खान मार्केट दिल्ली के पुराने बाजारों में से एक है। अपनी विविधता और विशिष्टता के लिए दिल्ली वासियों के दिल में एक खास जगह रखने वाले इस बाजार में कई दुकानें ऐसी हैं जो स्थापना वर्ष से ही बाजार के साथ कदम मिलाकर चल रही है। ऐसी ही एक दुकान है ‘संजीव मेहरा अलाइड स्टोर’ (Sanjiv Mehra’s Allied Stores)। खेल, खिलौने और बर्थडे पार्टी सामग्री से गुलजार यह दुकान बच्चों के लिए किसी जन्नत से कम नहीं है। तकनीक से लैस अत्याधुनिक खिलौने हों या पारंपरिक खेल सामग्री सब एक छत के नीचे उपलब्ध है। दुकान की लोकप्रियता और उत्कृष्ट सामानों की उपलब्धता के कारण यहां के खरीदारों में देश के आम से खास लोग शामिल हैं। पूर्व प्रधानमंत्री राजीव गांधी (rajiv gandhi), वरिष्ठ राजनेता लालकृष्ण आडवाणी (lal krishna advani), अर्थशास्त्री मोंटेक सिंह अहलूवालिया (montek singh ahluwalia), अभिनेत्री शर्मिला टैगोर (sharmila tagore), जया प्रदा (jaya prada), श्रीदेवी (sridevi) और प्रीति जिंटा (preity zinta) समेत कई दिग्गज हस्तियां यहां खरीदारी के लिए पहुंच चुकी है।

बहू ने परिवार की तरह संभाला व्यापार :

अलाइड स्टोर संचालक बताते हैं कि दुकान की स्थापना 1940 के दशक में उनके दादा स्वर्गीय लाला वासुमल मेहरा ने की थी। उनका अमृतसर में चाय का कारोबर था और लाहौर (अब पाकिस्तान) में उनके द्वारा स्थापित दुकान ‘इलाइट डिपार्टमेंटल स्टोर’ पर पिता स्वर्गीय दिलबाग राम मेहरा बैठते थे। 1947 में भारत-पाक विभाजन के कारण सारा कारोबार बिखर गया और परिवार अमृतसर आ गया। वर्ष 1950 में कुल 643 रुपये लेकर पिताजी अमृतसर से दिल्ली आए और यहां किराए पर दुकान लेकर दोबारा से ‘इलाइट डिपार्टमेंटल स्टोर’ की नींव रखी। संजीव याद करते हैं कि वर्ष 1963 में जब वो करीब 6-7 के रहे होंगे, पारिवारिक उथल-पुथल के कारण दुकान बंद करने की नौबत आ गई थी। तब उनकी मां स्वर्गीय निर्मल नयनी मेहरा ने परिवार के साथ-साथ व्यापार को भी संभालने की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ले ली और वर्ष 2006 तक दुकान को अपने बच्चों की तरह संभालती रहीं। करीब आठ दशक में दुकान ‘इलाइट डिपार्टमेंटल स्टोर’ से ‘संजीव मेहरा अलाइड स्टोर’ का सफर तय कर चुकी है और अब इसका संचालन संजीव मेहरा के पुत्र चाणक्य मेहरा व पुत्री निलोफर रहेजा कर रही हैं।

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यहीं से हुई थी ‘थीम बर्थडे पार्टी’ की शुरूआत :

वर्ष 1978 का एक वाकया बताते हुए संचालक गर्व की अनुभूति करते हैं। वो याद करते हैं कि दोपहर का वक्त था, एक विदेशी महिला अपने बच्चों के साथ दुकान पर आईं। बर्थडे से संबंधित सामग्री खरीदने के बाद उन्होंने पूछा कि क्या आप थीम बर्थडे पार्टी की व्यवस्था कर सकते हैं। उस दिन पिताजी भी दुकान पर ही थे और इस तरह की कोई व्यवस्था नहीं होने के बावजूद उन्होंने हामी भर दी और उनके घर का पता ले लिया। शाम को पिताजी ने घर में जो प्रोजेक्टर हमारे लिए लगाया था, मुझे और मेरे बड़े भाई राजीव मेहरा को थमाया और उनके घर भेज दिया। वहां हमारी व्यवस्था और व्यवहार से वो काफी प्रभावित हुईं। उस थीम बर्थडे पार्टी से 750 रुपये मिले थे, जो दोनों भाईयों की पहली कमाई थी। उस दौर में ‘थीम बर्थडे पार्टी’ देश में कहीं भी चलन में नहीं था इसलिए दिल्ली में यह प्रयोग पहली बार हुआ। संजीव कहते हैं कि पिताजी के उस आइडिया के बदौलत बाद के दिनों में वो ‘थीम बर्थडे पार्टी’ लेकर दिल्ली के अलावा पानीपत, करनाल, चंडीगढ़, लुधियाना, कोलकाता, हैदराबाद और कोयंबटूर जैसे शहरों तक गए। उनके साथ काम करने वालों कारीगरों ने अपने-अपने शहरों में इसे शुरू किया और अब तो छोटे-छोटे शहरों में भी ‘थीम बर्थडे पार्टी’ चलन में है।

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