1857 की क्रांति: सितंबर महीने में अंग्रेजों ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया। अंग्रेज अफसर होडसन ने बादशाह बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार करने की योजना बनाई। इसके लिए जफर के रिश्तेदार मिर्जा इलाही बख्श की मदद ली गई। होडसन अपनी योजना में कामयाब रहा। हुमायूं के मकबरे से जफर को गिरफ्तार कर लिया गया। जफर को पालकी में बैठाकर लाल किले ले जाया जा रहा था।
होडसन को लगता था जैसे दिल्ली की तरफ जाने वाली सुनसान सड़क कभी खत्म नहीं होगी। उसने बाद में अपने एक साथी से कहा, “पालकीबरदारों की घिसटी हुई सुस्त रफ्तार, बार-बार कंधे बदलना और लोगों की भीड़ की वजह से माहौल में बहुत तनाव था, लेकिन घुड़सवार सिपाही बादशाह की पालकी के विल्कुल पास चल रहे थे और उनको छुड़ाने की कोई कोशिश नहीं की गई। जब वह शहर की दीवारों के पास पहुंचे, तो लोगों का हुजूम कम होता गया।
और लाहौरी दरवाज़े के पास पहुंचते-पहुंचते सवारों ने देखा कि वह अकेले रह गए हैं।’ दरवाज़े के दरबानों ने पूछा कि होडसन ने पालकी के अंदर किस को बिठाया हुआ है। उसने जवाब दिया, ‘कोई नहीं, दिल्ली के बादशाह’ । फिर वह चांदनी चौक से गुजरते हुए किले में आए और ज़फ़र अपने पूर्वजों के महल में वापस आ गए, बादशाह की नहीं बल्कि एक कैदी की हैसियत से।
हर आदमी अपना-अपना काम रोककर उन्हें देखने लगा। एक ब्रिटिश सर्जन ने उनका जिक्र ऐसे किया, ‘वह एक बूढ़े आदमी थे जिनके कमजोर चेहरे से परेशानी जाहिर थी।’ उनको उनके लुटे हुए किले के कबाड़ के बीच में से ले जाया जा रहा था। ‘उनके चेहरे पर कहीं भी जुल्म के संकेत नहीं थे, बल्कि मेहरबानी टपकती थी।” होडसन ने अपने शिकार को चार्ल्स सॉन्डर्स को सौंपा, जो ग्रेटहैड की जगह दिल्ली के शहरी प्रशासन का प्रमुख होकर आया था और फिर वह खुद जनरल विल्सन को अपने कारनामे की सूचना देने चला गया।
होडसन को यह देखकर बहुत अचरज और निराशा हुई कि जनरल विल्सन को बादशाह की गिरफ्तारी की खबर सुनकर कोई खास खुशी नहीं हुई। उसने सिर्फ इतना कहा, ‘मुझे खुशी है कि तुमने उन्हें पकड़ लिया। मुझे तुम दोनों को दोबारा देखने की उम्मीद नहीं थी।” फ्रेड मेसी जो उस वक़्त उस कमरे में मौजूद था, का कहना था कि असल में बूढ़े जनरल को ‘बहुत गुस्सा था कि बादशाह को जिंदा लाया गया था… मुझे लगा कि होडसन की खबर को बिल्कुल पसंद नहीं किया गया, इससे मुझे होडसन की इस बात पर भी शक होने लगा कि जनरल विल्सन ने बादशाह की जिंदगी बख्श देने का वादा किया था’।
जनरल विल्सन ने भी बाद में इस बात से पुरजोर इंकार किया कि उसने कभी ऐसा वादा किया था। और उसकी बात पर यकीन करने की वजह भी है, क्योंकि दिल्ली के फौजी और नागरिक प्रशासन को कलकत्ता से कैनिंग के बड़े स्पष्ट और कड़े निर्देश थे कि मुगलों के साथ किसी तरह का समझौता नहीं किया जाए, सिवाय इसके कि वह अपने आपको बगैर किसी शर्त के अंग्रेजों के हवाले कर दें।
उस शाम जफर को लाल कुएं में जीनत महल की हवेली में ले जाया गया, जहां उनकी मुसीबतों में इजाफा करने के लिए उनको अक्खड़ और अड़ियल केंडल कॉगहिल के पहरे में दे दिया गया।
कॉगहिल ने अगले दिन अपने भाई को लिखा था, “मुझे ‘हिंदुस्तान के बादशाह’ का कैदी की हैसियत से स्वागत करने की संतुष्टि मिली। मैंने फौरन उसे बंद करके उस पर दो संतरी लगा दिए। हालांकि यह मर्दानगी का काम नहीं था, फिर भी मुझसे रहा नहीं गया और मैंने उनको भला बुरा कहा। अगर वह सिर उठाकर भी देखता तो मैं उसे गोली मार देता, और मैंने पहरादारों को आदेश दिया कि अगर वह वहशी जरा भी हिले, तो उसे फौरन मार गिराया जाए।