-कभार ही कोई संशोधन करता था।

लेकिन एक बार राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद ने एक नाम जोड़ दिया। उन्होंने खुद अपने हाथ से लिखा- ‘दक्षिण की मिस लेजरस।’ गृह मंत्रालय में हम लोगों को उसका पता लगाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ी। पता चला कि चेन्नई में इस नाम की एक शिक्षाविद थी। हमने उसे पद्मश्री पुरस्कार दिए जाने की सूचना भेज दी। लेकिन जब सूची राजेन्द्र बाबू के पास वापस गई तो उन्होंने यह लिखकर कि ‘वह एक नर्स है’ सूची वापस गृह मंत्रालय को भेज दी। उनके एडीसी ने हमें बताया कि जब वे हैदराबाद से विजयवाड़ा जाने के लिए मोटर में यात्रा करते समय बीमार हो गए थे तो इसी नर्स ने उनका इलाज किया था। हमने उसे ढूंढ़ तो निकाला, लेकिन उस वर्ष ‘मिस लेजरस’ नाम की दो महिलाओं को यह पुरस्कार पाने का गौरव प्राप्त हुआ।

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