पुरानी दिल्ली की संकरी गलियां हो या फिर लुटियंस दिल्ली के आलीशान इलाके। दक्षिण दिल्ली की पॉश कालोनियों से लेकर पूर्वी दिल्ली के सघन आबादी वाले इलाकों का अपना इतिहास खुद दिल्ली शहर की तरह ही रोचक है। शहर के इतिहास का एक सिरा महाभारत तक जाता है, जिसके अनुसार, पांडवों ने इंद्रप्रस्थ बसाया था। दिल्ली का सफर लालकोट यानी दिल्ली क्षेत्र का पहला निर्मित नगर, किला राय पिथौरा, सिरी, जहांपनाह, तुगलकाबाद, फिरोजाबाद, दीनपनाह, शाहजहांनाबाद से होकर नई दिल्ली तक जारी है। हर गुजरते वक्त के साथ दिल्ली अपने समृद्ध इतिहास को सहेंजते हुए विकास के पथ पर कुलांचे भर रही है। चौक-चौबारे हो या फिर कालोनियों के नाम। सभी के पीछे एक दिलचस्प और रोचक इतिहास छिपा हुआ है।
जंगपुरा
दिल्ली दरबार 1911 में राजधानी स्थानांतरित करने की घोषणा के साथ ही नई दिल्ली की नींव पड़ी। नई दिल्ली के निर्माण के लिए जमीनों के अधिग्रहण की शुरूआत हुई और 1300 एकड़ में यह परिकल्पना साकार भी हुइ्र। लेकिन इसके साथ ही शहर धीरे धीरे दक्षिण की तरफ बढ़ने लगा था। इसी कड़ी में जंगपुरा भी अस्तित्व में आया। हालांकि इसके नाम की कहानी बहुत ही दिलचस्प है। कैसे डिप्टी कमिश्नर मिस्टर यंग के नाम पर जंगपुरा का नाम पड़ा। स्वप्ना लिडले अपनी पुस्तक कनॉट प्लेस में लिखती है कि दरअसल, इन इलाकों में लोगों को प्लॉट आवंटित किए गए थे। प्लॉट चूकि डिप्टी कमिश्नर द्वारा अलॉट किया गया था इसलिए उसका नाम भी मिस्टर यंग हो गया। 20वीं सदी में स्थानीय लोगों द्वारा बोलचाल में यंग-पुर कहा जाने लगा जो बाद में जंगपुरा में बदल गया। ब्रितानिया हुकूमत के दस्तावेजों में इसका नाम यंग-पुरा ही मिलता है।
पहाड़गंज
दिल्लीवासियों को गर्मी और लू से बचाने का काम करने वाला दिल्ली के रिज का जंगल समय के साथ तीन छोटे-छोटे हिस्सों में बंट गया। एक समय में यह पहाड़ियों की एक विशिष्ट श्रृंखला थी। आज के वसंत विहार में मुरादाबाद पहाड़ी, मध्य दिल्ली में पहाड़गंज और पहाड़ी धीरज, राष्ट्रपति भवन की रायसीना पहाड़ी और जामा मस्जिद का आधार भोजला पहाड़ी सहित आनंद पर्वत की स्मृति ही शेष है। इतिहासकार आरवी स्मिथ कहते हैं कि पहाड़गंज दिल्ली रिज का हिस्सा था। इसे काटकर ही बनाया गया था। चूंकि यह उंचा था इसलिए इसे पहाड़ कहकर बुलाया जाता था। करोल बाग जाने के लिए आज पहाड़गंज से होकर जाते थे लेकिन यहां कभी पहाड़ इतना उंचा होता था कि करोल बाग तक पहुंचना मुश्किल था। बाद में जब करोल बाग बसाया गया तो पहाड़ काटकर रास्ता भी निकाला गया। आज भी आनंद पर्वत की उंचाई इस बात की तकसीद करती है।