10 अक्तूबर, 1942 की रात हरिवंश राय बच्चन (harivansh rai bachchan) ने एक विचित्र सपना देखा। उन्होंने देखा कि उनके पिता प्रतापनारायण पूजाघर में बैठे हुए थे। उनकी आँखों पर चश्मा था। उनके सामने रामचरितमानस खुली थी। वह एक के बाद एक पन्ने पढ़ते जा रहे थे और बच्चनजी अपनी पत्नी तेजी के साथ उसे सुन रहे थे। उनके कानों में एक ही पंक्ति गूंज रही थी।
आपु सरिस खोजौं कहं जाई।
नृप तव तनय होब मैं आई ।।
बच्चनजी की नींद खुल गई। वह हड़बड़ाकर बैठ गए। उन्होंने तेजीजी को जगाकर कहा, तुम्हें बेटा पैदा होगा। अभी अभी मैंने सपना देखा है। मैंने पिताजी को पूजाघर में रामचरितमानस का पाठ करते हुए देखा। हम लोग भी वहीं बैठे हुए उसे सुन रहे थे। मैंने सुना पिताजी पढ़ रहे थे, ‘नृप तव तनय हो मैं आई। ‘
कटरा में डॉ. बरार के नर्सिंग होम में उसी सुबह तेजीजी को भरती करा दिया गया। संयोग से सुबह घर में सुमित्रानंदन पंत भी आ गए थे।
सुमित्रानंदन पंत के बेहद प्रिय थे हरिवंश राय बच्चन। हर साल जाड़े में वह अल्मोड़ा से इलाहाबाद आते और बेली रोड़ में ठहरते थे। वह अकसर बच्चनजी से मिलने आ जाते हैं। तेजीजी की नजरों में सुमित्रानंदन पंत ऐसे ही लगे थे। इसीलिए उन्होंने पंतजी से आग्रह किया था, ‘इस बार जाड़े में आप हमारे यहां ही ठहरिए।’ पंतजी राजी हो गए। इलाहाबाद के यूनिवर्सिटी के करीब बैंक रोड के नौ नंबर बंगले में उन दिनों बच्चनजी रहा करते थे। पंतजी से बच्चनजी ने अपने भोर के सपने का जिक्र किया।
यह सुनकर हंसते हुए पंतजी ने कहा, ‘सुबह का सपना सच होता है।’
बच्चनजी को बेटे की इच्छा थी। वह चाहते थे कि उनके पुरखे मनसा का वंश चलता रहे। उसी शाम को अत्यधिक आनंद से उनका मन भर गया। तेजीजी ने बेटे को ही जन्म दिया था। नर्सिंग होम में ही अपने दोनों हाथों को जोड़कर बच्चनजी ने सपने के प्रति अपनी कृतज्ञता जताई।
शाम को सुमित्रानंदन पंत नवजात शिशु को देखने नर्सिंग होम में आए। वह तेजीजी की गोद से सटे सोते हुए शिशु को एकटक निहारते रहे। नवजात शिशु के सिर पर काले घने बाल थे। बच्चा एकदम स्वस्थ पैदा हुआ था। साढ़े आठ पौंड वजन था। नार्मल डिलीवरी । पंतजी ने बच्चे को देखते हुए बच्चनजी से कहा था, ‘बच्चन, देखो यह कितना शांत है। ठीक जैसे ध्यानमग्न अमिताभ हो।’ पंतजी के कहे गए शब्दों का तेजीजी ने मन-ही-मन दोहराया अमिताभ, अमिताभ! वाह, कितना अच्छा नाम है।
पति और पत्नी दोनों ने ही सुमित्रानंदन पंत को यह बात बता दी कि नवजातक का नाम उन लोगों ने अमिताभ ही रख लिया है।
यह बात 11 अक्तूबर सन् 1942 के शाम की थी। पैदा होने के दिन ही नामकरण भी हो गया।
अमिताभ सन् ’42 में पैदा हुए थे। उसी साल आजादी की लड़ाई और तेज हुई थी। इसीलिए अमरनाथ झा ने बच्चनजी से कहा था, ‘बच्चन, अपने बेटे का नाम इंकलाब राय रखो ।’ मगर बच्चनजी और तेजीजी, दोनों को ही यह नाम नहीं रुचा। पहले दिन ही उन्होंने जो फैसला कर लिया था उसे ही बहाल रखा। अमिताभ! साढ़े चार साल बाद दूसरे बेटे के पैदा होने के समय पूरे देश को आजादी की आहट सुनाई देने लगी थी। अमरनाथ झा ने उस वक्त भी अपनी इच्छा बच्चनजी से व्यक्त की थी। कहा था, ‘अब हम लोग आजाद होने वाले हैं बच्चन ! किसी भी दिन यूनियन जैक उतरकर हमारा तिरंगा लहराएगा। तुम्हें बेटा पैदा हुआ है। उसका नाम रखो आजाद राय । ‘