1857 की क्रांति: बगावत के छह हफ्ते के बाद 28 जुलाई को किशन दयाल और कादिर बख्श, जो मेरठ के सिपाहियों के सूबेदार थे। लाल किले के दरबार में यह कहने आए कि उनके आदमी भूखे मर रहे हैं। उन्होंने अपना तमाम माल-अस्वाब मेरठ में छोड़ दिया था जब उन्होंने बगावत की थी, ‘इसलिए अब वह सब बहुत मुश्किल में हैं। आठ-दस दिन हो चुके हैं और हमें एक चने का दाना भी नहीं मिला है। मेरे आदमी हर चीज़ खत्म हो जाने की वजह से बेहद परेशान हैं, और कोई साहूकार भी उन्हें कर्जा देने को तैयार नहीं है।
न सिर्फ साहूकार बल्कि दुकानदार और सौदागर भी उधार देने से इंकार कर रहे थे। 4 अगस्त को दिल्ली के तमाम हलवाई मिलकर कोतवाल के पास पहुंचे और कहा कि चूंकि उनके पिछले कई दिनों की मिठाई का पैसा नहीं मिला है इसलिए अब वह नकद के बिना बिल्कुल मिठाई नहीं देंगे। 14 अगस्त को नीमच से आई हुई रेजिमेंट भी खुलेआम धमकी दे रही थी कि अगर उन्हें खाने को नहीं मिला, तो वह छोड़कर चले जाएंगे। उनके दो सूबेदार जफर के सामने अपनी मुसीबत की दास्तान सुनाने आएः
“बादशाह सलामत यह दर्खास्त नीमच फौज की तरफ से है, जो आपके शहर में बहुत दूर से आए हैं और जिन्हें रास्ते में बहुत रुकावटों और मुश्किलों से जूझना पड़ा। हम इस उम्मीद में आए थे कि आपके हुजूर में खिदमत करेंगे। अब तक आपके यह ताबेदार घोड़ों और मवेशियों, हाथियों और ऊंटों का खर्चा खुद चलाते रहे।
सरकार यह सब हाथी, ऊंट और घोड़े ब्रिटिश सरकार की मिल्कियत थे और अब तक जैसे भी हालात रहे, उनका खर्चा मिलता रहा है लेकिन अब चार-पांच दिन से हमारी पूरी फौज और जानवर भूखे हैं और हमारे पास बिल्कुल पैसे नहीं बचे हैं कि हम उनकी फौरी जरूरतें भी पूरी कर सकें। सारे सिपाही लड़ने को तैयार हैं मगर वह हमसे पूछते हैं कि एक आदमी जो दो-तीन दिन से भूखा हो वह कैसे लड़ सकता है।
“इसलिए हम उम्मीद करते हैं कि आप अपनी मेहरबानी और फराखदिली से हमको वह खर्चा देंगे जो शाही फौज का हुआ है, और आप हम खाकसारों को जवाब से नवाजेंगे। वर्ना आप मेहरबानी करके खुद सिपाहियों को सूचना दे दीजिये, क्योंकि जब तक खर्चे की व्यवस्था नहीं होगी, कोई सिपाही लड़ने को तैयार नहीं है। बराय-मेहरबानी इसे अवज्ञा मत समझियेगा, लेकिन अगर आप नहीं चाहते कि नीमच ब्रिगेड यहां रहे तो हमें साफ जवाब दे दें। जो किस्मत में लिखा है वह होकर रहेगा। पहले भी हम अनगिनत दर्खास्तें भेज चुके हैं लेकिन अब तक हमें कोई जवाब नहीं मिला है।
बहुत इज़्ज़त और आदाब के साथ,
आपके जांनिसार सेवक,
जनरल सुधारी सिंह और ब्रिगेड मेजर हीरा सिंह”