जफर के महल में घुस गए विद्रोही

1857 की क्रांति: विलियम डेलरिंपल अपनी किताब आखिरी मुगल में 1857 की क्रांति पर विस्तार से लिखते हैं। उन्होंने लिखा कि विद्रोही मेरठ से लाल किले आ पहुंचे। लाल किले में वो बादशाह बहादुर शाह जफर के महल में दाखिल होने हुए। बादशाह ने विद्रोहियों के हाथों मारे गए ब्रितानिया हुकूमत के अफसरों के अंतिम संस्कार के आदेश दिए थे। इसी बीच विद्रोही महल में दाखिल हो गए।

“हकीम अहसनुल्लाह खां ने उनको देखकर कहा कि हम सबको जल्दी फातेहा पढ़ लेना चाहिए, क्योंकि शायद हमारी मौत भी करीब है। हम सबने फातेहा पढ़ना शुरू कर दिया। इतनी देर में वह सवार दीवाने खास तक पहुंच गए और वहां घोड़ों से उतरे और उनको बांधकर बगैर जूते उतारे अंदर घुस गए। कोई 30 लोग होंगे जो लंबे कुर्ते, ढीले पजामे और पगड़ी पहने थे, और उनके पास बंदूकें और पिस्तौल थी। जब उन्होंने कफ़न का सफेद कपड़ा फैला देखा तो पूछा, ‘यह क्या है?’ हकीम ने जवाब दिया कि ‘यह तुम्हारे करतूतों का नतीजा है। और उस कत्ले-आम का जो तुम लोगों ने और तुम्हारे साथियों ने किया है।’ यह सुनकर एक सिपाही ने बहुत बदतमीजी से कहा, ‘तुम भी उन काफिर ईसाइयों से कुछ बेहतर नहीं हो,’ और फिर उन्होंने सारे कफन फाड़कर टुकड़े-टुकड़े कर डाले।

“फिर एक सवार ने शाही ख्वाजासरा महबूब अली खां के पेट पर पिस्तौल घुसाकर कहा कि हमें अनाज दो। महबूब अली खां ने कहा, ‘हम तुम्हारे लिए सामान कहां से मुहैया कर सकते हैं जब हमारे पास ही कुछ नहीं है।’ हकीम अहसनुल्लाह खां ने भी उसकी समर्थन करते हुए कहा कि ‘बादशाह सलामत ने खुद ही कहा है कि उनके पास पैसा नहीं है और वह खुद एक भिखारी की तरह जिंदगी गुज़ार रहे हैं। हम कहां से तुम्हारे लिए लाएं? हमारे पास सिर्फ अस्तबल के घोड़ों के लिए एक महीने का अनाज है। अगर तुम चाहो तो वह ले लो लेकिन वह भी कितने दिन चलेगा? तुम्हारे लिए तो वह सिर्फ एक दिन के लिए काफी होगा।’

” फिर सब सिपाही बादशाह के निजी महताब बाग़ में घुस गए और उन्होंने वहां अपने घोड़े बांध दिए। थोड़ी देर बाद साठ सिपाहियों का एक और जत्था आ गया और अनाज मांगने लगा। उनको भी यही जवाब दिया गया और फिर पचास सिपाही और आ गए। और थोड़ी देर में 300 सिपाही महताब बाग में जमा हो गए। दरबारियों की नज़र में तो उन सिपाहियों का इस तरह घुस आना हमले के बराबर था।

आखिरी बार 1783 में बहुत से सिपाही बगैर इजाज़त के इस तरह किले में घुसे थे जब गुलाम कादिर ने किले को फतह करने के बाद बादशाह को अंधा कर दिया था। उस वक्त ज़फ़र सिर्फ आठ साल के थे उसके बाद से अब तक कभी ऐसा नहीं हुआ था कि किसी ने लाल पर्दा पार किया हो और वह भी घोड़े पर सवार होकर या किसी ने बगैर जूते उतारे दीवाने-खास में कदम रखा हो। जब एक ब्रिटिश रेज़िडेंट फ्रांसिस हॉकिन्स ने, 1830 में महरौली में अकबर शाह की सालाना छुट्टी के ज़माने में ऐसा किया था, तो बादशाह ने इस बदतमीजी और गुस्ताख़ हरकत की शिकायत कलकत्ता में की थी और मांग की थी कि “इस रंज और तकलीफ की धूल को हमारी शफ्फाफ और नूरानी पेशानी से साफ किया जाए।” और इसके नतीजे में हॉकिन्स को तुरंत बर्खास्त कर दिया गया था।” और अब कई सौ गंदे और मैले कंपनी के भूतपूर्व सिपाही बगैर किसी इजाज़त या तमीज़ के किले के अंदर के कमरों में घुस गए थे और उन्होंने अपने गंदे घोड़े बादशाह के खास पसंदीदा बाग के फलों पेड़ों से बांध दिए थे।

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