यूजीसी द्वारा लाए गए मसौदे में विदेशी विश्वविद्यालयों को भारतीय जनता के पैसे के बल पर मुनाफा कमाने की अनुमति देने की चाल!
केवाईएस की मांग है कि आम जनता के साथ चर्चा से पूर्व नीतिगत फैसलों को न लाया जाए!
क्रांतिकारी युवा संगठन (KYS) विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (भारत में विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों के परिसरों की स्थापना और संचालन) विनियम, 2023 के मसौदा की कड़ी निंदा करता है। ये नियम जन-विरोधी राष्ट्रीय शिक्षा नीति (NEP) 2020 के अनुरूप हैं, जिसका उद्देश्य विदेशी लाभ-संचालित विश्वविद्यालयों और उच्च शिक्षण संस्थानों को देश में शिक्षा की दुकानें स्थापित करने की अनुमति देना है। इसका उद्देश्य सामाजिक न्याय और बराबर हिस्सेदारी की नीतिगत प्रतिबद्धता को दरकिनार कर विदेशी संस्थानों का एक अलग ‘विश्व-स्तरीय’ ग्रेड तैयार करना है, जिससे विश्व व्यापार संगठन (WTO) की ‘ईज ऑफ डूइंग बिजनेस’ की मांग कार्यान्वित किया जा सके।
यूजीसी विनियम का मसौदा विदेशी संस्थानों में छात्रों को प्रवेश देने के लिए अपनी प्रवेश प्रक्रिया और मानदंड बनाने की स्वायत्तता की अनुमति देता है। उच्च शिक्षा संस्थान स्वयं अपनी शुल्क संरचना तय करेंगे, जो नियमों के अनुसार “पारदर्शी और उचित” होनी चाहिए। इससे यह सुनिश्चित होगा कि प्रवेश के लिए विश्वविद्यालय स्वयं का मनमाना मानदंड और मनमाना शुल्क संरचना तैयार कर भारत में मुनाफा कमाने के अपने प्राथमिक लक्ष्य को बे रोक टोक पूरा कर सकेंगे| कहने की आवश्यकता नहीं है, इन विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों में सामाजिक न्याय और समानता सुनिश्चित करने की कोई प्रतिबद्धता नहीं होगी, जिसकी छूट भारत में निजी विश्वविद्यालयों को पहले से ही उपलब्ध है| इसके अलावा, विनियमों के अनुसार, विदेशी उच्च शिक्षा संस्थानों को अपने स्वयं के विशिष्ट भर्ती मानदंडों द्वारा भारत और विदेशों से शिक्षकों और कर्मचारियों की भर्ती करने की स्वायत्तता होगी| यह नीति, मौजूदा समय में शिक्षण संस्थानों में मनमाने भर्ती के नियमों के माध्यम से शिक्षकों और कर्मचारियों को प्रशासन के अधीनस्थ रहने के लिए मजबूर करने का ही दोहराव है।
इन विदेशी संस्थानों द्वारा भारत में अर्जित आय मूल उच्च शिक्षा संस्थान को ही प्रत्यावर्तित की जाए इसके लिए विशेष प्रावधान लाया गया है| यह कदम इस मंशा को उजागर करता है कि शिक्षा से लाभ कमाने के उद्देश के अनुरूप इसे बेचने-खरीदने योग्य वस्तु बनाया जा रहा है, जैसा कि WTO जनरल एग्रीमेंट ऑन ट्रेड इन सर्विसेज (GATS) में परिकल्पित है। यह परिकल्पना इसपर आधारित है कि भारी मांग के कारण उच्च शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी सेवाएं कॉर्पोरेट्स और ट्रांसनैशनल कंपनियों द्वारा निवेश हेतु और मुनाफा कमाने के उद्देश से महत्वपूर्ण क्षेत्र हैं। इसलिए ये नियम इन सेवाओं को नियंत्रित करने और कमाई करने के लिए WTO-GATS पर जोर दे रहे हैं। यूजीसी द्वारा विदेशी शिक्षण संस्थानों को संचालित करने की अनुमति देने के वर्तमान कदम का नतीजा शिक्षा क्षेत्र की सरकारी सब्सिडी को समाप्त करना है, जिसके परिणाम स्वरूप उच्च शिक्षा महंगी होगी और इसे हासिल करना देश में बहुसंख्यक मेहनतकश जनता के लिए और भी दुर्गम हो जाएगा।
देश में वर्तमान स्थिति यह है कि उच्च शिक्षा हासिल करने के इच्छुक अधिकांश उम्मीदवारों को गुणवत्तापूर्ण औपचारिक उच्च शिक्षण संस्थानों में प्रवेश से वंचित किया जा रहा है या फिर वे अनौपचारिक माध्यम यानि मुक्त और दूरस्थ शिक्षण संस्थानों में धकेले जा रहा है। इसके अतिरिक्त उच्च शिक्षा हासिल करने वाले तबके का बड़ा हिस्सा कोरोना महामारी व लॉकडाउन संकट के दौरान प्रभावित हुआ है, जिसके परिणामस्वरूप देश में ड्रॉपआउट दर में भारी वृद्धि हुई है। मौजूदा सरकार यह सुनिश्चित करने के बजाय कि जनता के पैसे को सभी के लिए गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा हासिल करने के लिए उपयोग किया जाए, शिक्षा के व्यवसायीकरण के प्रयास तेज किए जा रहे हैं| जिस माध्यम से सरकार आम जनता को गुणवत्तापूर्ण शिक्षा प्रदान करने की जिम्मेदारी से हाथ धो रही है। यह सत्ताधारी सरकार जन-विरोधी चरित्र को उजागर करता है जो अपने देशवासियों के खिलाफ घरेलू और विदेशी कॉरपोरेट के हितों में फैसले लेने और नियम बनाने के प्रति अति उत्साही है।
यह चिंताजनक है कि जिस प्रकार एनईपी 2020 के प्रतिगामी प्रभावों को बिना चर्चा जनता पर थोप दिया गया था, उसी तरह मौजूदा यूजीसी विनियमों को आम जनता से किसी भी प्रकार के चर्चा या संसद में किसी भी बहस के बिना पेश किया गया है। यह पूरी तरह से असंवैधानिक है कि यह नीतिगत बदलाव यूजीसी द्वारा लाए जा रहे हैं, न कि संसद द्वारा, और इस संबंध मे शिक्षकों, छात्रों और देश की जनता से कोई चर्चा नहीं की गई है|
केवाईएस इन नियमों की कड़ी निंदा करता है और मांग करता है कि इन्हें तुरंत वापस लिया जाए। इसके स्थान पर, सरकार और यूजीसी को देश में बहुसंख्यकों हिस्से तक गुणवत्तापूर्ण उच्च शिक्षा कि पहुंच की कमी के मुद्दे पर तत्काल ध्यान दिया जाना चाहिए। साथ ही नीतिगत स्तर पर लाए जा रहे बदलावों को संसद में बहस और उन्हें लागू करने से पहले देश की जनता के साथ अनिवार्य रूप से चर्चा की जानी चाहिए। यूजीसी द्वारा इस जनविरोधी कदम के खिलाफ केवाईएस अपने संघर्ष को तेज करेगा और आने वाले दिनों में यूजीसी के खिलाफ विरोध प्रदर्शन का आयोजन करेगा|