1857 के प्रथम स्वतंत्रता संग्राम (Indian Rebellion of 1857) को दबा अंग्रेजों ने दिल्ली पर बलात कब्जा तो कर लिया था लेकिन पुरानी दिल्ली समेत टेरिटरि के अन्य इलाकों में विद्रोह की आग रह रहकर धधक उठती थी। अंग्रेज इस पर काबू पाने के लिए पूरे जी जान से जुटे थे। इसी कड़ी में उन्होंने वरिष्ठ अधिकारियों के जरिए एक रिपोर्ट भी तैयार करवाई थी जिसमें दिल्ली टेरिटरि में जनजातियों एवं उनके द्वारा किए गए अपराध पर विस्तृत रिपोर्ट थी। अंग्रेज इस रिपोर्ट के आधार पर जनजातियों को चिन्हित कर सजा दिलाने एवं उन्हें सुधारने का भी दंभ भरते थे।

218 पेज की ट्राइब एंड क्लांश नाम की यह रिपोर्ट 1885 के आसपास की है। रिपोर्ट में कहा गया है कि सन 1881 फरवरी में इस बाबत जनगणना जारी की गई थी लेकिन इसमें आधी अधूरी जानकारी है। कई जनजातियों के बारे में बहुत स्पष्ट जानकारी नहीं दी गई है। मसलन, गुरूग्राम के ही एक जनजाति मिनस का जिक्र है। रिपोर्ट की मानें तो ये लेाग बहुत ही अनुशासन हीन थे। विद्रोही स्वभाव के थे। लेकिन क्रिमिनल ट्राइब एक्ट 1885 के बाद इनके व्यवहार में बदलाव आया है। अब ये लोग चौकीदारी कर रहे हैं।

रिपोर्ट में हैरानी जताई गई है कि इन्हें खेती के लिए जमीन दी गई थी तो इन्होने लौटा क्यों दी। इसी तरह करनाल की एक जनजाति तगवा के बारे में भी बताया गया है कि इनकी संख्या 288 है। इन पर आरोप है कि ये लोग सशपिसियस एक्टिविटी के लिए बाहर रहते हैं। सांसी पर रिपोर्ट में कहा गया है कि लगभग हर जिले में रह रही इस जनजाति में सुधार हो रहा है। हालांकि लाहौर के अधिकारियों ने इन्हें खतरनाक श्रेणी में रखा है। जबकि गुजरात में इनका व्यवहार ठीक पाया गया है। जालंधर में इनका व्यवहार ठीक देख डिस्ट्रिक सुपरिटेंडेंट ने अपराध वाली लिस्ट से इनका नाम हटाने की गुजारिश की थी। लेकिन डिप्टी कमिश्नर और कमिश्नर अभी मना कर रहे हैं।

रिपोर्ट में दिल्ली टेरिटरि के 100 से ज्यादा जनजातियों के बारे में जानकारी है। इतिहासकार की मानें तो दरअसल इस रिपोर्ट के पीछे की असल वजह इन जनजातियों पर नकेल कसने था। अंग्रेज आरोप लगाते थे कि ये जनजातियां क्रांतिकारियों, विद्रोहियों को ना केवल समर्थन देती हैं बल्कि शरण भी देते हैं।

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