1857 की क्रांति: सितंबर में अंग्रेजी फौज ने दिल्ली पर कब्जा कर लिया। अब तलाश बहादुर शाह जफर को गिरफ्तार करने की शुरू हुई। ब्रिटिश अफसर होडसन अपने जासूसों के जरिए यह जानता था कि वो कहां छिपे हैं। ब्रिटिश अफसर होडसन ने मिर्जा इलाही बख्श को अपने खास जासूस मौलवी रजब अली और पंजाब के कुछ अनियमित घुड़सवारों के साथ भेजा और ‘थोड़े से अंतराल के बाद,’ लगभग पचास घुड़सवारों के एक और जत्थे के साथ होडसन खुद भी किले से हुमायूं के मकबरे की तरफ चल पड़ा।

जब मौलवी रजब अली और मिर्जा इलाही बख्श हुमायूं के मकबरे के करीब पहुंचे, तो उन पर क्रांतिकारियों  की एक टोली ने हमला कर दिया और उनके आगे पहरे के चार घुड़सवार बुरी तरह जख्मी हो गए। वह उल्टे पांव दिल्ली की तरफ भाग खड़े हुए। वहां उनका आते हुए होडसन से सामना हुआ, जिसने उनसे कहा कि वह वापस जाएं और अपना काम जारी रखें क्योंकि यह हमला ‘कुछ सिरफिरे मजहबी लोगों का किया हुआ लगता है, बादशाह के मुहाफिजों का नहीं’।’

वहां पहुंचकर होडसन किसी खंडहर में छिप गया, जो मकबरे के दरवाजे से दिखाई नहीं देता था। उसने अपने संदेशवाहकों रजब अली और इलाही बस्ट्रा को अंदर भेजा जो बहुत घबराए हुए थे। उनके साथ होडसन के पंद्रह घुड़सवार सिपाही थे, जिनका नेतृत्व एक रिसालदार सरदार मान सिंह कर रहा था।

होडसन ने आदेश दिया कि रजब अली बातचीत का नेतृत्व करेगा। उसे कहा गया था कि वह सीधे वहां जमा अनगिनत शाहजादों, दरबारियों, तमाशबीनों और क्रांतिकारियों की भीड़ में से गुजरकर सीधा बादशाह के पास जाए और कहे कि ‘अगर वह खामोशी से बाहर आ जाएं और गिरफ्तार हो जाएं, तो मैं (होडसन) उनकी सुरक्षा की पूरी जिम्मेदारी लूंगा। लेकिन अगर उन्होंने मकबरा छोड़ने का इरादा किया, तो समझ लें कि मेरा इसके दरवाजे पर पूरा कब्जा है और मैं उन्हें और उनके साथियों को बगैर किसी रहम के गोली मार दूंगा’ । दो घंटों के कष्टप्रद इंतजार के दौरान कुछ नहीं हुआ।

होडसन को यकीन होने ही वाला था कि उसके संदेशवाहकों को कत्ल कर दिया गया है, “लेकिन तभी रिसलादार बाहर आया और कहा कि बादशाह सलामत आ रहे हैं। फिर मौलवी और मिर्जा इलाही बख्श बादशाह की पालकी के साथ-साथ बाहर आए। उनके पीछे बेगम (अपने बेटे जवांबख्त और पिता मिर्जा कुली खान के साथ) आ रही थीं और उनके साथ किले के बहुत से सेवक और शहर से फरार होने वाले बहुत से लोग थे। बादशाह की पालकी रुक गई और एक पैगाम मुझे भेजा गया कि बादशाह मेरे मुंह से सुनना चाहते हैं कि उनकी जान बख्श दी जाएगी।

“मैं घोड़े पर सवार वहां गया क्योंकि मैं इस मौके का फायदा उठाना चाहता था कि मेरे आदमी बादशाह के सवारों और उन लोगों की भीड़ के बीच में आ जाएं, जो बादशाह के पीछे खड़े थे और बेहद खौफनाक मालूम हो रहे थे। मैं कुछ देर को घोड़े से उतरा और बादशाह और बेगम दोनों को (जो बहुत घबराए हुए और डरे हुए मालूम हो रहे थे) मैंने यकीन दिलाया कि उनकी जिंदगी बख्श दी जाएगी, अगर उनको छुड़ाने की कोशिश नहीं की गई।

जफर की जिंदगी की जमानत लेने के साथ-साथ होडसन ने उनको यह भी यकीन दिलाया कि उनकी किसी तरह की ‘बेइज्जती नहीं की जाएगी। “मैं फिर घोड़े पर सवार हुआ और मैंने बुलंद आवाज़ में जिसे सब लोग सुन सकें, इन अल्फाज को दोहराया, और साथ में अपने सिपाहियों को आदेश दिया कि अगर कोई भी हिले, तो उसे गोली मार दी जाए। फिर मैंने मौलवी रजब अली और इलाही बख्श से कहा कि जब वह भीड़ से कुछ दूर हो जाएं, तो पालकी के साथ-साथ आगे बढ़ें।

Spread the love

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here