बेगम के बाग के साथ यह सराय भी बनी थी। बाग तो खैर उजड़ा – उजड़ा मौजूद भी है, मगर इस सराय का तो कोई पता ही नहीं रहा। 1857 ई. के गदर के बाद सरकार ने इसे ढहाकर सारा मैदान करवा दिया। इस सराय के दो दरवाजे थे। दक्षिणी द्वार चांदनी चौक के सामने था। दूसरा उत्तर में था, जो बाग का भी दरवाजा था।

सराय के सहन में दो बड़े-बड़े कुएं और एक मस्जिद थी। सहन के चारों ओर दोमंजिला बड़े-बड़े कमरे थे, जिनमें मुसाफिर बड़ी संख्या में उतरा करते थे और फेरी वाले सौदागर भी दुकानें लगाकर सामान बेचा करते थे। बर्नियर ने इस सराय का हाल यों लिखा है- ‘यह कारवान सराय एक बड़ी चौकोर इमारत है, जिसके चारों तरफ दोमंजिला कमरे बने हुए हैं। कमरों के सामने बरामदे हैं। इस सराय में विदेश से आने वाले व्यापारी ठहरते हैं। वे सराय के कमरों में बड़े आराम से रहते हैं और चूंकि सराय का दरवाजा रात को बंद हो जाता है, इसलिए किसी प्रकार का डर भी नहीं रहता।

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