jayaprakash narayan jayanti: उन दिनों असहयोग आंदोलन के कारण अनेक लोगों ने सरकारी नौकरियां छोड़ दी थीं। सरकार की ओर से मिली बड़ी से बड़ी उपाधि लौटाई जा रही थी। युवकों ने स्कूल और कॉलेजों का बहिष्कार करना शुरू कर दिया था। एक दिन जयप्रकाश (jayaprakash narayan) और उनके साथियों ने मौलाना अबुल कलाम आजाद (maulana abul kalam azad) का भाषण सुना, जिसमें उन्होंने अंग्रेजी शिक्षा की तुलना जहर से की थी। मौलाना आजाद का भाव यह था कि अंग्रेजी शिक्षा पद्धति देश के युवकों के लिए विष का काम करती है। उनके भाषण से प्रभावित होकर जयप्रकाश ने दूसरे ही दिन कॉलेज छोड़ दिया।
जेपी और बाकी छात्र जब यह सुन कर लॉज में लौटे तो बतियाने लगे कि क्या करना है। अगले महीने फाइनल परीक्षा है, कॉलेज कैसे छोड़ दें? जेपी कुछ न बोले, सोचते रहे।
“कुछ तो बोलो हमारे राजेंद्र प्रसाद !”
“कॉलेज की एक निशानी हाथ में रख लो और मेरे साथ चलो !”
“कहाँ?”
“गंगाजी के पास। हम कॉलेज और इस अंग्रेज़ी काग़ज़ को गंगा में बहाने जा रहे हैं। यह क्रांति का वक्त है, और क्रांति का रास्ता तो गंगा मैया ही बताएगी। ”
पटना कॉलेज से जयप्रकाश, विश्वेश्वर दयाल जैसे कई तेज तर्रार लड़के निकल कर सड़क पर आ गए। खद्दर कुर्ता, गांधी टोपी, चमड़े का चप्पल पहने यह जब कॉलेज वालों को चिढ़ाते, तो दो-चार और कॉलेज छोड़ इनके दल में शामिल हो जाते। परीक्षा बंद, क्लास बंद। लेकिन अब क्या? गांधी जी ने कह तो दिया कि स्वदेशी कॉलेज में पढ़ो, लेकिन है कहाँ स्वदेशी कॉलेज ?
कॉलेज छोड़ने के बाद जयप्रकाश ने अपने पिता को एक पत्र लिखा, जिसमें उनसे क्षमा-याचना की कि उनकी अनुमति के बिना ही उन्होंने कॉलेज छोड़ दिया। सत्याग्रह से प्रभावित होकर जयप्रकाशजी ने खादी पहनना शुरू कर दिया था।
गांधी (mahatma gandhi) जी ने घूम-घूम कर चंदा लेना शुरू किया। अमीर ही क्या, गरीब भी। ट्रेन से हर स्टेशन पर उतरते । भीड़ ‘महात्मा गांधी की जय ‘चिल्लाती; वह झोला फैला कर कहते कि’ जय ‘मत कहो, एक आना-दो आना जो बन पड़े डालो। गोदरेज सेठ ने भी तीन लाख रुपए दिए ।
और इस तरह दान से बने कॉलेज। दीघा में बीस एकड़ की खैरू मियां की जमीन थी, स्वराज के लिए दान कर दी। वहां बना सदाकत आश्रम और बिहार विद्यापीठ । काशी में काशी विद्यापीठ, दिल्ली में जामिया, अहमदाबाद में गुजरात विद्यापीठ । जेपी भी अपनी पलटन के साथ बिहार विद्यापीठ में दाखिल हुए और परीक्षा पास की।