1857 की क्रांति: बहादुर शाह जफर को बर्मा में कैदी बनाकर रखा गया। यहां बादशाह के जेलर ने ब्रितानिया हुकूमत को जफर के दोनों बेटों को अंग्रेजी शिक्षा देने के लिए इंग्लैंड भेजने की गुजारिश की। जिसे हुकूमत ने सिरे से खारिज कर दिया।
ऐसे में दोनों शहजादों के सामने डेविस से शिक्षा प्राप्त करने के सिवाय और कोई चारा न था। डेविस ने लिखा कि वह दोनों ‘काफी पाबंदी से’ उसके घर जाते रहे और कहते हैं कि अंग्रेजी में उन्होंने ‘काफी प्रगति’ हासिल कर ली है।
डेविस ने लिखा कि “मुझे उनकी ज़िंदगी की एकरसता को तोड़ने के लिए कुछ ढूंढ़ना बहुत मुश्किल लगता था। वह अक्सर आ जाते और मिसेज डेविस से बात करते और अपना दुख-दर्द बयान करते… शाह अब्बास ज़्यादा ध्यान देता है और वह काफी आगे है। जवांबख्त का रुझान अपने भाई की बनिस्बत यूरोपियनों के खिलाफ है, जो बेहतर मौकों की कमी के कारण, अक्सर अंग्रेज़ सिपाहियों से बातें करता है।” डेविस के और खतों में भी जवांबख्त की बढ़ती हुई बेचैनी का जिक्र है।
डेविस लिखता है- “शाह अब्बास में नियमों की पाबंदी करने की समझ है और वह खुशमिजाजी से इसका पालन करता है, और आमतौर पर रोजाना सुबह संतरी के साथ बाग की सैर को जाता है। लेकिन जवांबख्त, शायद इस इंतजाम को बुरा मानकर, बाहर जाने से ही इंकार कर देता है, और पिछले दो महीने में उसने किसी तरह की वर्जिश नहीं की है। यह हठ अगर जारी रही, तो उसकी सेहत के लिए अच्छा नहीं होगा। लेकिन मुझे संदेह नहीं है कि वक़्त के साथ उसका मूड बेहतर हो जाएगा।