मुगल काल में पुुरानी दिल्ली की महिलाएं एक से बढ़कर एक आभूषण पहनती थीं। नग ऐसी खूबसूरती से बिठाए हुए हैं कि डाली के फूल क्या होंगे। जिस रंग का जोड़ा पहना है जेवर और जवाहरात उसी रंग के पहनती थी। अगर लिबास दो रंग का है तो जेवरात के नगीने भी दो रंग के होते थे। मुगलकाल के ‘कुछ जेवर जिन्हें बेगमात अमीरजादियां पहनती थीं या आम औरतें अपनी हैसियत के अनुसार पहनती थीं। आज के आर्टिकल में उनके बारे में विस्तार से बताते हैं——

सिर के जेवर—सीस-फूल—-इसका जिक्र अबुल फजल ने ‘आईन-ए-अकबरी’ में भी किया है। यह घंटी की शक्ल का सोने या चांदी का खोखला जेवर था और इसे सिर के ऊपर पहना जाता था।

मांग—यह जेवर मांग पर ही मांग की खूबसूरती बढ़ाने के लिए पहना जाता था।

चांद-–माथे पर पहना जाता था और सोने तथा हीरे-जवाहरात का बनता था। यह सितारे, चांद, सूरज या फूल की आकृति का होता था।

बिंदोली – माथे का सच्चे मोतियों का जेवर था। सीस जाल – जाल जैसा सोने-चांदी के तारों, मोतियों और हीरों का सिर का ज़ेवर जो पूरे सिर को आकर्षक ढंग से ढक लेता था। जड़ाऊ चोटी – हीरे, जमरुद और मोतियों की जड़ाऊ चोटी।

सूरज—सोने और हीरे-जवाहरात का चांद से बड़ा माथे का गहना ।

झूमर, छपके, सीस-पटी, टीका-सोना-चांदी और मोतियों के विभिन्न आकार और रूप में माथे के गहने।

कान के जेवर—कान में ऊपर की ओर चार छेद और नीचे की ओर तीन या चार छेद किए जाते थे। ऊपर के चार छेदों में पत्ते, बालियां, जड़ाऊ-सादा मौलसिरी के फूल की और मोतीचूर की पहनी जाती थी। नीचे के छेदों में छलनियां, झुमके, करनफूल, लड़े, चौदानिया, मछलियां, बाले, झाले, लटकन, बुंदे, आवेजे, मोर भंवर, और करनफूल आदि पहने जाते थे। अकबरशाह के जमाने का कान का एक जेवर चंपाकली था, जो पत्तों से मिलता था।

नाक के जेवर—नाक के सीधे नथुने में एक सूराख किया जाता था। मगर बुलाक के लिए दोनों नथुनों के जोड़ में छेद कर दिया जाता था। नाक के जेवर थे कील, लौंग, बुलाक। बेगमात और शहज़ादियों की कील और नथें सोने और हीरे की होतीं।

गले के जेवर—गले के ज़ेवर अनेक थे। माला, मोहनमाला, जुगनी, ढोलिया, चंदनहार, चंदन हाँस, कंठी, सतलड़ा, तोड़ा, बद्धी सोने के बनते और इनमें हीरे-जवाहरात, मोती और क्रीमती पत्थर भी इस्तेमाल होते थे।

कमर के जेवर-तगड़ी, कमरपेटी, जंजीर, चदर खटका। कमर में ज़ेवर आम तौर पर हिन्दू औरतें पहनती थीं और वे अधिकतर चांदी के होते थे। मगर कई मुग़ल शहजादियों ने छोटी-छोटी कमर पेटियां सोने और हीरे-जवाहरात की बनवा ली थीं और समारोहों के अवसर पर शौकिया पहनती थीं।

हाथ के जेवर—चूड़ियां, जहांगीरियां, दस्तबंद, पहुंची, लच्छे, कंगन, तीतरपंखियां, गजरे, चूड़ा आदि हाथों के जेवर थे। कई क़िस्म के कड़े भी होते थे और सबसे आगे पहने जाते थे। शेरदहां, मगरदहां, तोते के सिर के और मोर तथा मेंढे के सिर के बहुत लोकप्रिय थे।

पांव के जेवर—खलखाल, झांझन, बल, कड़े, रमझोल, पाजेब, बांक, पाटल, घुंघरू वगैरह पांव में पहने जाते थे। पांव की उंगलियों में चुटकी, छल्ले, बिछुए, अनोट और अनोट-बिछुए पहने जाते। ये सब जेवर चांदी के बनते थे और दरअसल घुंघरू के सिवा हिन्दुवानी जेवर थे जो मुसलमान औरतों ने भी अपना लिए।

सोलह सिंगार—नारियों के सोलह सिंगार बहुत मशहूर हैं और हिन्दुओं की पुरानी ऐतिहासिक पुस्तकों और धर्म-ग्रंथों में उनका उल्लेख मिलता है। जो स्त्री सोलह सिंगार कर लेती थी वह सिंगार की हर ज़रूरत को पूरा करके अपने रूप को पूरा कर लेती थी। ये सोलह सिंगार इस तरह हैं- 1. कंघी, 2. सिंदूर लगाना (सुहागिनों के लिए), 3. बिंदी, 4 अंजन, 5. तेल, 6. अरगजा, 7. पान, 8. मिस्सी, 9. नील, 10. मेंहदी, 11. फूल, 12. आलता, 13. दातौन, 14. मंजन, 15. उबटन ।

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