विलियम डेलरिंपल ने अपनी पुस्तक आखिरी मुगल में लिखा है कि 1857 में जब विद्रोही दिल्ली में प्रवेश कर गए। हर तरफ तबाही दिख रही थी। व्यवसायियों से लेकर संपन्न घरों में लूटपाट की गई। विलियम डेलरिंपल अपनी किताब आखिरी मुगल में लिखते हैं कि तवायफों का हाल भी बुरा था। बहुत से कोठों को सिपाहियों ने घेर लिया और कम से कम एक तवायफ़ को गायब कर दियाः यह थी डांसर मंगलो जिसको रुस्तम खान उठाकर ले गया और उसने उसके साथ गलत काम किया।

कभी-कभी दिल्ली वाले अपने बचाव के लिए लड़ाई भी करते थे। चुन्नी लाल के अनुसार ‘जब पैदल और घुड़सवारों ने नागर सेठ की सड़क पर वहां के लोगों को लूटने के लिए हमला किया, तो वहां रहने वालों ने दरवाज़े बंद करके उन पर खूब पत्थर और ईंटें बरसाई और उनको भगा दिया।” दूसरी जगहों पर भी लोगों ने कानून को अपने हाथ में ले लिया। ‘हौज खास में मोहल्ले वालों और तिलंगों के बीच लड़ाई हुई।

कभी-कभी बलवाइयों को कोई आखरी बचा खुचा ईसाई मिल जाता, तो वह उसे घसीटकर कोतवाल के पास ले जाते और वहां उसका काम तमाम कर दिया जाता। 12 मई की सुबह को जिन लोगों को मारा गया, उनमें दिल्ली कॉलेज के विद्वान प्रिंसिपल फ्रांसिस टेलर भी थे, जो भेष बदलकर भागने की कोशिश कर रहे थे।

उनको फौरन पकड़कर वहीं सड़क पर पीट-पीटकर मार डाला गया। और थोड़ी देर बाद एलिजाबेथ के रिश्ते के भाई शराबी जॉजेफ स्किनर को उसकी हवेली से निकालकर कोतवाली में मार डाला गया और उनका घर पूरी तरह से लूट लिया गया। बहुत से मकतूल गुमनाम ही रहे। चुन्नी लाल ने एक बयान में लिखा है: “एक अंग्रेज़ शख्स सौदागर मुहम्मद अली के बेटे मुहम्मद इब्राहीम के घर में छिपा हुआ था।

जब एक सिपाहियों के दस्ते को यह पता चला, तो वह फौरन वहां पहुंचा और उसको मारकर सारा घर लूट लिया। एक अंग्रेज़ औरत, जो हिंदुस्तानी कपड़े पहने मुंह छिपाए, एक एलेनबरो टैंक के पास से गुजर रही थी, उसको भी मार दिया गया। दो यूरोपियन व्यक्ति, जो हिंदुस्तानियों के भेष में थे, पकड़कर कोतवाली ले जाए गए और वहां उनको मार दिया।

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