1857 की क्रांति: अंग्रेज चार टुकडियों में शहर में दाखिल हुए। तीसरी टुकड़ी के सिपाही कुदसिया बाग में गोलियों की बौछार से बचे हुए जमीन पर चित लेटे बेचैनी से बिगुल बजने का इंतजार कर रहे थे। लेकिन चारदीवारी से आता बंदूकों और गोलियों का शोर इतना था कि हॉथोर्न के पहले दो बिगुल की आवाज वह सुन ही नहीं पाए, तीसरी बार में हल्की सी आवाज सुनाई दी।

इस आवाज का इंतजार कर रहे लोगों में से एक था गुस्से से भरा बेरहम ऐंग्लो-आयरिश प्रोटेस्टेंट लेफ्टिनेंट केंडल कॉगहिल, जो महीनों से रिज पर बैठा इंतकाम और बदले के ख्वाब देख रहा था।

अब, उसने अपने पिता को लिखाः

“वह पल आ गया है, और मैं इसके लिए इस कदर खून का प्यासा और बेचैन था कि अब यह जानते हुए मुझ पर एक अजीब पागलपन और जुनून हावी हो गया था कि हम जितनी जल्दी पहुंचेंगे, दुश्मन उतना करीब होगा, और उतनी ही जल्दी हम इंतकाम ले पाएंगे।

“मैंने एक पिस्तौल की गोली को मुंह से काटा जो वहां इसलिए थी कि मुंह नम रहे और एक भयानक हुंकारा भरकर तेजी से अपनी छिपी जगह से निकला। चारों तरफ से बारिश की तरह गोलियां बरस रही थीं और मेरे हर तरफ लोग गिर रहे थे, मगर मुझे लगा कि मेरी जिंदगी पर बरकत है और मुझे कोई छू नहीं सकता। जख्मी और मरने वालों के अभिशाप, कराहें और लानतें और उनका बाहर छोड़ दिए जाने और इंतकाम न ले पाने के लिए अपनी किस्मत को कोसना बेहद दर्दनाक था, वह इस तकलीफ में तड़प रहे थे।

“हमें बाईं तरफ हमला करना था लेकिन दाईं तरफ से इतनी ज्यादा गोलियां बरस रही थीं कि सीढ़ी लगाने वाला सारा दल मारा जा चुका था इसलिए हम… उनकी जगह लेने दाईं तरफ भागे। उसके बाद तो जैसे मैं नशे में था। बस मुझे इतना याद है कि मैंने तलवार रखी और सीढ़ी पकड़कर उसे नीचे गढ़े में फेंक दिया। लेकिन सीढ़ी सिर्फ आठ फुट की थी और गढ़ा 20 फुट गहरा था। जोश में हम नीचे कूद पड़े और सीढ़ी दूसरी तरफ की मुंडेर पर आ रुकी और हम जल्दी-जल्दी ऊपर की तरफ भागे।

“वह हैवान लड़ते रहे और हम उनको तलवारों और संगीनों से काटते हुए अपना रास्ता बनाते गए। बदकिस्मती से मेरी तलवार सबसे पहले मेरे अपने ही एक काले सार्जेंट की लाश पर पड़ी, जो मेरे साथ वाली सीढ़ी पर था और गोली खाकर मेरी तलवार पर गिर पड़ा था। लेकिन अगले ही लम्हे वह तलवार एक विद्रोही को काट रही थी और फिर दूसरे को।

सारे आदेश और व्यवस्था खत्म हो चुकी थी और जहां मुमकिन था, वस हम मारकाट करते चले गए। मैंने पिस्तौल निकालने का सोचा भी नहीं, बस तलवार चलाता, घुमाता और काटता चला गया जब तक कि मेरे बाजू बिल्कुल थक न गए।

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