1857 की क्रांति: 14 सितंबर को दिल्ली में हर तरफ धुंध थी। चारो तरफ धुल का गुबार दिखाई दे रहा था। गोलियों की आवाज सुनाई दे रही थी। अंग्रेजी सैनिक और क्रांतिकारी आमने सामने थे। भयंकर मुकाबले के बाद कश्मीरी गेट और मुख्य चौकी अब अंग्रेजों के कब्जे में थी और उसकी मेहराव पर यूनियन जैक लहरा रहा था।

लेकिन थोड़ा आगे स्किनर की हवेली के पास सेंट जेम्स के चर्च के सामने और भी जबरदस्त मुकाबला होना था। यहां नासिराबाद की फौज ने मोर्चेबंदी की थी, और पूरे घेराव के दौरान यह उनका हेडक्वार्टर रहा था। कुछ सिपाही चर्च के सहन की नीची दीवार के पीछे से गोलीबारी कर रहे थे।

दोनों तरफ से इतनी जबरदस्त गोलीबारी हुई कि उन्होंने ब्रिटिश फौज की सामने की कतार के ज़्यादातर लोगों को वापस भागने से पहले मार गिराया।

सईद मुबारक शाह का ख्याल है कि कश्मीरी गेट और स्किनर की हवेली के बीच तीन-चार सौ ब्रिटिश सिपाही मारे गए होंगे।” लेकिन चूंकि अब ब्रिटिश फौज की तीनों टुकड़ियां चर्च के मैदान और हवेली पर जमकर गोलियां चला रही थीं, इसलिए नासिराबाद के सिपाहियों के पास अपनी तोपें साथ लेकर पीछे हटने के सिवाय और कोई चारा न था। बाहर सेंट जेम्स चर्च के सामने खुले मैदान में निकल्सन ने तीनों दस्तों के बचे हुए सिपाहियों को जमा किया” लेकिन उसको पता चला कि उसके अपने दस्ते के सिपाही उसके बगैर ही शहर की दीवारों के साथ-साथ आगे बढ़ चुके थे।

निकल्सन ने भी बागी सिपाहियों को फिर से जमा होने का मौका दिए बगैर अपने बचे हुए सिपाहियों को लेकर मुंडेर के साथ-साथ पश्चिम का रुख किया। उसका मकसद था कि वह अपने खोए हुए बाकी सिपाहियों से मिल जाए और काबुल दरवाज़े और लाहौरी दरवाज़े पर जल्द से जल्द कब्ज़ा कर ले।

वहां चौथा दस्ता भी उन्हें मिलना था, जो मेजर रीड के नेतृत्व में था और जिसे बाड़ा हिंदू राव से लड़ते हुए किशनगढ़ के मुहल्ले से गुजरकर यहां आना था। विल्सन की योजना के अनुसार इस तरह ब्रिटिश फौज दोपहर के खाने तक शहर के सारे उत्तरी और पश्चिमी क्षेत्र पर कब्ज़ा कर लेती।

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