हीरा महल (1824 ई.)
इसे बहादुर शाह ने 1824 ई. में बनवाया। यह हम्माम के उत्तर में है। इसमें और हम्माम में सहन छटा हुआ है और इस सहन में चार गज की चौड़ाई की एक नहर संगमरमर को बनी हुई है। यह वही नहर है, जिसका नाम नहरे बहिश्त है और दीवाने खास तथा रंगमहल में गई है। इस सहन के बीच में नहर के किनारे पर संगमरमर की एक बड़ी बारहदरी 32 फुट 3 इंच उत्तर-दक्षिण में 19 फुट 4 इंच पूर्व-पश्चिम में बहादुर शाह सानी अंतिम मुगल बादशाह की बनवाई हुई है। इसको मिर्जा फखरू वलीअहद की बारहदरी कहकर पुकारते थे। हम्माम के पीछे एक कुआं बहादुर शाह का बनवाया हुआ है। यह महल भी सारा संगमरमर का बहुत खूबसूरत बना हुआ है। नहर के बीच में सुनहरे रुपहले चौबीस फव्वारे थे, जो सदा छूटा करते थे।
मोती महल
हीरा महल के उत्तर में और हयातबख्श बाग के सामने मोती महल था, जो गदर के बाद तोड़ डाला गया और वहां तोपखाने की बैरक बना दी गई। यह महल लाल पत्थर का बना हुआ था। इसमें एक हौज और एक नहर थी, जिसमें से एक चादर दो गज चौड़ी हयातबख्श बाग के एक हौज में गिरा करती थी। यह भी बहादुर शाह ने बनवाया था।
मोती मस्जिद (1659-60 ई.)
इसे औरंगजेब ने लाल किले में 1659-60 ई. में एक लाख साठ हजार रुपये की लागत से बनवाया था। यह निहायत खूबसूरत और पूरी संगमरमर की बनी हुई इमारत है। इसमें बादशाह और बेगमात इबादत करने जाया करते थे। 1857 ई. में इस पर तोप का एक गोला गिरने से गुंबदों को हानि पहुंची थी, जिसकी बाद में मरम्मत करवा दी गई। लेकिन सुनहरी गुंबद पहले जैसे न बन सके। अब सादे हैं।
यद्यपि यह एक छोटी-सी मस्जिद है, लेकिन यह हिंदुस्तान की खास मस्जिदों में से एक है। मस्जिद में दाखिल होने का छोटा-सा दरवाजा संगमरमर का है, जिस पर पीतल के जुड़वा किवाड़ चढ़े हुए हैं। मस्जिद का सहन 35 फुट लंबा और 10 फुट चौड़ा है, जिसमें संगमरमर की सिलों का फर्श है। चारदीवारी बीस फुट ऊंची है। दीवारों में चौड़ी सिलें लगी हुई हैं, जिनमें दीवारदोज सुतून हैं और उन पर संगमरमर की बुर्जियां है। अहाते की उत्तरी दीवार में जनाने महल में से आने का रास्ता है, जिधर से बेगमात आकर नमाज पढ़ती थीं।
सहन के बीच में संगमरमर का एक हौज 10 फुट 8 फुट का है, जो हयात बाग की नहर के पानी से भरा जाता था। मस्जिद की लंबाई 40 फुट और चौड़ाई 30 फुट है। इसकी ऊंचाई 25 फुट और छत बीच के कलस तक 12 फुट है। मस्जिद के तीन दर हैं, जो बंगड़ेदार महराबों के हैं और बहुत ऊंचे नहीं हैं। चूबतरे की चार सीढ़ियां हैं। यह साढ़े तीन फुट ऊंचा है। इन महराबों के चार खंभे हैं, जिनके सिरे और बैठक पर कटाई का काम बना हुआ है, बीच के भाग साफ हैं। इधर-उधर की महराबें आठ फुट चौड़ी हैं। और बीच की उससे दुगुनी। आगे के दालान के पीछे एक दालान और है। उसके भी तीन ही दर हैं।
इस प्रकार इस मस्जिद में सुतूनों की दो कतारों में से छह भाग हो गए हैं। मस्जिद की पछील की दीवार में हस्ब मामूल दीवारदोज महराब है। बीच के दोनों बाजू मीनारें हैं और इधर-इधर की महराबों के सामने हर एक हिस्से में संगमरमर का चौड़ा छज्जा है। छत की मुंडेर पर खुदाई का काम है। यह मुंडेर बीच के दर पर महराबदार है और बाकी दो दरों पर हमवार तीनों गुंबद संगमरमर के कमरख की तरह बने हुए हैं, जो सुनहरी थे। इसीलिए कुछ लोग इसे सुनहरी मस्जिद भी कहते हैं। मस्जिद के उत्तर में हुजरा बना हुआ है, जो प्रार्थना करने के जिए है।