TOWN HALL AT CHADNI CHOWK

चांदनी चौक की संकरी गलियां, जिसमें दिल्ली बसती है। दिल्ली, जो बेलौस है, बेफ्रिक है और अपनी ही मस्तानी चाल में चले जा रही है। ये ना तब ठहरी जब घंटाघर भरभराकर गिर गया ना तब जब बीचो-बीच बहते नहर को पाट दिया गया। यहां जिंदगी में जायके का तड़का लगा है। पराठे वाली गली हो या फिर कटरों की बहुतायता। चांदनी चौक दिल्लीवासियों के लिए ही नहीं अपितु देश के कोने-कोने से आने वाले लोगों के लिए शापिंग की सबसे मुफीद जगह है। शापिंग संग स्ट्रीट फूड का तड़का दिल्ली को देखने, समझने और जीने का एक नया नजरिया पेश करता है। चांदनी चौक को अगर धर्मो का संगम कहें तो बुरा नहीं होगा। मुख्य मार्ग के किनारे स्थित मंदिर, गुरूद्वारा और मस्जिद की उपस्थिति इसकी गरिमा को बढ़ा देता है। यहां सुबह अजान से होती है और उसके बाद मंदिर की घंटियां एवं गुरूद्वारे में होती प्रार्थना सुन दिनचर्या शुरू होती है। इन सबके बीच सीना तान खड़ा टाउन हाल इतिहास की कई महत्वपूर्ण घटनाओं का गवाह है। उत्तरी दिल्ली नगर निगम ने 150 साल से भी अधिक पुराने इस भवन के जीर्णोद्धार की योजना बनाई है।

town hall

शाहजहां ने जन्नत शब्द से नवाजा

इतिहासकार कहते हैं कि जहां वर्तमान में टाउन हाल है वहां कभी बाग था। शाहजहां की बड़ी बेटी जहांआरा ने 1600 ईसवी में यह बाग बनवाया था। इसी बाग के हिस्से पर जहांआरा ने एक सराय भी बनवाई। कहा जाता है कि एक बार शाहजहां यहां आए थे। शाहजहां सराय देख मंत्रमुग्ध हो गए। उन्होंने कहा कि अगर कोई दुनिया में जन्नत है तो वह यही है। सराय में विशेष सफेद रंग की मूर्तियां बनवाई थी। 19वीं सदी में ब्रिटिश शासकों ने इसे दोबारा री-डिजाइन किया और जहांआरा बाग को कंपनी बाग नाम दिया। पार्क का जो हिस्सा बचा था उसका नाम विक्टोरिया के नाम पर क्वीन गार्डन रख दिया गया था।

अंग्रेजों का पुस्तकालय

जिस जगह वर्तमान में टाउन हाल स्थित हैं वहां पहले बेगम की सराय और बाग थी। 1857 में इसे पूरी तरह नष्ट कर दिया गया। जिसके बाद 1860 में लारेंस इंस्टीटयूट नाम से टाउन हाल बना था। यह पहली बिल्डिंग थी जिसे नगर निगम ने हेरिटेज बिल्डिंग श्रेणी में पंजीकृत किया था। बकौल इतिहासकार उस समय अंग्रेज चांदनी चौक में ही रहते थे। शासन संबंधी सभी निर्णय लारेंस पुस्तकाल में लिए जाते थे। सन 1912 दिसंबर में किंग्स वे कैंप में लगने वाले दिल्ली दरबार की सभी तैयारी यहीं से की गई थी। रात भर बैठकों का दौर चलता था। अंग्रेज अफसर घोड़े, बग्गी से यहां से किंग्सवे कैंप जाते थे।

विक्टोरियन डिजाइन का नायाब उदाहरण

इतिहासकार कहते हैं कि 1865-66 में टाउन हाल अस्तित्व में आया। इसके पहले यह बतौर लाइब्रेरी प्रयोग में लायी जाती थी। घंटाघर इसके ठीक सामने था। ईस्ट इंडिया कंपनी ने टाउन हाल की डिजाइन विक्टोरियन बिल्डिंग के माफिक बनाई थी। उन दिनों यहां एक कमेटी होती थी जिसमें अंग्रेजों के अलावा भारतीय रईस सदस्य होते थे। चांदनी चौक की प्रसिद्ध शख्सियत जैसे आसिफ अजमल खां,मार्डन स्कूल के संस्थापक, मिर्जा सुलेमान समेत कई अन्य सदस्य थे। टाउन हाल के ठीक सामने एक पुल था। जहां से होकर नहर दो हिस्सों में बंट जाता था। एक हिस्सा लाल किला जबकि दूसरा दरियागंज होते हुए यमुना में मिल जाता था। दिल्ली दरबार की पूरी योजना भी यहीं बनवाई गई थी। इसी दौरान यहां क्वीन विक्टोरिया का स्टैच्यू भी लगाया गया था लेकिन बाद में इसे दिल्ली दरबार के दौरान किंग्स वे कैंप ले जाया गया। क्वीन की डायमंड ज्वैलरी के उपलक्ष्य में लगा था। सन 1967 के आसपास इसे हटा दिया गया।

उत्तरी निगम करेगा पुर्नविकास

उत्तरी दिल्ली नगर निगम के अधिकारियों ने बताया कि अंतरराष्ट्रीय मापको के अनुसार इसका पुनर्विकास होगा। 12316 स्कवायर मीटर में संग्रहालय बनाया जाएगा। ग्राउंड फ्लोर पर संग्रहालय में सबसे पहले परिचय नाम से हाल बनेगा जिसमें दिल्ली के सभी शहरों की जानकारी दी जाएगी।

ये एतिहासिक चीजें देखने को मिलेंगी

वस्त्र

मुगल काल में राजा-रानी समेत महल के वरिष्ठ पदाधिकारियों की वेशभूषा कैसी होती थी? यह जिज्ञासा टाउन हाल में शांत होगी। यहां दिल्ली के शासकों के क्रमानुसार वस्त्रों का प्रदर्शन होगा। लोग वस्त्रों को छू भी सकेंगे।

जंग के सामान

सम्राटों के बीच युद्ध के दौरान किस-किस तरह के औजार प्रयुक्त किए जाते थे। गोला-बारुद, तीर-धनुष, बाण, बरछा, भाल की प्रतिकृति भी यहां देखी जा सकेगी।

कला

दिल्ली की सांस्कृतिक विरासत यहां पेंटिंग के माध्यम से प्रदर्शित की जाएगी। दिल्ली के अब तक के सफर में कलाकारों के योगदान को उनके नाम, उनकी कृतियों समेत बताया जाएगा।

साहित्य

दिल्ली के विभिन्न पुस्तकालयों में आज भी मनु स्कि्रप्ट उपलब्ध है। दिल्ली के समृद्ध साहित्य से रूबरू कराया जाएगा। साहित्यकारों एवं उनकी रचनाओं के बारे में तो बताया ही जाएगा साथ ही हाथ से लिखी किताबें भी उपलब्ध होंगी।

आभूषण

कूचा महाजनी, दरीबा कलां के गहने आज भी देश के कोने कोने में पसंद किए जाते हैं। ऐसे में सहज ही दिल्ली और आभूषण का लगाव उजागर होता है। दिल्ली के इतिहास में शासकों के क्रमानुसार ही उनके दरबार और खुद उनके द्वारा पहने जाने वाले आभूषणों की जानकारी मिलेगी।

आर्किटेक्ट

लाल किला, इंडिया गेट, कुतुबमीनार, पुराना किला, दिल्ली गेट का निर्माण कैसे हुआ। पर्यटकों के मन में उठने वाले इन सवालों का जवाब भी यहां मिलेगा। विशेषज्ञ लोगों के इन ऐतिहासिक इमारतों के निर्माण संबंधी सवालों के जवाब देंगे। इसके अलावा आजादी के बाद दिल्ली कैसे आधुनिकता की राह पर बढ़ी यह भी कम दिलचस्प नहीं होगा।

पुरानी दिल्ली का जायका

टाउन हाल घुमें और पुरानी दिल्ली का जायका चखने को नहीं मिले ऐसा भी हो सकता है क्या। उत्तरी निगम पुरानी दिल्ली के जायके का स्वाद भी चखाएगा। बकौल अधिकारी फूड कोर्ट बनाए जाएंगे। जहां चाट, जलेबी, मिठाई व अन्य स्ट्रीट फूड स्वाद के शौकीनों का ठौर बनेंगे।

आडियो-वीडियो शो भी

टाउन हाल का इतिहास समेटे एक आडियो वीडियो शो भी प्रदर्शित किया जाएगा। 20 मिनट के शो में पहले टाउन हाल में होने वाली निगम की बैठक संबंधी जानकारी भी होगी। इसके अलावा आभूषण की दुकान खोली जाएगी। जहां मुगल समेत अन्य पीरियड के माफिक दिखने वाले आभूषणों की बिक्री होगी।

-लेक्चर रुम(तीन लेक्चर हाल, जिसमें परस्पर बातचीत कर लोग इतिहास संबंधी जानकारी बढ़ा सकेंगे)

-डिजिटल लाइब्रेरी (एक लाइब्रेरी होगी, जिसे परंपरागत और डिजिटल लाइब्रेरी दो हिस्से में बांटा जाएगा)

-फूड कोर्ट–(15 वीं से 18 वीं सदी के बीच के लजीज जायकों का स्वाद चखा जा सकेगा)

-मूर्तिकला उद्यान–ग्राउंड फ्लोर पर ही एक बगीचा होगा। जहां मूर्ति और पेंटिंग लगाई जाएंगी।

-क्राफ्ट बाजार

-डांसिंग फाउंटेन

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