1857 की क्रांति: दिल्ली पर अंग्रेजों के कब्जे के बाद कूचा चेलान में कहर बरपा। यहां लगभग 1,400 दिल्लीवालों को मार डाला गया। यहां नवाब मुहम्मद अली खां ने लूटमार रोकने की कोशिश की थी और तीन अंग्रेज सिपाहियों को गोली मार दी थी, जो उनकी हवेली की दीवार फांदकर उनके जनानखाने में घुस आए थे। उनके साथी वापस जाकर रेजिमेंट के और लोगों को ले आए और साथ में एक तोप भी, जिससे उन्होंने उस हवेली को ढहा दिया।
उसके बाद इस इलाके के सब लोगों का कत्ले-आम शुरू हो गया। जब अंग्रेज और उनके साथी सिपाही सबको तलवार से मारने से थक गए, तो लगभग चालीस लोगों को यमुना के किनारे ले गए और उनको किले की दीवार के नीचे एक कतार में खड़ा करके गोली मार दी। उनमें से बहुत से दिल्ली के सबसे ज़्यादा काबिल शायर और कलाकार थे क्योंकि कूचा चेलान दिल्ली का सबसे मशहूर बुद्धिजीवियों का मुहल्ला मशहूर था।
जहीर देहलवी उनके बारे में लिखते हैं: “वह सब बहुत जाने-माने और अमीर लोग थे जिन पर दिल्ली को फख्र था। उस जमाने में उनकी बराबरी कोई नहीं कर सकता था और न ही कभी हम उन जैसा कोई देख सकेंगे। मसलन, वहां मियां अमीर पंजाकश थे, जिनकी खुशनवीसी का दुनिया में कोई मुकाबला नहीं था, और हमारे दौर के महान शायर मौलवी इमाम बा सहबाई और उनके दो बेटे थे, और मीर नियाज अली, जो कूचा चेलान के मशहूर दास्तानगो थे।
उस मुहल्ले के लगभग चौदह सौ लोग मारे गए। कुछ को गिरफ्तार करके राजघाट दरवाज़े के रास्ते यमुना के किनारे ले जाया गया और वहां उनको गोली मार दी गई। सबकी लाशें दरिया में फेंक दी गई। बहुत सी औरतें यह सब देखकर इतनी विचलित हो गई कि अपने बच्चों को लेकर कुएं में कूद गईं। कई महीनों बाद तक कूचा चेलान के सब कुएं लाशों से भरे हुए थे। मेरी कलम अब आगे और कुछ बयान नहीं कर सकती।