1857 की क्रांति: 19 जून को सिपाहियों ने अपने रोजाना सामान्य हमले से हटकर सही समझबूझ से काम लेते हुए रिज पर तीन तरफ से हमला किया। जिससे अंग्रेजों की फौज को अपने सारे संसाधन इकट्ठा इस्तेमाल करना पड़े थे। सूर्योदय से एक घंटा पहले हमला रिज के पीछे से न सिर्फ सब्जी मंडी से बल्कि उत्तर-पश्चिम में मुबारक बाग और पूर्व में मैटकाफ हाउस की तरफ से हुआ, जिसका नेतृत्व नासिराबाद की ओर से एक हथियारबंद फौज कर रही थी। सारी रात लड़ाई चलती रही और अंग्रेजों को संभलने तक का मौका नहीं मिल सका।

अंग्रेज पादरी जॉन रॉटन के अनुसारः

“दुश्मन ने बड़ी तादाद में हमला किया। जिसमें घुड़सवार, पैदल और तोपें शामिल थीं। हम पहले ताज्जुब कर रहे थे कि उन्होंने कभी पीछे से हमला क्यों नहीं किया या और वह भी बार-बार और व्यवस्थित रूप से। अगर वह ऐसा करते तो उनका असर देर-सवेर हम पर जरूर पड़ता। हम उस जोरदार और नाखुशगवार हमले से बदहवास होकर लड़ते रहे और रात की तारीकी चढ़ती गई…

“इस हमले की वजह से अंग्रेजों के कैंप में बहुत से लोग मायूस हो गए। इसलिए नहीं कि हमें अपनी फतह पर कोई शक था, चाहे वह कितनी ही महंगी पड़े, बल्कि इसलिए कि शुरू-शुरू में हम समझे कि अब आगे चलकर दुश्मनों का हमें धमकाने का यही तरीका रहेगा। और अब उनकी आंखें खुल गई हैं और उनकी समझ में आ गया है कि वह इस तरह पीछे से हमला करके हमको तंग करके फायदा उठा सकते हैं।

असल में दुश्मनों से ज़्यादा हमें खुद अपनी कमज़ोरी का अंदाज़ा था। और इसी वजह से हम डर रहे थे, मगर खुशनसीबी से यह डर बेबुनियाद साबित हुआ। यह क्रांतिकारियों  की बुनियादी समझ की कमी का नतीजा था कि उनको विल्कुल अहसास नहीं हुआ कि वह घेराबंदी के शुरू ही में फतह के कितने नजदीक आ गए थे। उनकी बदकिस्मती थी कि उन्होंने फिर कभी इस तरह के सम्मिलित हमले पीछे से नहीं किए। और जब किए, तब तक बहुत देर हो चुकी थी।

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