कुलदीप नैयर अपनी किताब में लिखते हैं कि उन्हें बरामदे में कोसिगिन खड़े दिखाई दिए। उन्होंने अपने हाथ खड़े करके शास्त्री के न रहने का संकेत किया। बरामदे से आगे डाइनिंग रूम था, जहाँ एक लम्बे टेबल पर डॉक्टरों की टीम डॉ. आर. एन. चुग से पूछताछ कर रही थी। डॉ. चुग भारत से शास्त्री के साथ से गए थे।

इससे आगे शास्त्री का कमरा था। एक विशाल कमरा। उतने ही विशाल पलंग पर शास्त्री की निर्जीव देह और भी नन्ही प्रतीत हो रही थी। पास ही कालीन पर बड़ी तरतीब से उनके स्लीपर पड़े हुए थे। उन्होंने इन्हें नहीं पहना था। कमरे के एक कोने में पड़ी ड्रेसिंग टेबल पर एक थरमस लुढ़का पड़ा था। ऐसा लगता था कि शास्त्री ने इसे खोलने की कोशिश की थी। कमरे में कोई घंटी नहीं थी। इस चूक को लेकर जब संसद में सरकार पर हमला किया गया। या तो सरकार साफ झूठ बोल गई थी।

सरकारी फोटोग्राफर चोपड़ा के साथ मिलकर मैंने ड्रेसिंग टेबल के पास तह करके रखे तिरंगे झंडे को शास्त्री की पार्थिव देह पर फैला दिया। अपनी श्रद्धांजलि के रूप में मैंने उस पर कुछ फूल भी रख दिए। कुछ देर बाद मैं उनके सहयोगियों के कमरे में गया। वह उनके कमरे से थोड़ा दूर था, जहाँ एक खुले बरामदे से होकर जाना पड़ता था। शास्त्री के निजी सचिव जगन्नाथ सहाय ने मुझे बताया कि शास्त्री ने आधी रात के आसपास उनके दरवाजे पर दस्तक दी थी और पानी माँगा था। इसके बाद दो स्टेनोग्राफरों के साथ मिलकर के जगन्नाथ उन्हें उनके कमरे तक छोड़ आए थे। चुग के अनुसार, यही कसरत जानलेवा साबित हुई थी। मुझे बगल के कमरे से लेफ्टि. जनरल कुमारमंगलम की आवाज सुनाई दे रही थी, जो फोन (ताशंकद और नई दिल्ली के बीच सीधी हॉट-लाइन) पर शास्त्री के पार्थिव शरीर के भारत पहुँचने पर व्यवस्था के निर्देश दे रहे थे। उन्होंने जैसे ही अपनी बात पूरी की, मैंने उनसे रिसीवर लेते हुए ऑपरेटर से यू. एन. आई. का नम्बर माँगा।

दूसरी तरफ देर रात की ड्यूटी पर सुन्दर ढींगरा मौजूद थे। मैंने उनसे एक फलैश जारी करने के लिए कहा- ‘शास्त्री डेड’ वे खी खी करके हँसने लगे और बोले कि मैं जरूर मजाक कर रहा था, क्योंकि उन्होंने अभी-अभी शास्त्री के शाम के भाषण की रिपोर्ट जारी की थी। मैंने उनसे कहा कि वे वक्त बर्बाद न करें और जल्दी से यह फलैश जारी करें। उन्हें अब भी यकीन नहीं आया तो मुझे पंजाबी में कुछ सख्त शब्दों का इस्तेमाल करना पड़ा। इसके बाद उन्होंने फुर्ती दिखाई और दिल्ली में अखबारों के दफ्तरों में फोन करके उन्हें शास्त्री की मौत की खबर दे दी। कई अखबारों ने छपाई रोककर सुबह के संस्करणों में यह खबर शामिल कर ली। यह यू.एन.आई.’ का स्कूप था।

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