दिगंबर जैन मंदिर, दिल्ली गेट

यह एक गली में स्थित है। इसे लाल मंदिर भी कहते हैं। इसमें सबसे प्राचीन मूर्ति 1773 ई. की बताई जाती है। मंदिर में चित्रकारी की हुई है। कहा जाता है कि किले के पास वाले लाल मंदिर के बन जाने के बाद जैन समाज में कुछ मतभेद हो गया था, इस कारण इस मंदिर की स्थापना हुई। मंदिर की इमारत पक्की है।

श्वेतांबर जैन मंदिर, नौघरा

यह मंदिर किनारी बाजार, मोहल्ला नौधारा में स्थित है। इसे शाहजहां के काल का बना हुआ बताते हैं। श्वेतांबरों का यह सबसे प्राचीन मंदिर माना जाता है। इसका पुनर्निर्माण 1709 ई. में हुआ था। प्रतिमा सुमतिनाथ जी की है। भवन में स्वर्ण चित्रकारी का काम है।

महावीर दिगंबर जैन मंदिर

यह नई सड़क से जाकर वैद्यवाड़े में स्थित है। इसका निर्माण 1741 ई. में हुआ बताते हैं। मंदिर में लगभग 200-250 मूर्तियां हैं। मंदिर के शास्त्र भंडार में कई हस्तलिखित ग्रंथ हैं।

जैन पंचायती मंदिर

यह गली मस्जिद खजूर में स्थित है। इसका निर्माण मोहम्मद शाह द्वितीय के सैनिक आज्ञामल ने 1743 ई. में करवाया, बताया जाता है। यह पांडे जी का मंदिर भी कहलाता है। इसमें पारसनाथ जी की श्यामवर्ण मूर्ति है, जो 4 फुट 6 इंच ऊंची और तीन फुट पांच इंच चौड़ी है। कई रत्न प्रतिमाएं भी हैं। सबसे प्राचीन मूर्ति 1346 ई. की और अन्य दस-बारह मूर्तियां 1491 की कही जाती हैं।

मंदिर में करीब 3,000 अप्राप्य हस्तलिखित शास्त्रों का तथा अन्य मुद्रित ग्रंथों का संग्रह है।

जैन नया मंदिर, धर्मपुरा

इसे राजा हरसुखराय जी ने, जो शाही खजांची थे और भरतपुर महाराज के दरबारी थे, 1800 ई. में आठ लाख रुपये की लागत से बनवाया था। यह सात वर्ष में बनकर पूरा हुआ। मंदिर में आदिनाथ जी की 1607 ई. की मूर्ति है।

मंदिर की वेदी मकराना के संगमरमर की बनी है, जिसमें सच्चे बहुमूल्य पाषाण की पच्चीकारी का और बेल-बूटों का काम बड़ी कारीगरी का बना हुआ है। जिस कमल पर प्रतिमा विराजमान है, उसकी लागत दस हजार रुपये बताई जाती है और मंदिर की लागत सवा लाख रुपये बताई जाती है। यहां की पच्चीकारी के काम को कितने ही बाहर वाले भी देखने आते हैं। शास्त्र भंडार में लगभग 1800 हस्तलिखित ग्रंथ हैं।

जैन बड़ा मंदिर, कूचा सेठ

इस मंदिर का निर्माण सन् 1828 से 1834 ई. में हुआ बताते हैं। मूर्ति भगवान ऋषभदेव की है। मूर्ति की प्रतिष्ठा 1194 ई. की मानी जाती है। मंदिर की इमारत पक्की बनी हुई है। सीढ़ियां चढ़कर मंदिर में प्रवेश होता है। शास्त्र भंडार में 1400 हस्तलिखित ग्रंथ हैं।

इन मंदिरों के अतिरिक्त जैनियों के दसियों अन्य मंदिर, चैत्यालय, स्थानक आदि तीर्थ स्थान दिल्ली में स्थित हैं, जिनमें से कई काफी प्राचीन हैं।

जैन पार्श्व मंदिर

इर्विन रोड से जो अंदर की ओर जैन मंदिर रोड गई है, यह मंदिर उसी सड़क पर थोड़ा अंदर जाकर पड़ता है। यह इलाका भी जयसिंह पुरा ही कहलाता था। यह खंडेलवाल अथवा बड़े मंदिर के नाम से मशहूर है।

इस मंदिर की सही निर्माण तिथि का तो पता चल नहीं पाता, मगर रिवायत है कि यह पार्श्वनाथ मंदिर है, जहां सन् 1659 ई. में अजित पुराण की रचना की गई थी और जिसकी अंतिम प्रशस्ति में इस मंदिर का भी उल्लेख है। यह कहा जाता है कि इसी मंदिर में सांगानेर निवासी श्री खुशहाल चंद काला ने स्थानीय श्री गोकुल चंद जी ज्ञानी के उपदेश से 1723 से 1743 ई. तक हरिवंश पुराण आदि अनेक ग्रंथों की रचना की थी। अनुमान है कि यह स्थान औरंगजेब के समय के पूर्व निर्मित हुआ था।

मंदिर में प्रतिमा भगवान महावीर स्वामी की है, जो भट्टारक जिनचंद्र द्वारा प्रतिष्ठित की गई है। इसके अतिरिक्त कई अन्य प्राचीन मूर्तियां भी यहां प्रतिष्ठित हैं। मंदिर बहुत बड़ा है। अहाते में कुछ रिहाइशी मकान बने हुए हैं। प्रवेश द्वार पत्थर का बना हुआ है। अंदर जाकर बड़ा चौक है। उसके चारों ओर दालान हैं। उनमें से दो में मंदिर हैं।

अग्रवाल दिगंबर जैन मंदिर

यह मंदिर पार्श्व मंदिर से लगा हुआ है और छोटे मंदिर के नाम से पुकारा जाता है। इसका निर्माण राजा हरसुख राय के सुपुत्र राजा सुगनचंद्र ने 1807 में करवाया था। मंदिर में मूर्ति अष्टम तीर्थंकर भगवान चंद्रप्रभु की है। मंदिर में स्वर्ण चित्रकारी बहुत सुंदर की हुई है। इस मंदिर में लगभग एक हजार मुद्रित ग्रंथों का जैन शास्त्र भंडार है।

जैन निशी मंदिर

यह हार्डिंग रोड पर स्थित है। यह निशी अथवा नशियांजी के नाम से प्रसिद्ध है। इसका निर्माण भी मुगल काल में हुआ। इसके चारों ओर परकोटा है और चार कोनों पर गुंबद हैं। पश्चिमी दीवार से लगा गुंबद रूप मंदिर है, जिसके तीन भाग हैं। मध्य भाग में एक पक्की वेदी बनी हुई है, जिसमें प्रतिमा विराजी जाती हैं। पूर्वकाल में अग्रवाल मंदिर से मूर्ति लाकर वर्ष में तीन बार यहां स्थापित की जाती थी।

दादा बाड़ी

यह कुतुब साहब में अशोक विहार के नजदीक सड़क से अंदर जाकर जैनियों का तीर्थ है। यहां आठ सौ वर्ष हुए, सन् 1166 ई. में श्री जिन चंद्र सूरी का, जो जैनियों के गुरु थे, अग्नि संस्कार हुआ था। एक बहुत बड़ी बगीची में उनका मंदिर है। और भी कई मंदिर, धर्मशाला, कुआं आदि स्थान हैं।

पंचकुइयां मार्ग होकर झंडेवाला जाते हुए पुराने जमाने के चंद अन्य हिंदू मंदिर देखने को मिलते हैं, जिनकी नई दिल्ली के बनने से शक्ल बदल गई है। पंचकुइयां रोड पर पहले पांच कुएं हुआ करते थे। अब भी वहां कम्युनिटी हाल के पास एक बगीची है और एक पुराना मंदिर है। सिंघाड़े पर मरघट के पास पहाड़ी पर भैरों का एक मंदिर है, जो काल भैरों का मंदिर कहलाता है और 52 भैरों में से है। और भी कई मंदिर इधर-उधर देखने को आते हैं। इनमें से एक मंदिर सती केला का है। कहते हैं, पृथ्वीराज चौहान के काल में एक राजपूत यहां लड़ाई में मारा गया था, उसकी पत्नी ढाला सती हुई थी।

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